कविता

मेरे हिस्से आंँसू आये

मेरे मन की पीड़ा आखिर
जाकर तुमको कौन सुनाये
तुमको हँसी खुदा ने सौपी
मेरे हिस्से आंँसू आये ।

आशाओं के सूने पथ पर
थक -थक कर चल लेता हूं
एक दीप हूँ खण्डर का मैं
बुझते बुझते जल लेता हूं ।

दिल तुमसे नाराज बहुत है
इन आँखो में लाज बहुत है
बाहर – बाहर चुप लगता है
भीतर से आवाज बहुत  है।

आग अगर भीतर बहुत हो
तब ये आँखे भर आती है
जीवन के अथाह सागर में
जलता ही जीवन है अपना।

मन का टूटा साज बहुत है
भीतर से आवाज बहुत है
भले मूल मत लौटाना तुम
लेकिन तुम पर ब्याज बहुत है।

— कालिका प्रसाद सेमवाल

कालिका प्रसाद सेमवाल

प्रवक्ता जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, रतूडा़, रुद्रप्रयाग ( उत्तराखण्ड) पिन 246171