कविता

आत्मविश्वास

आत्मविश्वास को करो मजबूत,
ताकि भाग जाए डर की भूत।

आत्मविश्वास को बनाओ हम सफर,
ताकि संकट का ना हो कोई असर।

हौसले को अब कर लो बुलंद,
बल बुद्धि को ना करों मंद।

बिना डर आत्मविश्वास से बढ़ते जाओ,
संयम और धैर्य की सीढ़ी चढ़ते जाओ।

विपत्तियाँ चाहे तुम्हें जितना सताए,
निराश मन चाहे तुम्हें जितना रूलाए।

इन बातों से तुम न घबराना
क्योंकि आत्मविश्वास से है लक्ष्य को पाना।

हार न मानने का खा लो कसम,
जीत के जज्बों का रखो दम।

अपने कर्मों पे रखना विश्वास,
क्योंकि आत्मविश्वास है तुम्हारे पास।

अंततः होगी तेरे आत्मविश्वास की जीत,
इस जीत से हो जाएगी तेरी प्रीत।

मकसद की मंजिल वही हैं पाते,
जो आत्मविश्वास के रास्ते है जाते।

मृदुल शरण