लघुकथा

राजनीति

कुछ पुलिसवाले हरिया को उसके घर से उठा लाये थे । मेज पर रखा एक देसी तमंचा उसे दिखाते हुए  दरोगा बोला ,” बोल ! ये तमंचा कहाँ से खरीदा ? “
 ” मुझे क्या पता साहब ? मैंने थोड़े ही खरीदा है ? “
” अबे बेवकूफ !  बता क्यों नहीं देता कि तूने ये तमंचा किशन से खरीदा है ? स्साले का घमंड बहुत बढ़ गया है । मुझसे ऊँची आवाज में बात करता है  । अब उसको उसकी औकात बताऊँगा । तू बस इतना बता दे कि तूने ये तमंचा किशन से खरीदा है ।”
” ओफ्फोह साहब ! न ये तमंचा मेरा है और न मैंने किसी किशन से इसे खरीदा है । आप क्यों मुझे और किशन को इसमें फँसाना चाहते हो  ? “
तभी हरिया की 17 वर्षीया बेटी मनीषा अपनी माँ कलावती के साथ थाने आ गई । दरोगा कुटिल मुस्कान के साथ बोला ” अब तो तेरा भूत भी मेरी बात मानेगा । बड़ी खूबसूरत है तेरी लौंडिया ! अब भी मान जा  नहीं तो समझ ले तेरी लौंडिया का क्या होगा । थाने में बहुत सिपाही हैं ।सबको झेल ना पाएगी तेरी बेटी । “
” खबरदार ! जो मेरी बेटी की तरफ बुरी नजर से देखा भी तो ! ” कहते हुए हरिया ने मेज पर रखा तमंचा उठाया ही था कि अगले ही पल चीख कर जमीन पर ढेर हो गया ।
कुछ घंटे बाद पुलिस के बड़े अधिकारी ने पत्रकार वार्ता में बताया ” थाने पर हमला करनेवाले दुर्दांत अपराधी हरिया को पुलिस ने अपनी जान पर खेलकर मुठभेड़ में मार गिराया । ”  कई राउंड फायरिंग के निशान भी पत्रकारों को सबूत के तौर पर दिखाए गए ।
हरिया की बीवी और बेटी का बयान दिखाकर मीडिया पूरी दुनिया को सच्चाई बताने का दावा कर रही थी ।  राजनीति भी शुरू हो चुकी थी ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “राजनीति

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अंग्रेजों के भतीजे !

Comments are closed.