हास्य व्यंग्य

बोरियतनामा

मैं बैठे-बैठे बोर हो रहा हूँ..बोरियत भगाने के लिए कुछ लिखने की सूझ रही है..लेकिन यहाँ का दृश्यमान वातावरण बोरियत भरा होने के कारण विषय-विहीन प्रतीत हो रहा है, फिर भी लिख रहा हूँ…एक ओर कुछ बड़े-बूढ़े और बच्चे ताजिए का जुलूस उठने के इंतजार में बोर हो रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर सब्जी बेंचने वाला ग्राहक के इंतजार में..! इधर मेरे अगल-बगल बैठे चार-छह लोग बोरियत से बचने के लिए आपस में बतिया रहे हैं, तो वहीं कुछ कुर्सियाँ अपने खालीपन की बोरियत में बोर हुए आदमी की तलाश कर रहीं हैं। और उधर सामने छत पर खड़ी वह बेचारी अकेली लड़की भी इधर-उधर देखते हुए जैसे अपनी बोरियत दूर भगाने का प्रयास कर रही है…

…और अब मेरे सामने भुना चना रख दिया गया है, मैं अपनी बोरियत भगाने की गरज में एक-एक चना लेकर टूँगना शुरू कर देता हूँ..लेकिन यह महराया चना अपनी बोरियत से मेरी बोरियत द्विगुणित कर रहा है…निश्चित ही भड़भुजवा और दुकानदार दोनों लम्बी अवधि वाले बोरियत के शिकार होंगे…इधर जलेबी-समोसे वाला दुकानदार भी बोरियत का मारा दिखाई पड़ रहा है, जो अपनी ओर निहारते उस कुत्ते की बोरियत से अनजान है..! बेचारा कुत्ता उसे निहार-निहार कर बोर हो रहा है…जबकि वहीं जलेबी और समोसे पर बैठ-बैठ कर मक्खियाँ बोर हो रहीं हैं और बेचारी भिनभिना-भिनभिना कर अपनी बोरियत दूर कर रही हैं..! यहाँ बोरियत का ऐसा आलम है कि चौराहे पर लगा स्वच्छता का संदेश देने वाला वह फ्लैक्सी भी सामने पड़े कूड़े की ओर देख देख अपनी बोरियत में फटा जा रहा है, और बेचारे कूड़ागण हमारी बोरियत में खलल न पड़े, यह सोच-सोचकर यहाँ-वहाँ पड़े-पड़े बोर हो रहे हैं..! मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे, यहाँ क्या आदमी…क्या जानवर और क्या कूड़ा…सभी अपनी बोरियत के साथ एक दूसरे की बोरियत से भी बोर हो रहे हैं…

हाँ. मैं देख रहा हूँ…काफी देर से बैठा एक आदमी अपनी बोरियत से बोर होकर दूसरी जगह बोर होने के लिए उठकर चल दिया..तथा…अब तक आसमान में छाये छाये बोर हो रहे बादल भी अपनी बोरियत दूर करने के लिए बूँद बन टपकने लगे हैं और इन बूँदों से हमारी बोरियत में खलल पड़ा..हाँ, गजब! एक की बोरियत दूसरे की बोरियत भगाने के काम आती है..! लेकिन बादलों को आसमान में बोर होना मंजूर है, हमारी बोरियत दूर होना नहीं..और बादल बूँद बनना बंद हो गए..!

खैर, इस कायनात की बदौलत हमारी बोरियत दूर होने से रहा..! लेकिन यहाँ का मानव जरूर बोरियत दूर करने में माहिर है..क्योंकि अभी-अभी बोरियत दूर करने के लिए लिखने की अपेक्षा बात सुनने की विधि पर ध्यान गया…बातों का लब्बोलुआब यह निकल कर आया है कि कुछ अपने कार्यक्षेत्र में इस हद तक बोरियत के मारे होते हैं कि किसी चौराहे पर “चींटी की एक टांग क्यों टूटी” इसे जानने के लिए हलकान हो उठते हैं..! वाह!! यह महानता से ओतप्रोत टाइप की बोरियत है और इस टाइप की बोरियत से देश सुधारा जा सकता है..!!! खैर..

जुलूस आने की सुगबुगाहट से हमारी बोरियत में खलल पड़ने का अंदेशा उत्पन्न हो गया है..अरे हाँ! एक बात और ये जुलूस-फुलूस बोरियत में डूबे लोगों की बोरियत के विरूद्ध सामूहिक प्रतिक्रिया है..जिस जुलूस में जितनी भीड़ होगी उसी अनुपात में उसमें बोरों की संख्या होगी..हाँ “बोरियत-भाव” की एक खासियत यह कि यह धर्म, जाति, सम्प्रदाय से परे रहने वाली चीज होती है और सही मायने में इसमें एक टाइप का सेक्युलरिज्म होता है, हाँ इस सीमा तक हमारा देश बेहद सेक्युलर देश है..इस बात का अनुमान विभिन्न समयों पर उठते-बैठते सड़क चौराहों पर निकलते जुलूसों को देखकर लगाया जा सकता है….

चलते-चलते हम एक बात और कहना चाहते हैं..जिस नेता के पीछे जितनी अधिक भीड़ होगी वह नेता या तो लोगों की बोरियत पहचानने में माहिर होगा या फिर बोर हो रहे लोगों का सरताज होगा! लेकिन इस देश में बोरियत की भी अपनी एक समस्या है, यहाँ बोरियत किसी एक बात के आधार पर टिकाऊ नहीं, कि कहें, बेटा! हम तो इस कारण से ही बोर हो रहे हैं..!! यहाँ बोरियत एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है…आज इस बात से तो कल उस बात से हमें बोर होना ही है..इसी वजह से बोरों के सरताजों या कहें बोरियत के विशेषज्ञों के लिए सार्वकालिक कठिनाई बनी रहती है..ये बेचारे! बोरियत को पहचानने और उसके पीछे के कारण पर शोध करते हुए बोर हो-होकर हलकान हो जाते हैं..और बोरियत है कि दूर होती ही नहीं…

लो भाई! जुलूस अब पास आ गया हमारी बोरियत दूर हुई..लेकिन हमने आपको बोरियत- बोरियत पढ़ाकर जरूर बोर कर दिया है… कोई बात नहीं, क्षमा करिएगा..आखिर यह बोरियतनामा ही तो है..!!!

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.