गीतिका/ग़ज़लपद्य साहित्य

ग़ज़ल

दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही बेताब था
जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |
मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था
चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |
स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को
सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |
आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी
आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |
शब कटी बेदारी’ में, बीते नहीं दिन चैन से
आँख में जो अश्क था दिल का वही सैलाब था |
याद है तुमसे मिला मैं, आज तक भूला नहीं
इल्तफाते नाज़ की सौगात वो नायाब था |
लंका’ से ओखी उठी, फिर केरला गुजरात तक
शीत मौसम में उठी आँधी बनी गिर्दाब था |
जिंदगी की नाव, मौजों में रही वो काँपती
डूबना था नाव को, पानी जहाँ पायाब था |
रोज उनकी मुझसे’ आखें चार का था सिलसिला
मेरे’ घर की खिड़की’ उनके सामने का बाब था |
जन्म से इंसान सब, इंसानियत ही धर्म है
मज्हबीयत मानना ‘काली’ खुदा इज्राब था |
शब्दार्थ :
शबताब=अँधेरे में चमकने वाले ,जैसे चाँद ,तारे
ताब= सहनशीलता, बेदारी’=जागरण
इल्तफाते नाज़ =अदा से कनखियों से देखना,
गिर्दाब=पानी का भँवर, बाब = दरवाज़ा
इज्राब = अवज्ञा करना, आदेश न मानना
कालीपद ‘प्रसाद’

*कालीपद प्रसाद

जन्म ८ जुलाई १९४७ ,स्थान खुलना शिक्षा:– स्कूल :शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय ,धर्मजयगड ,जिला रायगढ़, (छ .गढ़) l कालेज :(स्नातक ) –क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान,भोपाल ,( म,प्र.) एम .एस .सी (गणित )– जबलपुर विश्वविद्यालय,( म,प्र.) एम ए (अर्थ शास्त्र ) – गडवाल विश्वविद्यालय .श्रीनगर (उ.खण्ड) कार्यक्षेत्र - राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कालेज ( आर .आई .एम ,सी ) देहरादून में अध्यापन | तत पश्चात केन्द्रीय विद्यालय संगठन में प्राचार्य के रूप में 18 वर्ष तक सेवारत रहा | प्राचार्य के रूप में सेवानिवृत्त हुआ | रचनात्मक कार्य : शैक्षणिक लेख केंद्रीय विद्यालय संगठन के पत्रिका में प्रकाशित हुए | २. “ Value Based Education” नाम से पुस्तक २००० में प्रकाशित हुई | कविता संग्रह का प्रथम संस्करण “काव्य सौरभ“ दिसम्बर २०१४ में प्रकाशित हुआ l "अँधेरे से उजाले की ओर " २०१६ प्रकाशित हुआ है | एक और कविता संग्रह ,एक उपन्यास प्रकाशन के लिए तैयार है !