कहानी

हमदर्दी

हमदर्दी

सूखे की मार झेल रहे किशन ने गाँव से पलायन कर शहर में अपना डेरा जमा लिया । शहर में पहले से ही रह रहे उसी की गाँव के गोपाल ने उसे किराए का एक कमरा दिलवा दिया । अपने दो बेटों सोनू और मोनू के साथ वह उस पुराने जर्जर ईमारत की निचली मंजिल के एक कमरे में रहने लगा । रोजगार के नाम पर करने के लिए उसके पास कुछ काम नहीं था ।
आज भी वह सुबह जल्दी तैयार होकर शहर में उस नुक्कड़ पर खड़ा था जहाँ सभी दिहाड़ी मजदूर आकर खड़े होते थे । एक तरह से मजदूरों की मंडी ही थी वह नुक्कड़ की जगह !
सुबह जल्दी आया हुआ किशन ग्यारह बजे तक वहीँ नुक्कड़ पर काम की आस लिए हुए खड़ा रहा । लेकिन सुबह से ही हो रही बूंदाबांदी की वजह से आज ठेकेदार बहुत कम आये थे जिसकी वजह से उसे काम नहीं मिल पाया था ।
घर में दोनों भूखे बच्चों और खुद की भूख की भी परवाह न करके किशन उस बूँदाबाँदी का आनंद उठा रहा था । उसे याद आ रहे थे अपने सूखे खेत । काश ! थोड़ी भी बरसात हुई होती उस समय ! उसकी सारी मेहनत के साथ साहूकार से उधार लेकर खेतों में बोए गए बीज बेकार नहीं हुए होते !
कुछ ही देर में बारिश ने अपना विकराल रूप दिखाना शुरू किया । सडकों के किनारे बने नाले उफनने लगे । कहीं कहीं सडकों पर पानी का जमाव भी दिखने लगा ।
किशन अब मजदूरी की आस छोड़ अपने आशियाने की तरफ लौटने लगा । सडकों पर जलजमाव देखकर उसे चिंता हो रही थी अपने उस घर की जो सड़क के बराबर ही ऊँचाई पर था । उसकी गैरमौजूदगी में अगर पानी घर में घूस आया तो उसकी बीवी और बच्चे क्या करेंगे ? हालाँकि उसकी बीवी रधिया की बहुत इच्छा थी कि वह भी कहीं किसी घर में अपने लिए काम ढूंढ ले लेकिन किशन ने बच्चों की देखभाल का हवाला देकर उसे मना कर दिया था । कुछ ही दिनों में मुफलिसी की मार झेल रहा किशन टूट गया था । बुरे बुरे ख्याल उसके दिल और दिमाग पर हावी होने का प्रयास कर रहे थे । उसका दिल कहता ‘ क्या फायदा ऐसे जीने से ? अपने बीवी बच्चों की भी देखभाल नहीं कर सकता तो धिक्कार है उसके जीने पर ‘ लेकिन तुरंत ही उसके अंतर्मन ने चेताया था ‘ किशन ! आत्महत्या कोई समस्या का समाधान नहीं ! और फिर मरने के बाद क्या सारी मुसीबतें कम हो जाएंगी उसके बीवी बच्चों की ? ‘ और फिर बहुत सोच विचार कर कल ही उसने रधिया से अपने मन की बात कहकर उसकी सलाह माँगी थी । रधिया से बात करके उसने तय किया था कि वह कुछ दिन के लिए अकेला गॉंव लौट जाए । लाला रामलाल उसके खेत के बदले उसे पाँच लाख देने के लिए तैयार था । खेत बेचकर मिले हुए पैसों से वह यहाँ शहर में कोई छोटा मोटा रोजगार कर लेगा और ईश्वर चाहेगा तो सब ठीक हो जायेगा । लेकिन गाँव जाने के लिए उसके पास किराए के पैसे भी नहीं थे सो उसने यही तय किया था कि दो तीन दिन मजदूरी कर ले तो कुछ पैसे खर्चे के रधिया को देकर वह अपने गाँव चला जाए । यही सब सोचकर वह आज नुक्कड़ पर बड़े सवेरे ही पहुँच गया था लेकिन हाय रे उसकी किस्मत ! मजबूत कदकाठी और मेहनती होने के बावजूद मात्र इस क्षेत्र में नया होने की वजह से उसे काम नहीं मिला था ।
बूँदाबाँदी ने भयानक बारिश का विकराल रूप ले लिया । आसमान में छाये काले बादलों ने सुबह ग्यारह बजे ही शाम के अंधेरे का अहसास करा दिया । रास्ते में कई जगह सड़क पर उसे घुटनों के ऊपर तक पानी भरा हुआ दिखा । किसी तरह वह उस सड़क पर अपने घर के सामने पहुँचा जहाँ उसका घर था । यह शहर का निचला इलाका था ।
सड़क नदी में तब्दील हो चुकी थी । उसकी कमर के बराबर पानी सड़क पर जमा हुआ था । सड़क पर कुछ बच्चे पानी में खेल रहे थे । किशन ने देखा उन बच्चों में सोनू और मोनू भी थे जो दूसरे बच्चों के साथ ही पानी का आनंद ले रहे थे । मस्ती में डूबे बच्चों को देखकर किशन के चेहरे पर मुस्कान आ गई । बच्चों को देखकर लग ही नहीं रहा था कि वो कल से भूखे हैं । ईसी को तो बचपन कहा जाता है । हर गम से बेपरवाह ! तभी उसकी नजर रधिया पर पड़ी जो कमर तक पानी में भी हाथ में डंडा लिए सोनू और मोनू को डपट कर घर चलने के लिए कह रही थी । किशन रधिया के नजदीक पहुँच गया । उसको शांत करते हुए बोला ,” उनको थोड़ी देर खुश हो लेने दो रधिया ! और फिर घर में क्या रखा है ? वहां भी तो ऐसे ही पानी भरा होगा न ? ” अभी रधिया कुछ जवाब दे भी नहीं पाई थी कि एक बहुत तेज धमाके की आवाज के साथ ही चारों तरफ धूल का गुबार वातावरण में फ़ैल गया । बारिश और तेज हो गई थी । किशन ने आवाज की दिशा में देखा । उसकी ईमारत जिसमें वह रहता था मलबे में तब्दील हो चुकी थी । उसके चेहरे की मुस्कान गहरी हो गई । उसे मुस्कुराते देख असमंजस और गम में डूबी रधिया ने कहा ,” हमारी रही सही जमापूँजी जो भी थी उस मलबे में खो गई है और तुम्हें हँसी सूझ रही है ? ”
किशन ने रहस्मयी मुस्कान के साथ कहा ,” अरे सोनूवा की माँ ! ईश्वर का शुक्र मनाओ कि तुम और बच्चे बाहर आ गए थे । मैं तो इसलिए हँस रहा हूँ कि ऊपरवाला कितना दयालु है । उसने शाम को हम सभीके पेट भर खाने का इंतजाम कर दिया है । ईमारत गिर गई है और बड़ी जल्दी सेवाभावी लोग हमारी मदद को आ जायेंगे । घड़ियाली आँसु बहाने वाले नेताओं के भी आने की पूरी संभावना है । ”
” सही कह रहे हो ! हादसे के पहले तो हमारी सुध लेने वाला कोई नहीं था । लेकिन अब इस बरसात की तरह ही हमदर्दी दिखानेवालों की बाढ़ आ जायेगी । ” कहते हुए रधिया ने भी मुस्कुराते हुए किशन का हाथ थाम लिया था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

4 thoughts on “हमदर्दी

  • लीला तिवानी

    प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी,
    सोच बदलो सितारे बदल जाएंगे,
    नज़र बदलो नज़ारे बदल जाएंगे.
    किशन की सोच बदली और चेहरे पर खुशी का नूर छा गया. अत्यंत सुंदर, सार्थक व सटीक कहानी के लिए आभार.

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीया बहनजी ! सही कहा आपने ! नजरिये से ही नजर में फर्क आ जाता है । सुन्दर प्रतिक्रिया के लिये दिल से धन्यवाद ! 🙏

  • रविन्दर सूदन

    आदरणीय राजकुमार जी, सोच बदलने से संसार बदल जाता है, आपकी कहानी यह दर्शा
    रही है की मनुष्य यदि अपनी सोच बदल दे तो वह साधू हो जाता है । जैसे फ़क़ीर फाका
    करके, फटे कपड़ों में भी मस्त मौला रहता है, और अमीर आदमी सोने से लदा रहने के बाद
    भी दुखी रहता है । सोच बदलने से संसार बदल जाता है । बहुत सुन्दर कहानी, बधाई ।

    • राजकुमार कांदु

      आदरणीय भाईसाहब जी ! सही कहा आपने ! सोच बदलने से संसार बदल जाता है और जो अपनी सोच को सकारात्मक रखता है उसकी मदद भगवान भी करते हैं । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए दिल से धन्यवाद !

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