कहानी

लापरवाही

आज शिवानी अपने पति सौरभ के साथ अपने दोनों बच्चों (पांच साल की बेटी शुभी और छह महीने का बेटा शनि) को लेकर बाजार गयी हुई थी । उनके  मकान मालिक के बेटी की शादी होने वाली थी इसलिए उन्हें कुछ सामान खरीदना था । सौरभ ने भी आज  छुट्टी ले रखी थी ऑफिस से।
बाजार पहुंचते ही सौरभ के ऑफिस से फोन आ गया ,” हाँ.. हेलो$$$$..हाँ..जी सर…..जी ओके..! अभी आता हूँ।”ऑफिस से कॉल था
“शिवानी ! मैं अभी दस मिनट में आता हूँ कुछ जरूरी काम आ गया है ऑफिस में …तब तक तुम्हारा जो काम था बुटीक की दुकान में ,देखो मैं आता हूँ । ” कहकर सौरभ चले गए ऑफिस।

सौरभ का ऑफिस बाजार के बिलकुल पास ही था । बुटीक की दुकान पर शिवानी कुछ कपड़े पसन्द कर रही थी वहीं सिलने को भी देना था । वहीं बुटीक वाली की बेटी तन्वी का साथ पाकर शुभी खेल में व्यस्त हो गयी।
बुटीक वाली तन्वी की माँ, ने कहा  ,” जाने दीजिए शुभी को ! ,जब तक आप समान ले रहीं तब तक दोनों  यहीं दालान में खेलती रहेंगी । ” और दोनों खुश हो गयी ये सुनकर , क्योंकि दोनों एक-दूसरे को जानती भी थीं ।  एक ही क्लास में एल के जी में पढ़ती थीं । शुभी औ तन्वी दोनों मग्न हो गयीं खेलने मे ।
छह महीने का बेटा शनि  वहीं रोने लगा तो उसे शांत कराने को शिवानी वहीं बैठ गयी बेटे को लेकर दुकान में । वहीं बैठकर कपड़े देखने लगी, तन्वी की माँ भी कपड़े दिखाने में व्यस्त थीं ।
तभी  शुभी ने अपनी माँ को दुकान में सामने न देखकर अपनी सहेली तन्वी से पूंछा, ” मेरी माँ तुम्हारे दुकान में नही दिख रही । चली गईं क्या ?”तन्वी ने कहा ,”  हाँ शायद चली गईं दिख तो नही रहीं …वो उधर ही गई होंगी ।”
जो  रास्ता बाजार से होकर सीधे रेलवे स्टेशन को जाता है., उधर ही इशारा कर बता दिया तन्वी ने और बोली, ”  तुम्हारी मम्मी तुम्हे छोड़कर  क्यूँ  चली गईं..?
छोटी बच्ची शुभी को लगा माँ सच मे चली गईं और रोते हुए चल दी माँ को खोजने।
और मासूम तन्वी उसे जाते हुए देख रही थी।
शिवानी जब दुकान से बाहर निकली शुभी को देखने तो तन्वी को अकेले खड़े देख,उसने झट से पूंछा,”बेटा ,,शुभी कहां है..? ”
“अरे आंटी..आप यहां हो..? शुभी तो आपको ढूढ़ने उधर चली गयी,हमे लगा आप सच में चली गईं । ”
शिवानी बुरी तरह घबरा गई ।
दो मिनट भी न लगे और शुभी,तन्वी की आँखों से ओझल हो गई ।

” सॉरी आंटी !.हमे नही पता था। ”
ये सुनकर तन्वी की माँ भी बाहर आ गईं ,तन्वी से कहने लगीं ,” बेटा आपने पहले क्यूँ नही बताया ?”
“माँ..अभी तो गयी,वैसे ही आंटी निकल आयीं बाहर ! “.
” अभी ज्यादा दूर न गयी होगी ,आप परेशान न होइये…”चलिये..ढूढते हैं ! ”
शिवानी को दिलासा देते हुए तन्वी की माँ ने कहा..!
” कहां गयी होगी मेरी बच्ची…? हे भगवान, हे माता रानी ! मेरी शुभी मेरी बच्ची को मुझसे मिला दो !” रोती,बिलखती बेटे को गोद में लिए बदहवास सी बेटी को ढूंढने में लग गई !”
पति सौरभ” को फोन करके बता दी,वो भी आ गए।सौरभ को देख रोती हुई शिवानी ने कहा। बहुत बड़ी भूल हो गयी मुझसे जो ,जो मैंने बच्चियों को यहां अकेले छोंड़ दिया खेलने को। यहीं अंदर ही खेल रहीं थीं दोनों। मैं बैठ गयी तो उसे लगा मै चली गई !” रोओ नही शिवानी,मिल जायेगी हमारी बच्ची । तुम शनि को सम्हालो मैं देखता हूँ,सौरभ ने सान्त्वना देते हुए कहा..!”शुभी के खोने की खबर सुन उनके मकान-मालिक और मोहल्ले के कुछ लोग भी पहुँच गये ।सभी लोग शुभी को ढूंढने में लग गए !”आधा घण्टा समय बीत गया शुभी का पता नही चला अब तक।
शिवानी का रो,रो कर बहुत बुरा हाल हो गया था। मन में कई तरह के ख्याल आया रहे थे..। पास ही में रेलवे स्टेशन था, वो बुरी तरह डर गई थी कि कहीं मेरी बेटी को बहला,फुसला कर कोई ट्रेन में न ले गया हो..। इस भीड़ भरे बाजार में कहां गई मेरी बच्ची ?” हे भगवान” शिवानी के मन में हजारों अनिष्ट की शंकाए जन्म ले रही थी। तभी सौरभ के दोस्त का फोन आया,कि एक बच्ची अकेली रोते हुए मिली है,हमारे पड़ोसी के दुकान में है।
उनका अभी फोन आया था ।पता दे रहा हूँ,आप इस जगह पर जाकर देखो तो कहीं वो शुभी तो नही ?, इतना सुनते ही सौरभ दौड़ लगाए उस दुकान तरफ,जो कि बुटीक से बस पांच सौ मीटर की दूरी पर था। पीछे-पीछे शिवानी भी गई, और सभी लोग जो उनके साथ थे । गालों पे सूखे आंसू,हांथ में चॉकलेट का पैकेट लिए शुभी बैठी थी,मिश्रा जी की दुकान में।
अपनी बेटी को उस स्थान में पाकर  सौरभ और शिवानी के जान में जान आई!” मिश्रा जी और सौरभ जानते थे एकदूसरे को,पर मिश्रा जी शुभी को नही पहचान पाये थे।उनके लिए  शुभी अंजान थी। अपने परिवार से बिछुड़कर डरी-सहमी रोती हुई शुभी बस इतना बोल पाई थी कि मेरी माँ नही मिल रहीं, मुझे वहां दुकान में छोंड़के चली गईं ।और पापा को पूंछे तो बोली थाने में हैं।तभी मैं थाने में अपने पड़ोसी मित्र शर्मा जी को फोन लगाया। हमे तो पता भी नही था कि ये आपकी बेटी है। रोते हुए स्टेशन तरफ बढ़ी जा रही थी,देखकर हमे लगा कि ये बच्ची शायद अपनों से बिछुड़ गई है।बड़े मुश्किल में इसे यहां बैठा पाए हैं…अभी तक रोती हुई बैठी थी। जब मैंने कहा कि आपके पापा -मम्मी आ रहे हैं,तब चुप हुई है। अब जाके मुश्कान आई इसके चेहरे पर ।चहकने लगी शुभी अपनों को पाकर। दोनों अपने नन्ही परी को अपने कलेजे से लगाकर खूब प्यार किये। बहुत,बहुत शुक्रिया मिश्रा जी” कोई भी अनिष्ट होने से बचा लिए,जीवन भर उपकार रहेगा आपका हम पर ,सौरभ ने कहा!
और बेटी को गोद में लेकर चल दिए   वहीं माथा टेकने मंदिर की ओर!!

सरला तिवारी 

सरला तिवारी

मूल स्थान रीवा (म.प्र.) निवासी- जिला अनूपपुर (म.प्र.) शिक्षा - स्नातक गृहिणी अध्ययन और लेखन में रूचि है. ईमेल पता Sarlatiwari522@gmail.com