कविता

ख्वाहिशो के पंख

ख्वाहिशो के पंख यू ही फडफडातें है।
कब पूरे होते है सपने सारे।
कभी जमीं नही मिलती ख्वाहिशो को,
कभी आकाश भी कम पड जाता है उडने को,
काश,
न होते जागती ख्वाहिशो के पर,
न जागते सपने हमारे,
मन ही मन दफन हो जाती है ये ख्वाहिशे सारी…………
है जीवन चंद पलो का,
गिनती की है सांसे भी सारी,
क्यूं बस ऐसे ही सपनो में,
वक्त का जाया कर दें,
क्यूं न हम सांसो की सीमित सपने दे दे
काश,
यू ही जागती रातों में न सजते सपने हमारे………….
ख्वाहिशो के बिना लक्ष्यहीन जीवन,
ख्वाहिशो के संग तिल-तिल जलता ये जीवन,
है ये अपूर्ण ख्वाहिशो का घर,
काश,
साकार हो जाते ये सपने सारेे…………
हर शाख पर फल नही लगते,
ना हर बादल की बूंद बरसती है,
हर जीवन का होता अपना इक अंत,
काश,
न होते ख्वाहिशो के धागे………
कब पूरे होते है सपने सारे………….

शोभा गोयल

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