लघुकथा

देश की स्वच्छता

स्कूल के प्रधानाचार्य जी से मिलने स्कूल गया था । गेट के पास बेंच पर एक चपरासी बैठा था । उसे नमस्ते की और पूछा भाई साहब प्रिंसिपल महोदय आ गए क्या ?  इतनी आत्मीयता से बात करते देख वह प्रसन्न हो गया चेहरे पर एक मुस्कान आ गयी । अभी आने में कुछ देर है उनके ऑफिस के बाहर इंतज़ार कीजिये, उसने जवाब दिया ।

मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी । समय व्यतीत करने के लिए उससे पूछा आप कितने समय से यहां काम कर रहे है ?  यही कोई बीस साल से, उसने जवाब दिया । यदि आप कहें तो क्या मैं भी यहीं बैठकर प्रिंसिपल साहब का इंतज़ार कर लूँ मैनें पूछा ? हाँ हाँ क्यों नहीं, आइये बैठिये, एक ओर सरकते हुए उसने मेरे बैठने की जगह बना दी ।

हमारी बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ । वह ज़िन्दगी के थपेड़े खा खा के बड़ा हुआ लगता था, बातों बातों में उसने बताया की उसने बेटे को बड़ी आस से पढ़ाया था की पढ़ लिखकर कोई अच्छी सी नौकरी लग जायेगी तो जीवन को सफल समझेगा । परन्तु कई साल नौकरी के लिए  धक्के खाने के बाद अब वह एक ठेले में सब्जियां बेचता है । बात करते करते उसने पास रखे थैले में से  मूंगफली निकाली और मुझसे पूछा आप लोगे क्या ? मेरे ना कहने पर खुद ही छील छील कर खाने लगा और छिलके वहीँ फेकने लगा । मैंने कहा भाई साहब आज देश में सब लोग  स्वच्छता के बारे कितने जागरूक हो गए हैं,  देश में कितनी सफाई नजर आती है और आप इस प्रकार सड़क पर गन्दगी फैला रहे हैं ।

मेरी बात सुनकर उसका चेहरा तमतमा गया । स्वच्छता ? देश में स्वच्छता  ? काहे की स्वच्छता साहब इतना पढ़ा लिखा तो नहीं हूँ पर आपको बता दूँ, देश में इतनी गन्दगी कभी नहीं फ़ैली जितनी अभी फ़ैल गयी है ।

क्या कह रहे हैं आप ? बरबस मेरे मुंह से निकला ।  हाँ साहब ठीक कह रहा हूँ । सड़क की गन्दगी तो ऊपर ऊपर की गन्दगी है जब चाहे साफ़ कर सकते है, पर यह देश में जो सवर्णो, दलितों, मुस्लिम- हिन्दुओं, के बीच गन्दगी फैल गयी है यह इतनी आसानी से साफ़ नहीं होने वाली । ऊपर की गन्दगी तो सहन की जा सकती है पर यह जो भीतर तक इंसान को गन्दा कर दिया गया है उसकी सफाई कौन करेगा ?  मेरा मूंगफली खाकर सड़क गन्दी करना तो आपको अच्छा नहीं लगा पर यह जो लोगों के मन गंदे कर रहे हैं उन्हें क्यों नहीं मना करते ?

मैं चुपचाप उठकर प्रिंसिपल के ऑफिस की ओर चल दिया, उससे और सवाल जवाब करने की मुझमें हिम्मत नहीं थी ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

4 thoughts on “देश की स्वच्छता

  • लीला तिवानी

    प्रिय रविंदर भाई जी, गज़ब का व्यंग्य किया है आपने इस कथा में. यह केवल व्यंग्य ही नहीं आज की सच्चाई भी है. भीतरी सफाई बहुत जरूरी है. इसके बिना हमारा और समाज-देश का भला नहीं होने वाला. इतनी सुंदर रचना के लिए आभार.

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय बहन जी , आपने लघु कथा में गजब का व्यंग्य और सच्चाई देख ली काश
      यही सच्चाई और भी लोगों को नजर आ जाए तो आज का भारत प्राचीन भारत के सदृश्य
      हो जाए । आपकी बहुमूल्य टिपण्णी और प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    वाह , रवेंदर जी इस लघु कथा में बहुत् बड़ी बात कह दी .मूंगफली की छील वाली बात तो हमारा जन्म अधिकार है लेकिन यह जो कौमों में दूरीआं हो रही हैं वोह राजनीति का नया चेहरा है . कोई तीस साल पुरानी बात याद आ गई . दुर्भाग्य से वेस्ट में रहने के कारण हमें एक बुरी आदत पढ़ गई है ,वोह है की जब हम भारत आते हैं तो गंद फैलाने से डरते है .एक दफा हम मीआं बीवी टैम्पू में सफर करने से पहले एक ठेले से मूंगफली खरीदी और उस से एक सपेअर खाली ल्फाफा ले लिया ताकि छिलके इस लफाफे में डाल सकें . हम मूंगफली खाते खाते छिलके उस खाली लफाफे में डालते हुए टैम्पू में चढ़ गए . टैम्पू में कुछ और लोग भी मूंगफली के लफाफे पकडे, खाते खाते छीलें टैम्पू में ही फैंक रहे थे . हमें कुछ शरम आई और मैंने छिलों वाला ल्फाफा टैम्पो में फैंक दिया .पत्नी भी हंस कर ऐसा कर दिया . हमें लगा जैसे हम आज़ाद हो गए हों .

    • रविन्दर सूदन

      आदरणीय भाई साहब, कई अर्से बाद आपकी लेखनी के दीदार हुए । हम आपको
      नवभारत में बहुत मिस करते हैं । आपने ठीक कहा मूंगफली खा कर छिलके वहीँ
      फेकने का एक अलग ही मजा है । उस गन्दी राजनीती से तो यह गंदे छिलके ज्यादा
      बेहतर है । एक बार बार्डर के पास दो कुत्ते एक उस पार एक इस देश में घूम रहे थे । इस पार का कुत्ता दुबला हड्डियां निकली, उस पार का हट्टा कट्टा । इस देश वाले कुत्ते ने पूछा तुम्हें खाने को अच्छा मिलता है ? उसने जवाब दिया भर पेट। उसने कहा और तुम्हें, इस देश वाले ने कहा कई कई दिन तक फाके करने पड़ते है । इतने में इस देश के कुत्ते ने अचानक भोंकना शुरू कर दिया, उस पार का कुत्ता हैरान रह गया । पुछा क्या तुम्हें भोंकने की आजादी है ? इस वाले ने कहा हाँ जब चाहें जितना चाहें । उस वाले ने कहा तब तो मैं वहीँ आ जाता हूँ कम से कम भोंकने की तो आजादी है ।

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