लघुकथा

ऑपरेशन

”हां बेटा, पापा जी के ऑपरेशन के बारे में क्या सोचा?” पड़ोसी जैन साहब ने सुमित से पूछा.
”अंकल जी, ओपन हार्ट सर्जरी होगी, उसमें 4 लाख लग जाएंगे, इतना धन कहां है हमारे पास?” सुमित ने सिर उठाकर कहा, ”और फिर उनकी उम्र भी तो हो गई है, अब ऑपरेशन से क्या फायदा होगा?” जैन साहब उसकी अकड़ को देखते ही रह गए.
”यह अपनी बीजी से पूछो. क्या यही दिन देखने के लिए तुम्हारे पापा ने इतना कमाया? सब बच्चों को लिखाया-पढ़ाया, तुम्हारा बिजनेस शुरु करवाया? ठीक है, कल ऑपरेशन होगा, तुम्हारी मर्जी हो तो अस्पताल में आ जाना.”
”ऑपरेशन से पहले दो लाख जमा करवाने होंगे, उनका क्या होगा?” सुमित की अकड़ अभी तक बरकरार थी. 
”तुम्हारे पापा हैं तो क्या हुआ!, हमारे दोस्त भी हैं और पूरी गली की शान भी. उन पर 2-4 लाख वारने में हमें कोई दिक्कत नहीं है.” जैन साहब ने जाने से पहले पीछे मुड़कर भी नहीं देखा. हक्के-बक्के सुमित को काटो तो खून नहीं. सचमुच ऐसा हो गया, तो हम तो कहीं के नहीं रहेंगे!
झट से पत्नी से चेकबुक निकलवाई और गाड़ी स्टार्ट करके अस्पताल चल दिया. थोड़ी देर बाद अस्पताल से जैन साहब को डॉक्टर साहब का फोन आया- ”आपके मित्र का ऑपरेशन सक्सेजफुली हो गया है. उनके बेटे को आपसे बात करते हुए शर्म आ रही थी, इसलिए मैंने फोन किया है.” जैन साहब डॉक्टर साहब को धन्यवाद देते हुए तुरंत अस्पताल जाकर व्यक्तिगत रूप से डॉक्टर साहब और मरीज के बेटे से मिलकर सांत्वना देने के लिए चल पड़े.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “ऑपरेशन

  • लीला तिवानी

    अक्सर बच्चे अपना सब कुछ लुटाकर भी अपने अभिभावकों की सुरक्षा में तत्पर रहते हैं, लेकिन कुछ बच्चे धन की लालच में गुमराह हो जाते हैं और इंसानियत तक भूल जाते हैं. ऐसे में शिद्दत से कोई उनको सही राह दिखाए, तो वे संभल भी जाते हैं. यहां पड़ोसी जैन साहब ने यही भूमिका निभाई.

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