कविता

 “छंद मुक्त काव्य“ (मैं इक किसान हूँ)

किस बिना पै कह दूँ कि मैं इक किसान हूँ

जोतता हूँ खेत, पलीत करता हूँ मिट्टी

छिड़कता हूँ जहरीले रसायन घास पर

जीव-जंतुओं का जीना हराम करता हूँ

गाय का दूध पीता हूँ गोबर से परहेज है

गैस को जलाता हूँ पर ईधन बचाता हूँ

अन्न उपजाता हूँ गीत नया गाता हूँ

आत्महत्या के लिए हैवान बन जाता हूँ

कहते हैं लोग कि मैं भूख का निदान हूँ

किस बिना पै कह दूँ कि मैं इक किसान हूँ॥

ठंड में काँपता हूँ बरसात में भीगता हूँ

गरमी में पराली जलाकर शरीर सेंकता हूँ

उधार का बीज, उधार की खाद डालता

ब्याज के लिए तिमाही तौलता हूँ अनाज

चूहों से मिन्नते करता हूँ उन्हें समझाता हूँ

किश्त दर किश्त दीपावली सी पुजा करता हूँ

मूर कब घटता है मैं ही कूढ़ता हूँ पकता हूँ

खुद के लिए ही शायद शैतान बन जाता हूँ

लोग सम्मान में कहते हैं मैं कल का बिहान हूँ

किस बिना पै कह दूँ कि मैं इक किसान हूँ॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ