लघुकथा

मोबाइल चोर

“ईश्वर सब देखता है, जब उसकी बेआवाज़ लाठी पड़ती है तो न्याय होकर ही रहता है।जो दूसरों के सामान पर अपनी नीयत खराब करते हैं, उनका कभी भला नहीं हो सकता।” अम्माजी के स्वर में बस दर्द ही दर्द था, होता भी क्यों नहीं बेटे का इतना बड़ा नुकसान मां कैसे सहे भला। दस दिन से अधिक हो गए थे बेटे का महंगा मोबाइल खोए, कौन ले गया? कहां ले गया? कोई सुराग ही नहीं, बेचारा ढ़ूंढ़ ढ़ूंढ़कर थक गया, पुलिस में भी रिपोर्ट करा आया पर उससे भी क्या होना था? अम्माजी के ख्याल से यह घटना उतर ही नहीं रही थी बस रह रहकर एक टीस दे रही थी और उसी टीस की कसक थी जो अम्माजी उस चोर को कोस रही थीं।

“नहीं, नहीं, अम्माजी ऐसा ना कहो, चोर ही सही, है तो वह भी किसी का बेटा, किसी का पति, बद्दुआ ना दो, यह मनाओ कि ईश्वर उसे सद्बुद्धि दे, वह भैया का मोबाइल वापस कर दे और आगे से ग़लत काम करने से भी तौबा कर ले।” विमला अम्माजी की बातें ज्यादा देर तक नहीं सुन पाई और चित्कार सी कर उठी।अम्माजी ने आश्चर्य से विमला का मुंह ताक रही थीं, कल तक तो यह विमला चोर को उनसे भी ज्यादा भला बुरा कह रही थी फिर आज क्या हो गया? अम्माजी की नज़रों का विमला सामना नहीं कर पाई तो उसने काम के बहाने मुंह फेर लिया। कैसे बता देती उन्हें कि कल उसका बेटा भी किसी का महंगा मोबाइल…

अंकिता भार्गव

पिता का नाम -- वी. एल. भार्गव माता का नाम -- कान्ता देवी शिक्षा -- एम. ए. (लोक प्रशासन) रूचियां --- अध्ययन एवं लेखन