कविता

अकर्मण्यता

ये तुम्हारी जड़ता
तुम्हारी अकर्मण्यता
एक दिन उत्तरदायी होंगी
तुम्हारे ह्रास का
और
कठघरे में खड़ी होंगी
और
जवाब देंगी
सृष्टि के विनाश का

परिस्थतियाँ खुद नहीं बदल जाती हैं
या
सम्भावनाएँ यूँ ही नहीं विकसित हो जाती हैं
पूरी की पूरी
एक नस्ल
एक पीढ़ी को
अपनी आहुति देनी पड़ती है

और
तैयार करनी पड़ती है
अगली पीढ़ी के लिए वो संस्कार
जिनके हम कुपोषित है
और
पैदा करनी पड़ती हैं संस्कृति की फसल
जिसे हम रौंदते जा रहे हैं
और
नियंत्रित करना पड़ता है
खुद के अभिमानों को
जिसने तय कर दी हैं हमारी क्षमताएं
जिससे आगे हम सोच नहीं पाते
समझ नहीं पाते
और
बिलबिलाते हैं किसी कीड़े की तरह
एक रोज़ यूँ ही घुटन से मर जाने के लिए

हम दोषी है
अपनी अगली पीढ़ी के
जिसका भविष्य हम खा चुके हैं
जिसकी नसों का खून तक पी चुके हैं
और
जिनके साँसों में हम ज़हर खोल चुके हैं

सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com