लघुकथा

हौसला

”कदम चूम लेती है चलकर के मंजिल 
अगर आदमी हौसला न हारे.”
आज सचमुच मंजिल खुद चलकर आई है और सुदर्शन के कदम चूम रही है. उसे आज भी बरबस उस दिन की स्मृति हो आती है, जब बैडमिंटन खेलते हुए पैर की हड्डी टूट जाने पर डॉक्टर ने उससे कहा था-

”सुदर्शन रमानी, बहुत दुःख से मुझे कहना पड़ रहा है, कि आपके पैर की हड्डी टूट गई है, अब आप बैडमिंटन नहीं खेल पाएंगे.”

”तो क्या हुआ, हड्डी टूटने से सुदर्शन की जिंदगी थोड़े ही न खत्म हो गई है, आराम करते हुए मेरा बेटा कुछ भी कर सकता है.” पापा ने हौसला बढ़ाते हुए कहा था. असीम शारीरिक और मानसिक पीड़ा के बावजूद सुदर्शन मुस्कुरा दिया था- ”बिलकुल ठीक कहा पापा, मैं बैठे-बैठे बहुत कुछ कर सकता हूं.” उसने कहा था. उसने कहा ही नहीं, करके भी दिखा दिया.

उसी दिन से उसने इंटरनेट का सहारा लेते हुए किसी हुनर के बारे में जानना शुरु किया. हुनर भी ऐसा, जो आम न हो.

इंटरनेट विडियोज की मदद से पेंसिल पर नक्काशी सीखना शुरू किया. निराश न होते हुए सुदर्शन ने अपनी ऊर्जा पेंसिल की नोक को कुरेदने में लगाई और कलाकृतियां तैयार कीं. सुदर्शन ने पेंसिल से लकड़ी और ग्रेफाइट पर कलाकृतियां उकेरने का अभ्यास शुरू किया और पीछे मुड़कर नहीं देखा. यह आसान नहीं था, क्योंकि यह कला भारत में बहुत लोकप्रिय नहीं है. कुछ वीडियोज ने उसको शुरुआती चीजें सिखाईं, बाद में, कोयंबटूर के एक कलाकार ने उसकी मदद की.
यह कला सीखने और घंटों अभ्यास के बाद सुदर्शन अब एक पेंसिल की नोक पर कलाकृतियां, शब्द और वस्तुएं बना सकते हैं. ”यह एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है. अंग्रेजी अक्षरों को बनाने के लिए मेरे कुछ शुरुआती प्रयास बेकार हुए क्योंकि अक्षर बनने से पहले ही नोक टूट जाती थी. नाजुक नोक को बचाते हुए बार-बार अभ्यास करने से इसमें मदद मिली.” सुदर्शन का कहना है.

”यह विचार आपके मन में कैसे आया?” यह पूछने पर सुदर्शन का कहना है- ”पेंसिल की नोक पर की जाने वाली नक्काशी की कला कहां से शुरू हुई यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन इसे शुरू करने वालों में ब्राजील के कलाकार डाल्टन गेटी शामिल हैं, जिन्होंने 1986 में नक्काशी शुरू की थी. कला का यह रूप अमेरिका, मलेशिया, वियतनाम और जापान जैसे देशों में भी लोकप्रिय है.”

सुदर्शन 16 अक्टूबर तक चेन्नै में ललित कला अकादमी में अपनी 25 पेंसिलों पर की नक्काशी का प्रदर्शन कर रहे हैं. लोग उन्हें शादी और जन्मदिन पर तोहफे में देने के लिए पेंसिल की नोक पर नाम लिखने के ऑर्डर भी देते हैं.

”इससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा है और अब मैं एक घंटे में भी ऐसी नक्काशी कर लेता हूं.” सुदर्शन का हौसला कहता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “हौसला

  • लीला तिवानी

    चेन्नै के सुदर्शन रमानी के हौसले को हमारे कोटिशः सलाम. अगर आप लोग भी चेन्नै में ललित कला अकादमी के आसपास रहते हैं, तो इस पेंसिल की नोक कुरेदकर कलाकृति उकेरने के अनोखा हुनर की अनोखी प्रदर्शनी देख सकते हैं. आप भी ऐसे किसी हुनर के फ़नकार हैं, तो कामेंट्स में हमें बता सकते हैं.

Comments are closed.