हास्य व्यंग्य

वह दिन दूर नहीं जब तन्हा लोग तन्हा न होंगे !

आखिर उसने बाजी मार ही ली और वह इस मामले में पहला देश बन गया जिसने अकेलापन दूर करने की नीति बना ली। ब्रिटेन में लोग अकेलेपन का शिकार हो रहे थे और वहाँ की सरकार अपने नागरिकों के अकेलेपन को लेकर चिन्तित हो गई थी। आश्चर्य है कि इतने वृद्धाश्रम होने के बाद भी लोग अपने आप को तन्हा मानते हैं!खैर,अब वहाँ सरकार ही उनका ख्याल रखेगी ताकि अगले चार वर्ष तक कोई स्वयं को तन्हा महसूस न कर सके।सरकार की चिन्ता तो इस बात को लेकर भी थी कि बुजुर्गों से ज्यादा तन्हा तो वहाँ के युवा महसूस कर रहे थे।तब क्या युवाश्रम खोले जाने पर भी विचार करना होगा!अन्य देशों की तरह तन्हा तो हमारे देश में भी लोग महसूस करते हैं और कर ही रहे हैं लेकिन आश्चर्य कि यह आइडिया हमारे दिमाग में क्यों नहीं आया।सत्ता के गलियारों में बैठने वाले जो नित नये-नये आइडियाज देते हैं, उनके जेहन में भी यह बात नहीं आई।
अब देखिए न कि लोग दुखी हो रहे थे, उन्हें किसी बात में आनन्द नहीं आ रहा था, वे प्रसन्नता का अनुभव नहीं कर पा रहे थे तो संवेदनशील सरकार ने आनन्द विभाग खोलकर नागरिकों के दुख तकलीफ हर लिये और चहुंओर आनन्द की बरसात कर दी।उन्हें लग रहा है कि आज चारों ओर आनन्द ही आनन्द है।क्या तो पक्ष और क्या विपक्ष, उनके नेताओं के भाषणों और वक्तव्यों से आनन्द रस टप टपा टप हो रहा है और आम जन रसास्वादन में लगा हुआ है।उसकी आँख से टपकने वाले आँसू भी अब तो खुशी के आँसू दिखाई देते हैं।
वैसे भी हम बहुत ही संवेदनशील हैं।जहाँ कोई समस्या हस्तगत होती है तो तत्काल घोषणा और फिर विभाग खड़ा करने की तत्परता!नीति और योजना तो बाद की बात है, इनसे ज्यादा महत्व की बात विभाग और उसे संभालने वालों की संतुष्टि है।पहले विभाग बनाने की घोषणा, फिर विभाग का गठन और फिर असंतुष्टों को संतुष्ट करने के लिए कुर्सी, बंगला,कार का तोहफा।इधर एक प्रदेश में महसूस किया गया कि पशुपालन विभाग गौवंश के लिए सही तरीके से काम नहीं कर पा रहा है तो उसके लिए पृथक विभाग।वर्षो पूर्व मत्स्य का दर्द भी समझा गया तो पशुपालन से पृथक कर मत्स्य विभाग बनाकर मत्स्य को भी ऊँचा दर्जा दे दिया गया।उद्यानिकी भी कृषि कैसे हो सकती है तो उसका भी अलग विभाग।भले ही आप इसे सफेद हाथियों की फौज कहें लेकिन सफेद हाथी पालने का शौक भी तो होता है और इसलिये पलते जा रहे हैं और पालते जा रहे हैं।
खैर, बात अकेलेपन की नीति की हो रही है।उन्होंने तो अपनी नीति बना ली है!वहाँ तन्हा रहने वालों को डॉक्टर डांस क्लास ज्वाईन करवायेंगे, कुकरी क्लास शुरू की जाएगी।डाक बाबू प्रतिदिन पाँच लोगों के घर जाकर मुलाकात करेगा और उनके साथ कुछ समय बिताएगा।उन्होंने और भी कुछ बातें जोड़ी है अपनी इस अभूतपूर्व नीति में लेकिन प्रश्न यह है कि हमारे देश में आदमी भीड़ के बीच में रहकर भी अकेला है और कई लोग तो ऐसे भी हैं जो- “ दिन ढ़ल जाए ,हाय रात न जाए,तु तो न आए,तेरी याद सताए,”ऐसे में इन लोगों के अकेलेपन का क्या और कैसा इलाज! बहरहाल ब्रिटेन की सरकार ने तो कुछ रास्ता खोजा है ,उसमें वह कहाँ तक सफल होती है ,यह तो समय ही बतायेगा।लेकिन उसने हमारे देश और प्रदेशों की सरकारों को बहुत ही इनोवेटिव आइडिया दे दिया है।हो सकता है कि चुनाव वाले राज्यों में कोई न कोई दल इस विचार, इस नीति को अपने घोषणा पत्र में ही शामिल कर ले।यह भी हो सकता है कि चुनाव के बाद घर-परिवार में अकेले रह गये किसी बूढ़े-खुसट की महत्वाकांक्षा पूर्ति के लिए अकेलापन विभाग की स्थापना कर आनन्द विभाग की उपलब्धियों में एक ओर मील का पत्थर ठोक दिया जाए।

*डॉ. प्रदीप उपाध्याय

जन्म दिनांक-21:07:1957 जन्म स्थान-झाबुआ,म.प्र. संप्रति-म.प्र.वित्त सेवा में अतिरिक्त संचालक तथा उपसचिव,वित्त विभाग,म.प्र.शासन में रहकर विगत वर्ष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ग्रहण की। वर्ष 1975 से सतत रूप से विविध विधाओं में लेखन। वर्तमान में मुख्य रुप से व्यंग्य विधा तथा सामाजिक, राजनीतिक विषयों पर लेखन कार्य। देश के प्रमुख समाचार पत्र-पत्रिकाओं में सतत रूप से प्रकाशन। वर्ष 2009 में एक व्यंग्य संकलन ”मौसमी भावनाऐं” प्रकाशित तथा दूसरा प्रकाशनाधीन।वर्ष 2011-2012 में कला मन्दिर, भोपाल द्वारा गद्य लेखन के क्षेत्र में पवैया सम्मान से सम्मानित। पता- 16, अम्बिका भवन, बाबुजी की कोठी, उपाध्याय नगर, मेंढ़की रोड़, देवास,म.प्र. मो 9425030009