लघुकथा

परमार्थ की बीन

आज सुबह-सुबह सुरभि का मैसेज आया- ”आंटी जी, आज सड़क पर पानी गरम करने वाली रॉड बेचने वाले बुजुर्ग अंकल के मोतियाबिंद का ऑपरेशन हो गया, आपको यह जानकर अत्यंत हर्ष होगा कि ऑपरेशन सफल रहा.”

सुरभि के नाम में भी महक है और काम में भी. उसकी खुशबू के किस्से यदा-कदा मेरे कानों में पड़ते रहते हैं, या यूं कहें कि गूंजते रहते हैं. 20 साल की सुरभि अभी पढ़ाई कर रही है. वह भी आज के उसी समाज की उपज है, जिसमें बराबर स्वार्थ के सपोले पनप रहे है, लेकिन सुरभि का जन्म ही शायद परमार्थ की बीन बजाने के लिए हुआ है.

अभी कुछ दिन हुए, वह स्लम के बच्चों को खाना और कपड़े बांटकर वापिस आ रही थी, कि उसने सड़क किनारे एक बुजुर्ग को पानी गरम करने वाली रॉड बेचते देखा. वह उनके पास गई तो पता चला कि उन्हें मोतियाबिंद था. उसने रुककर उनसे बात की और उनकी दिक्कत के बारे में जानने की कोशिश की. बुजुर्ग का मन तो इसी से बाग-बाग हो गया, पर सुरभि को तृप्ति कहां! सुरभि ने उनसे 20 रॉड खरीदे और उनका एक विडियो बनाकर सोशल साइट पर अपलोड कर दिया. कुछ समय बाद उस विडियो को देखकर उसे एक पुलिसवाले का मेसेज आया. वह उन बुजुर्ग की आंखों का इलाज कराना चाहते थे. दोनों ने एक दूसरे का फोन नंबर लिया और मिलकर उन बुजुर्ग को अस्पताल ले गए. नतीजा सकारात्मक रहा था. उसी का नतीजा यह ऑपरेशन था.

मैं तो यहीं रोजमर्रा के काम में व्यस्त रही, सुरभि परमार्थ की बीन पर नवीन धुन की ओर बढ़ गई.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “परमार्थ की बीन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सुरभि को बिग सैलूट .

  • लीला तिवानी

    सुरभि ने बातों से नहीं अपने हौसले और जज़्बे से किए गए काम से सिद्ध करके समाज को संदेश दे दिया, कि-

    जीवन एक चुनौती है, इसे स्वीकार कीजिए,
    जीवन एक सपना है, इसे साकार कीजिए.

    मंज़िलें बड़ी ज़िद्दी होती हैं ,
    हासिल कहां नसीब से होती हैं !
    मगर वहां तूफान भी हार जाते हैं ,
    जहां कश्तियां ज़िद पर होती हैं!

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