कविता

चिता 

चिता
एक कडवा सच है
गरीब-अमीर सबके लिए
परन्तु –
आश्चर्य… महाआश्चर्य
अनजान बने बैठे हैं सब
उठती लपटों से /
उढ़ते धुंए से /
मुट्ठी भर राख से |
रोज जल रहीं हैं
लाखों चिताएं
छोटे-बडे, गरीब-अमीर
सब लकडियों अथवा विद्युत हीटर में
अपनी कंचन सी काया लिए
हो रहे हैं खाक!
फिर भी फडफडा रहे हैं /
अकड पे अकड दिखा रहे हैं
भूलकर चिता
बूढ़े भी सेज सजा रहे हैं |
जिंदगी का आखिरी सच है
चिता…
ए मनुज! तू जान ले /
पहचान ले
इस सच को…
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111