कविता

शोषित (अनाथ )बेटियों की आवाज

” शोषित ( अनाथ ) बेटियों की आवाज़ ”

देकर रोटी ,कपड़ा , छत
छीनो न हमारा स्वाभिमान,
ऊँचे महलों में रहने वालों
हम गरीबों का भी होता है मान।

हम बेबस, लाचार जरूर है
फिर भी तो हम है इंसान ,
मर्यादा की सीमाएं पार न करो
दुनिया में हमें अकेली जान ।

तुम्हे आये कि न आये
हमें तुम पर आती है शर्म ,
सिखा नहीं कभी तुमने
इंसान का क्या होता है धर्म ।

हम अनपढ़ ,अनाथ ही सही
तुम्हारी शिक्षा आती किस काम ,
किस मिट्टी से बने हो तुम
नहीं अपनी इन्द्रियों पर लगाम ।

हम बेचारी मुसीबतों की मारी
तुम तो हो अपनी माँ की संतान,
मिली तो होगी शिक्षा माँ से
रख लो उस शिक्षा का मान ।

मनुष्य होकर भी हमारी व्यथा
कभी न तुम समझ पाये ,
तुमसे नहीं हमें आशा कोई
मांगते हैं ईश्वर से न्याय ।

मिट जायेगी हस्ती तुम्हारी
हमारी सिसकियों में है इतना दम,
बुरी नज़र हमपर डालने वालों
ईश्वर की ही संतान है हम ।

हमारे तन के कण-कण में वो
ह्रदय में है प्रभु समाये हुए ,
मान-भंग हमारा नहीं हुआ
अपमानित स्वयं प्रभु ही हुए ।

मिलेगा तुम्हें दण्ड अवश्य,कुकृत्य
का लेखा-जोखा है उनके पास,
हमारी प्रार्थना व्यर्थ न जायेगी
बैठे हैं मन में लिए ये आस ।

इस अत्याचार के विरुद्ध एकदिन
जागेगा जन-मानस में रोष ,
न्याय, न्यायालय देगा शरण उनको
है जो धरा पर लाचार, निर्दोष ।

पूर्णतः मौलिक- ज्योत्स्ना की कलम से ।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com