लघुकथा

नाम करेगा रोशन

सुमित्रा अपने कमरे में टहल रही थी। उनका मन काफी उद्विग्न था। बाहर से आ रही आवाजें उन्हें और भी बैचेन कर रही थी।चार ही तो दिन हुए थे माणिक के बाबूजी को गए हुए और आज उसने इतना बड़ा बखेड़ा खड़ा कर दिया।उसने आज साफ साफ शब्दों में कह दिया कि वह मृत्यु भोज जैसी कुरीतियों का समर्थन नहीं करता अतः वह किसी तरह का खर्च नहीं करेगा।सन्न रह गई थी सुमित्रा कुछ पल के लिए। उन्होंने माणिक को समझाने की बहुत कोशिश की पर वह नहीं माना।

सुमित्रा को अपनी तकदीर पर रोना आ गया। उन्हें समझ नहीं आ रहा था वह क्या कहे। वे तो बस माणिक की ओर देखती रह गईं। अभी तो उसके बाबूजी की चिता तक ठंडी नहीं हुई कि उसने ऐसे रंग दिखा दिए।बेटे तो ना जाने क्या क्या कर जाते हैं अपने पिता के लिए, मगर इसे पिता से अधिक पैसा प्यारा हो गया। उसके बाबू जी उससे कितना प्यार करते थे, हमेशा कहते थे, ‘देखना सुमित्रा एक दिन माणिक मेरा नाम रोशन करेगा,’ “देख लीजिए, कैसा नाम रोशन किया है आपके माणिक ने आपका।” सुमित्रा की आंखें फिर बरसने लगीं।

“दादी पापा आपको बुला रहे हैं। सरपंच दादा आए हैं।” पोते ने कहा तो सुमित्रा परेशान हो उठी जाने अब इस माणिक ने क्या कर दिया। वह बैठक में चली आईं। दरवाजे की ओट में बहू भी आकर खड़ी हो गई।सुमित्रा ने देखा गांव के और भी कई महत्वपूर्ण लोग बैठक में मौजूद थे और सभी सरपंच जी की ओर देख रहे थे।

“भाभी आज माणिक ने साबित कर दिया कि वह आपका ही बेटा हो सकता है।आपने और रघुवीर भाई ने जिस तरह हमेशा खुद से पहले दूसरों के बारे में सोचा ठीक वैसे ही संस्कार आपने माणिक को दिए हैं।माणिक ने रघुवीर भाई के नाम पर गांव में एक अस्पताल खोलने का फैसला किया है।इसीलिए गांव की पंचायत ने फैसला किया है कि माणिक का उसकी इस लोक कल्याणकारी सोच के लिए सार्वजनिक रुप से सम्मान किया जाएगा।” सरपंच जी गदगद स्वर में बताया तो सुमित्रा हैरान रह गईं, वह माणिक को निहारती ही रह गईं जो निर्विकार भाव से सरपंचजी की बातें सुन रहा था।

“नहीं चाचाजी यह अस्पताल मैंने किसी सम्मान के लिए नहीं खोला है, मुझे किसी सम्मान का कोई लोभ नहीं।मैं बस इतना चाहता हूं कि जिस दर्द से मैं गुज़रा हूं वह दर्द हमारे गांव में किसी और को ना सहना पड़े।अगर उस दिन मेरे बाबूजी को सही समय पर इलाज मिल जाता तो वो आज जिंदा होते।मैं उन्हें तो नहीं बचा पाया पर गांव में एक अस्पाल खुलवाने की हर संभव कोशिश करूंगा। आपसे एक ही विनती है आप लोग जो पैसा मेरे सम्मान में खर्च करना चाहते हैं वह इस अस्पताल के लिए दान कर दीजिए। यह मेरे सम्मान से अधिक जरूरी है।” इतना कहकर माणिक ने हाथ जोड़ दिए।

मणिक की आखों में आंसू आ गए। सुमित्रा ने भी उसे कसकर गले से लगा लिया। आज फिर दोनों मां बेटा मिलकर रो दिए।सुमित्रा के कानों में रघुवीर के शब्द गूंज रहे थे, ‘मैनें कहा था ना सुमित्रा, एक दिन माणिक मेरा नाम रोशन करेगा। देख! कर दिया ना।’

अंकिता भार्गव

पिता का नाम -- वी. एल. भार्गव माता का नाम -- कान्ता देवी शिक्षा -- एम. ए. (लोक प्रशासन) रूचियां --- अध्ययन एवं लेखन