मुक्तक/दोहा

दोहे-किसान

(1)सदियों से इस देश में, मरता रहा किसान।
कितनी सस्ती है यहाँ,देखो इनकी जान।
(2)कर्ज तले डूबा रहा,निर्धन हुआ किसान।
बरखा ने मारा कभी,सूखे ने ली जान।
(3)जय किसान की बोलते,नेताजी दिनरात।
ऋण माफ़ी की मांग पें,दिखलाते औकात।
(4)रात रात भर कर रहें,कृषक देश के काम।
मण्डी में मिलता नहीं,फिर भी पूरा दाम।
(5)अर्थव्यवस्था की रखें,कन्धों पर पतवार।
कृषक आज वे देश के,खड़े बीच मझधार।

बलराम निगम

बलराम निगम

कस्बा-बकानी, जिला-झालावाड़, राजस्थान