लघुकथा

नया सबक

दिल्ली में रहने वाली बैंक मैनेजर नीलू ऑस्ट्रेलिया में आकर बहुत कुछ नया देख-सीख रही थी. वह अपनी बहिन सविता के पास घूमने गई थी.

ऑस्ट्रेलिया के नियमों के अनुसार वहां जाते ही उसे एक कमीशन के सामने हाजिर होना था, जिससे उसको वहां आने का एडमिट कॉर्ड भी मिल सके और आगे की बैंक की कार्रवाई का रस्ता भी खुल सके. वहां से सविता सीधे उसको बैंक ले गई.

बैंक के कर्मचारी बड़ी चुस्ती से मुस्कुराकर खड़े-खड़े ग्राहकों की समस्याओं को हल कर रहे थे. लगातार खड़े रहकर काम करते रहने पर भी उनके चेहरे पर थकावट या झुंझलाहट की कोई शिकन नहीं थी. शायद लगातार अनुशासन में रहने के कारण उनको अब ऐसा ही व्यवहार करने का अभ्यास हो गया था. नीलू के लिए यह एक नया अनुभव था. कहां उसके मातहत सारा दिन चिड़-चिड़ करते और काम के आधिक्य के बहाने ग्राहकों से उलझते रहते. आखिर मामला नीलू को ही सुलटाना पड़ता था.

कुर्सी पर बैठी नीलू अनुशासन और मुस्कुराहट की जुगलबंदी देख अचंभित हो रही थी. अनुशासन और मुस्कुराहट महज कर्मचारियों के नहीं, आम जन के जीवन का भी हिस्सा बन चुका था. पीली लाइन के पीछे खड़ी सविता तभी आगे बढ़ी, जब अगला ग्राहक जा चुका था. सविता ने और कर्मचारी ने मुस्कुराकर एक-दूसरे का अभिवादन किया था. फिर सविता ने नीलू की ओर इशारा करके अपने आने का उद्देश्य समेकित किया. कर्मचारी ने नीलू की जन्मतिथि और फर्स्ट नेम पूछकर सभी आवश्यक कार्रवाई पूरी कर ली. किसी कागज़ की जरूरत नहीं पड़ी, सब कुछ कम्प्यूटर में आ गया था, बस पासपोर्ट देखना चाहा, सो सविता ने दिखा दिया. कर्मचारी ने सविता को भी बैठने का संकेत करते हुए कहा- ”हमारे बैंक मैनेजर लंच ब्रेक पर गए हैं, पांच मिनट में आएंगे और मैं उनको कागज़ दिखाकर साइन करवा दूंगा.”

साढ़े चार मिनट में बैंक मैनेजर उनकी सीट पर आ गया था, शायद कर्मचारी ने पहले ही उनको अवगत करा दिया था. बैंक मैनेजर ने उनका अभिवादन करते हुए एक बार और पासपोर्ट देखा, वे अपनी कैबिन में गए, वांछित कागज का प्रिंट लिया, उस पर साइन करके नीलू और सविता को वहां दे गए. नीलू भी तो बैंक मैनेजर थी, उसने तो कभी ऐसा नहीं किया था. इतना अनुशासन! ऐसी आत्मीयता! सविता तो खुद अपने वर्क प्लेस पर ऐसा ही करती आई थी, सो उसके लिए कुछ नया नहीं था, बहरहाल अचंभित-सम्मोहित नीलू वापिस जाने के लिए बहिन के पीछे-पीछे चल पड़ी थी.

घर पहुंचते-पहुंचते नीलू खुद को “मी टू” कहकर अपने जीवन का एक नया सबक शुरु करने का संकल्प ले चुकी थी.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “नया सबक

  • लीला तिवानी

    आप सबको दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं. नीलू ने बैंक कर्मचारियों के सद्व्यवहार से नया सबक लेकर अपने मन के रावण को जीतकर खुद को “मी टू” शब्द को नये मायने दिये और अपने में सुधार करने का शुभ संकल्प लिया. आइए हम भी दूसरों की जय से पहले खुद को जय करें.

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