लघुकथा

त्याग

नम आंखों से अपनी पुरानी तस्वीर को निहार रहा था पंकज। आज उसकी पत्नी स्मिता का जन्मदिन है। स्मिता के गुज़रे हुए 13 साल हो गए पर यादें हैं कि मन से जाने का नाम ही नहीं लेती। दीवार पर टंगी यह तस्वीर उन दिनों की है जब पंकज और स्मिता की शादी हुई थी और वे दोनों हनीमून मनाने गोवा गए हुए थे। उस दिन चांदनी रात थी और चांद की दूधिया रोशनी समुद्र के पानी में मिलकर जैसे कोई जादू बिखेर रही थी। सागर की शीतल बयार दोनों के तन मन को छूकर जा रही थी, और दोनों निशब्द अपनी प्रेम की दुनिया में आनंद के झूले में झूल रहे थे। उन दिनों को याद करते हुए पंकज का मन भावुक हो उठा और उन दिनों का स्मरण हो आया जब उसका बेटा अक्षय 4 साल का था और अपनी मां के लिए रोया करता था।
स्मिता के गुजर जाने के बाद अक्षय की सारी जिम्मेदारी पंकज को लेनी पड़ी। अक्षय बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा का धनी था। जैसे कहते हैं ना कि “पूत के पांव पालने में ही समझ आ जाता है”… ठीक वैसे ही अक्षय की प्रतिभा बचपन से ही दिखने लगी थी।पंकज क्रिकेट प्रेमी था और सचिन तेंदुलकर का बहुत बड़ा प्रशंसक था। इसलिए उसने भी अपने बेटे को एक क्रिकेटर बनाने का सपना देखा था।
पंकज का एक छोटा सा व्यवसाय था। अपना और बेटे का सपना पूरा करने के लिए अपनी संपत्ति बेच कर वह मुंबई चला गया। अक्षय जब थोड़ा बढ़ा हुआ तो उसे एक बहुत अच्छी क्रिकेट एकेडमी में प्रवेश दिलवाया।
पंकज सुबह 4:00 बजे उठकर अक्षय के लिए नाश्ता तैयार करता और नाश्ता बनाते बनाते आवाज लगाता…”अक्षय बेटा जल्दी उठो हाथ मुंह धो लो। ”
“हां पापा उठ रहा हूं”…… आंख मलते हुए अक्षय बड़ी मुश्किल से बिस्तर छोड़ता।
पंकज फिर कहता…”जाओ जल्दी से नहा धोकर ड्रेस पहन लो, नहीं तो 6:00 वाली लोकल छूट जाएगी।”
अक्षय तैयार होकर खाने के टेबल पर आ जाता और पापा के गले में हाथ डाल कर कहता…”पापा देखो मैं कितनी जल्दी तैयार हो गया, आपका अच्छा बेटा हूं ना मैं।”
“हां बेटा.. तुम दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे हो”…. पंकज बेटे के गालों को चूमकर कहता।
फिर दोनों जल्दी से नाश्ता करके निकल पड़ते ताकि ट्रेन ना छूट जाए।
बेटे को अच्छी शिक्षा देने के लिए पंकज ने स्वयं बॉलिंग करना सिखी। घर में जितना समय मिलता था उस दौरान पंकज बेटे को बोलिंग की बारीकियां सिखाता था। शाम को दोनों घर आते और फिर पंकज जुट जाता रात का खाना बनाने के लिए।
रात को दोनों जब खाना खाने बैठते तब भी क्रिकेट की बारीकियों के बारे में ही बातें करते। पापा की देखरेख तथा अकैडमी के प्रशिक्षक के देखरेख में अक्षय की प्रतिभा दिन प्रतिदिन निखरती चली गई। दोनों को समझ में आ रहा था की अक्षय का भविष्य उज्जवल है।
पंकज वर्तमान में लौटा आया और दीवार पर टंगी अपनी और स्मिता की तस्वीर की ओर देख कर कहने लगा….”स्मिता आज बहुत अच्छा दिन है, तुम्हारा जन्मदिन भी है और आज अक्षय का चयन अंडर-19 वर्ल्ड कप क्रिकेट टीम के लिए हो गया है। आज मैं बहुत खुश हूं। तुम खुश हो ना स्मिता? तुम्हारा भी सपना था ना एक दिन तुम्हारा बेटा कुछ बने। देखो तुम्हारा बेटा एक अच्छा क्रिकेटर बन गया।”
पंकज की आंखों से दो बूंद आंसू लुढ़क कर कपोलों पर आ गिरे।
“पापा”….. घर में घुसते हुए अक्षय ने आवाज दी, “कहां हैं आप?”
पंकज ने तुरंत आंसू पोछकर कहा….”मैं यहां हूं बेटा, आ गए तुम। हो गई सारी तैयारी तुम्हारे जाने की…..।”

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल ।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com