कविता

माँ ने हिन्दी नाम दिया

माँ ने हिन्दी नाम दिया

संस्कृत ने संस्कृत कर जन्मा भारत
को वरदान दिया ,
पाला पोसा खूब सजाया माँ ने हिन्दी
नाम दिया ।

सहज मधुर शब्दावली मेरी लिखना पढ़ना
सभी सरल ,
रस से भरी गगरिया मेरी छंद काव्य का
जाम दिया ।

बहने मेरी सब भाषायें मेरा झगड़ा कहीं
नही ,
हाथ पकड़ कर हम चलती हैं एक दूजे पर
प्राण दिया ।

मेरी प्रीत मिली तुलसी को राम चरित
गाया उसने ,
सूर ने श्याम का दर्शन पाकर राधे -राधे
नाम लिया ।

कबिरा मस्त फक्कड़ी बोले पंचमेल
खिचड़ी उनकी ,
कहे कबीर सुनो भई साधो हिन्दू तुरक
सलाम किया ।

कहि रसखान मिले मोहे मोहन वृंदावन के
कुंजन में ,
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर गली -गली हरि
नाम लिया ।

कोई कहे अंग्रेज़ी जीती कोई कहे द्राविड
भाषा ,
आदि मध्य से लेकर अब तक मैने कब
विश्राम किया ।

भारत माँ की बिंदी हिंदी दुनिया भर
में सम्मानित ,
पश्चिम की भाषाओं ने बढकर मेरा
सम्मान किया ।

नाटक कथा गीत पद गजलें उपन्यास
फ़िल्मी गाने ,
देश विदेश में गीत ग़ज़ल को तुमने नया
मुकाम दिया ।

पखवाड़ों तिथियों घंटों में तुम अब न
बंध पाओगी ,
खूब उड़ो ऊँचे नभ तक तुम जन गण मन
ने ठान लिया ।

डा० नीलिमा मिश्रा

डॉ. नीलिमा मिश्रा

जन्म एवं निवास स्थान इलाहाबाद , केन्द्रीय विद्यालय इलाहाबाद में कार्यरत , शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से मध्यकालीन भारत विषय से एम० ए० , राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से पी०एच० डी० । अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में सहभागिता विशेष रूप से १६वां विश्व संस्कृत सम्मेलन बैंकाक २०१५ । विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में लेख गीत गजल कविता नज़्म हाइकु प्रकाशित इसके अलावा ब्लाग लिखना ,गायन में विशेष रुचि