उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग -6 )

ममता की परीक्षा ( भाग -6 )

बिरजू ! हाँ ! यही नाम था उसका । उम्र लगभग बाइस वर्ष । हट्टा कट्टा मजबूत कसरती बदन का स्वामी ! प्राथमिक शिक्षा उत्तीर्ण करके वह जुट गया था घर के पुश्तैनी काम खेती किसानी में । मेहनत कश होने के साथ ही उसे कुश्ती का भी खासा शौक था । इस बार उसने खेत के बड़े हिस्से में गन्ने की खेती की हुई थी । गन्ने की बहुत अच्छी पैदावार हुई थी । निश्चिंत बिरजू अपने तीन मित्रों के साथ घूमते टहलते गांव से बड़ी दूर उस झील की तरफ आ गया था जिसे भूतिया झील समझ कर कोई भी गांव वाले उधर फटकने की हिम्मत नहीं करते । तीनों मित्रों के साथ झील के नजदीक पहुंच चुका बिरजू झील से थोड़ी दूरी पर ही खड़ी कार देखकर चौंक गया । इसका मतलब कोई है । वह ध्यान से कार की तरफ देखने लगा । सुर्ख टमाटर के रंग वाली वह खूबसूरत विदेशी कार देखकर बिरजू एकटक उसे देखता रहा । उसके मित्रों ने टोका उसे तो वह चिल्लाया , ” तुम लोग चलो ! ” और फिर अपनी एक उंगली दिखाते हुए बोला ,” मैं अभी आता हूँ । ”
बिरजू को कार के पास ही छोड़कर उसके तीनों मित्र आगे बढ़ गए । बिरजू कार की दूसरी तरफ से जाकर उसे नजदीक से निहारना चाहता था । कारों का वह बहुत शौकीन था । उसे यकीन था एक न एक दिन वह भी किसी कार का मालिक होगा । कार की दूसरी तरफ जाते ही उसे सामने एक खरगोश का जोड़ा मजे से कुछ खाते हुए दिखा । वह कुछ देर उन्हें देखता रहा और फिर उन्हें पकड़ने का ख्याल मन में आते ही उसने पलटकर अपने मित्रों की तरफ देखा । लेकिन वहां कोई न था । पलभर में ही तीनों गायब हो चुके थे । शायद झील के किनारे चले गए हों । बिरजू अकेले ही दबे पांव उन खरगोशों की तरफ बढ़ा लेकिन उन्हें शायद बिरजू की आहट मिल गई थी । पलक झपकते ही दोनों खरगोश कुछ दूर दिखाई पड़ रहे एक बिल में गायब हो चुके थे । शिकार हाथ से जाता देख हताश बिरजू वापस कार की तरफ बढ़ने लगा । तभी अचानक उसे किसी लड़की के चीखने की आवाज सुनाई पड़ी । और उसके बाद कुछ अंतराल से लड़की की करुण चीख नियमित उसके कानों में शोर मचाती रही । इस बियाबान में भला कौन लड़की होगी ? कहीं कोई भूत वूत तो नहीं ? गांववाले कहीं सच तो नहीं कह रहे थे ? तमाम आशंकाओं पर विचार करने के बावजूद बिरजू उस आवाज की दिशा में दौड़ पड़ा । हल्की चढ़ाई चढ़ कर वह जैसे ही झील के किनारे पहुंचा वहां का दृश्य देखकर उसका खून खौल उठा । एक बेबस लड़की उसके दो साथियों की गिरफ्त में तड़फड़ा रही थी । दोनों ने उसके हाथ और पैरों को जकड़ा हुआ था और वह उस जकड़न से छूटने का असफल प्रयास कर रही थी और लगातार चीखे जा रही थी जबकि एक साथी अपने गमछे से उसकी आंखें ढंके हुए अपनी पकड़ और कसने का निरंतर प्रयास किये जा रहा था । उनके कुत्सित इरादे को समझकर अगले ही पल बिरजू चिल्ला उठा ,” सुधीर ….! राधे …! मन्नूआ ..! क्या कर रहे हो तुम सब ? छोड़ो उसको ! ”
बिरजू की आवाज सुनकर रजनी की जान में जान आई लेकिन ईसके विपरीत सुधीर ने गमछे की पकड़ और तेज कर दी और चिल्लाया ,” अबे बिरजुआ ! कहाँ रह गया था ? अब देर किया है तो तेरा नंबर सबसे बाद में ……..! ” कहते हुए वह एक कुत्सित हंसी हंसा था । उसकी इस हंसी ने आग में घी का काम किया । बिरजू आपे से बाहर होता हुआ दौड़ पड़ा उनकी तरफ और पहुंचते ही टूट पड़ा उन दोनों लड़कों पर जिन्होंने रजनी के हाथों और पैरों को जकड़ रखा था । असावधान राधे और मन्नू उसका हमला झेल न सके और झील के पानी में गिर गए । ” अरे बिरजू ! ये क्या कर रहा है बे ? कहीं तू पगला तो नहीं गया है ? अरे हम तेरे मित्र हैं ! ”
” हाँ ! हाँ ! पगला गया हूँ मैं । और मैं ये भी जानता हूँ कि तुम लोग मेरे मित्र हो । तभी तो तुम्हें ऐसा अधर्म करने से रोककर पाप से बचाना चाहता हूं । ” बिरजू बिफरते हुए चीखा था ।
” अरे कोई पाप नहीं है ये ! क्या भूल गया तू बसंती को ! अपनी बहन को ! ऐसे ही किसी शहरी ने उसकी अस्मत को तार तार कर दिया था और लोकलाज की मारी वह बेचारी शर्म के मारे कुएं में छलांग लगा बैठी थी । उसकी लाश ही निकल सकी थी कुएं से । कैसे भूल गया तू ? ” सुधीर भी जवाब में चीख पड़ा था ।
” कैसे भूल सकता हूँ मैं वह दृश्य सुधीर ? इसीलिए मुझे हर उस लड़की में अपनी बहन नजर आती है जिसकी अस्मत से कोई खेलने का प्रयास भी करता है । मैं समझ सकता हूँ जिस बहन पर ऐसा अत्याचार होता है उसके भाई पर और उसके परिवार पर क्या बीतती है । मैं किसी भी कीमत पर तुम्हें अपने मकसद में कामयाब नहीं होने दूंगा । ” एक तरह से बिरजू ने सुधीर को चुनौती दे दी थी ।
तब तक सुधीर संभल चुका था । हाथ में पकड़े हुए गमछे पर उसकी पकड़ ढीली पड़ते ही रजनी ने भी हाथ आये मौके का फायदा उठाते हुए आंखों पर बंधे गमछे को ढीला करते हुए उसमें हाथ डालकर आंखों पर से उसे हटाते हुए गमछे को जोर से झटका दिया । बिरजू की तरफ ध्यान लगाए और रजनी की ओर से लापरवाह सुधीर को जरा भी अंदाजा न था कि रजनी इतनी जल्दी ऐसा हमला कर देगी । झील की तरफ हल्की ढलान होने की वजह से सुधीर खुद को संभाल नहीं पाया और अपनी ही झोंक में झील के पानी में समाता चला गया । सुधीर की गिरफ्त से छूटते ही रजनी बेतहाशा दौड़ पड़ी थी अपनी कार की तरफ ।
राधे और मन्नू पानी में ही टूट पड़े थे बिरजू पर लेकिन अकेले बिरजू उनपर भारी पड़ रहा था। उनका मुकाबला करते हुए बिरजू की नजर अचानक सुधीर पर पड़ी जो पानी से बाहर निकलने के लिए जोर जोर से हाथ पांव मार रहा था । वह शायद गहरे पानी में फंस गया था और बिरजू जानता था कि उसे तैरना नहीं आता । सुधीर के मुंह से बचाओ …बचाओ की घबराई हुई आवाज सुनकर झील की सतह से कुछ ऊपर की तरफ पहुंच चुकी रजनी ने पीछे पलट कर देखा । राधे और मन्नू घुटनों तक पानी में झील में खड़े थे और बिरजू बड़ी तेजी से सुधीर की तरफ तैर कर जा रहा था । सुधीर अब डूबने लगा था । उसका सिर पानी में गायब होता और फिर कुछ ही सेकंड बाद वह एक झटके से पानी की सतह पर अपनी मौत से बचने का प्रयास करता दिख जाता । एक पल के लिए रजनी ठिठकी लेकिन तभी उसके दिमाग ने उसे चेताया ‘ अब यहां रुकने की बेवकूफी बिल्कुल भी नहीं करना रजनी ! क्या पता वह लड़का अकेले उन तीनों का कब तक मुकाबला कर पायेगा ? और फिर कहीं उसकी भी नियत घूम गई तो ? क्या भरोसा ? आखिर उनका ही साथी है ! ‘
तभी दिल ने सरगोशी की ‘ इतनी खुदगर्ज कब से हो गई रजनी तू ? वो आदमी जिसने तेरे लिए अपने ही लोगों से दुश्मनी मोल ली , अकेले भीड़ गया उन तीन शैतानों से उसे उसके हाल पर छोड़ कर चले जाने का ख्याल तेरे मन में आया भी कैसे ? क्या यह अहसानफरामोशी नहीं ? ‘
वह स्वतः ही बड़बड़ाई ‘ हाँ ! मुझे रुकना होगा । अंजाम चाहे जो हो मैं इंसानियत को ताक पर नहीं रख सकती । ‘
और फिर वह वहीं खड़ी बिरजू को सुधीर की तरफ बढ़ते हुए देखने लगी ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।