लघुकथा

तर्पण

नवीन गुप्ता जी हर साल कनागतों में आने वाली अमावस्या को बहुत बड़ा भंडारा रखते । आज़ भी उन्होंने भंडारा रक्खा हुआ था । पूरे शहर से ग़रीबों की लाईन लगी थी । वे सबको खाने के साथ कपड़े और उनकी ज़रूरत का सारा सामान दे रहे थे । सब बहुत ख़ुश नज़र आ रहे थे और लगातार दुआओं का सिलसिला ज़ारी था ।

वे सब आपस में बुदबुदा रहे थे कि बहुत नेकदिल इंसान हैं हर साल ऐसे ही करते हैं और पूरे साल जब भी किसी को किसी चीज़ की ज़रूरत होती है तब भी वह उनकी सहायता करते हैं । पता नहीं भगवान ने इन्हें औलाद क्यों नहीं दी और इनके तो अभी माता – पिता भी हैं फिर भी हर साल यह परिवार ऐसा करता है , पता नहीं इसके पीछे क्या कारण हो सकता है ?

एक व्यक्ति उनकी बाँतें सुन रहा था । जब उसकी बारी आयी तो उसने पूछ ही लिया ? “ श्रीमान जी कृप्या मेरी शंका का निवारण कीजिये कि आप ऐसा हर साल क्यों करते हैं ?”

जो ज़वाब आया वह सुनकर उसकी आँखें खुली की खुली ही रह गईं, मस्तक झुक गया और हाथ आदर से जुड़ गये ।

वे शब्द आप भी सुनिये “ इस देश में कितने लोग ऐसे हैं जिनका श्राद्ध नहीं हो पाता है चाहे कुछ भी कारण रहा हो जैसे – सड़क दुर्घटना या फिर किनारे पर सो रहे लोग आदि ऐसे व्यक्ति जिनकी पहचान नहीं हो पाती । उन सबके लिये मैंने यह दिन चुना है , कहते हैं कि जिनकी मरण की तारीख़ याद ना हो तो उनके लिये इस दिन तर्पण किया जाता है । “ शायद अब आप सभी की शंका का निवारण हो गया होगा ।

— नूतन गर्ग ( दिल्ली )

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक

One thought on “तर्पण

  • नूतन गर्ग

    कुछ लोग मन से समाज़ सेवा करते हैं जिससे एक सुखद अनुभूति का अहसास होता है । ऐसे समाज़ सेवकों को मेरा सादर अभिनंदन 🙏

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