लघुकथा

ईमानदारी और खुद्दारी

“ईमानदारी और खुद्दारी”

सुप्रिया अपनी बेटी तान्या के साथ ओला कैब में एक दिन मॉल जा रही थी। मॉल जाकर दो-तीन घंटे उसने शॉपिंग की । बिलिंग काउंटर में जाकर अपना मोबाइल निकालने गई तो पता चला मोबाइल नहीं था उसके पर्स में। उसका मोबाइल कहीं गिर गया था, कहां गिरा यह पता ही नहीं चल पाया।

आजकल मोबाइल सबका एक आवश्यक अंग बन गया है। मोबाइल न मिलने पर वह घबरा गई तो बेटी ने कहा…” कोई बात नहीं मां, इतनी परेशान मत हो, मैं दूसरा मोबाइल ले कर देती हूं।”
और जल्दी से मॉल के एक शॉप से बेटी ने दूसरा एक एंड्रॉयड मोबाइल लेकर मां को दिया, तब जाकर सुप्रिया को शांति मिली ।
फिर दोनों मां बेटी अपनी अपनी शॉपिंग में जुट गई। सुप्रिया के पास अपना एक बहुत पुराना मोबाइल भी था जिसे उसने अपने पास ही रखा था।
अचानक पुराने नंबर पर अमेरिका से बेटे का काॅल आया तब वहां पर रात के 3:00 बज रहे थे। इतनी रात को बेटे का काॅल आने पर सुप्रिया घबरा गई और घबराहट में पूछा….”क्या बात है बेटा इतनी रात को काॅल कर रहे हो, कोई परेशानी तो नहीं है?”
“नहीं मां, क्या तुम्हारा मोबाइल खो गया है?”
“तुम्हें कैसे पता कि मेरा मोबाइल खो गया है वह भी इतनी रात को”…. सुप्रिया ने पूछा।
“मां अभी किसी का काॅल आया था, जो ओला कैब का ड्राइवर है। उसने काॅल लगा कर तुम्हारा कोई दूसरा नंबर मांगा। मैंने तुम्हारा पुराना नंबर दे दिया है , हो सकता है कि उसका काॅल आए”… बेटे ने फोन पर बताया।
इतने में लगातार एक के बाद एक फोन की घंटियां बजने लगी पुराने नंबर पर ही जो सुप्रिया ने अपने सहेलियों तथा रिश्तेदारों को दे रखा था। सब यही पूछ रहे थे कि आपका फोन खो गया है क्या? मैंने पूछा….”यह बात आप सबको कैसे पता है, किसने बताया?”
सबने एक ही बात बताई कि….” किसी ड्राइवर का फोन आया था जो सबसे तुम्हारा कोई फोन नंबर मांग रहा था ताकि तुम्हें काॅल करके बता सके कि कार में ही तुम्हारा मोबाइल गिर गया था।”
असल में ड्राइवर ने मेरे फोन के कॉल लिस्ट को देख कर, उस में जितने भी नंबर थे सबको कॉल करके मेरे बारे में बताया और मेरा कोई फोन नंबर मांगा। सबने मेरा नंबर दे दिए थे उसको ।
इतने में सुप्रिया के पास ड्राइवर का काॅल आया और उसने बड़े अच्छे से कहा कि…”मैडम आपका मोबाइल कार में गिर गया था जो मुझे बाद में मिला। आप अपना घर का पता बता दीजिए ताकि मैं घर में आकर आपका मोबाइल आपको सौंप सकूं।”
सुप्रिया यह बात सुनकर बहुत खुश हो गई और ड्राइवर से निवेदन किया कि…”मेरे अभी घर पहुंचने में तो समय लग जाएगा। कृपया आप बता दीजिए कि आप मॉल में आकर मुझे मोबाइल सौंप सकते हैं क्या ?क्योंकि सवारी लेकर तो आप मॉल आते ही रहते हैं।”
ड्राइवर ने थोड़ी देर सोचा फिर कहा….” ठीक है, मैं एक सवारी को मंजिल तक पहुंचा के थोड़ी देर में आ रहा हूं ,आप बाहर आ जाना फिर आपका मोबाइल आपको सौंप देंगे।”
ड्राइवर ने सुप्रिया को मोबाइल वापस कर दिया तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। वह प्रसन्न होकर ड्राइवर को ₹200 इनाम स्वरूप देना चाहा पर ड्राइवर इतना खुद्दार निकला कि उसने रुपए लेने से मना कर दिया और कहा कि…” कोई बात नहीं मैडम यह तो मेरा फर्ज था जो मैंने पूरा किया। मुझे इस बात की खुशी है कि आपको मोबाइल मिल गया।”
उसकी ईमानदारी तथा खुद्दारी देख कर सुप्रिया को बहुत खुशी भी हुई और बहुत आश्चर्य भी हुआ कि आज के जमाने में भी ऐसे लोग हैं जिनके कारण यह दुनिया बहुत अच्छे से चल रही है।
सुप्रिया मन ही मन सोचने लगी….”बेवजह हम साधारण तथा गरीब लोगों पर शक करते हैं। गरीबों में भी इमानदारी तथा खुद्दारी कूट कूट कर भरी होती है।”

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल ।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com