कविता

मधुमास

बौरों से लदी हो अमराई ,
कोयल की कुहूकती तान रहे |
कुसुमों से भरी हो हर क्यारी ,
मन उपवन में मधुमास रहे |

चहुँ ओर सुगंध बसे ऐसी ,
मन आनंदित मृदु हास रहे |
पुरवाई चले नित सुख बरसे ,
हर अंतर में मधुमास रहे |

पेड़ों पे नई कोंपल फूटे ,
फूलों पे मधुप गुंजार करें |
हर हृदय प्रेम से रहे पूर्ण ,
छाया हर पल मधुमास रहे |

सुख दुख में सदा एक रस हों,
मन में उत्साह अदम्य रहे |
मुस्कान अधर पर रहे खिली ,
हर आँगन में मधुमास रहे |

वाणी में सदा मधुरता हो ,
ऐसा ही सदा प्रयास रहे |
फैले जग में सुंदर सुवास ,
चहुँ ओर सदा मधुमास रहे |

जन जीवन में नव जीवन हो ,
हर गाँव गली खुशियाँ बरसे |
चहुँ ओर अभाव न शेष रहे ,
सर्वत्र सदा मधुमास रहे |

धानी चूनर पीले बूटे ,
धरती दुल्हन सी सज जाए |
नयनों की ज्योति न हो फीकी,
हर आँखों में मधुमास रहे |

किलकारी गूँजे घर आँगन ,
हर ऋतु मधु ऋतु सी खिल जाए|
मधु “मंजूषा” भर दो इतनी ,
जग में छाया मधुमास रहे |

मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश )

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016