कविता

लिखती हूँ……

कुछ सोच कर कहाँ लिखती हूं
मैं तो बस अपने जज्बात लिखती हूं
आंखें बंद करती हूँ
सोचती हूं पल दो पल
आती है नजर जो बात
वही बात लिखती हूँ

कोई सच या झूठ कहाँ लिखती हूँ
आईने में जो देखती हूँ वही लिखती हूँ
करती हूं खुद से बातें
खट्टी मीठी यादें
कुछ आँसू कुछ मुस्कुराहटें
कुछ हंसी-मजाक लिखती हूँ

लोगों से मिलती जुलती हूँ
करती हूँ बातें उनसे
कुछ गपसप कुछ रोजमर्रा की बातें
पीरों के शब्दों में वही बात लिखती हूँ

खबरों के खबर में
अजनबी शहर में
जो देखती सुनती हूँ
उन्हीं को कविता बनाकर लिखती हूँ

टूटें रिश्ते,
अपनों के खबर से बेखर
कांपते हाँथ सिसकता बचपन
भावनाओं को महसूस करके लिखती हूँ
भावुक हो जाती हूँ
दुख और दर्द से सामना करके
तब कहीं जाकर कुछ लिखती हूँ

दिल से सोचती हूँ
दिल से बातें करती हूँ
दिल की बात दिल से लिखती हूँ

*बबली सिन्हा

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