कविता

शब्दों की खिड़कियां

खुलती हैं जब शब्दों की खिड़कियां,
कई राज खुल जाते हैं,
कभी शब्द ओझल हो जाते,
फिर वापिस आ जाते हैं.
शब्द कभी सिखलाते नया कुछ,
राह नई दिखलाते हैं,
कभी हमें फुसलाते हैं ये,
कभी हमें भरमाते हैं.
कभी सकारात्मकता का झोंका,
मन के अंदर लाते हैं,
कभी नकार देते ये सोच को,
नई सोच फिर लाते हैं.
शब्द ब्रह्म हैं, शब्द नाद हैं,
शब्द अनादि, शब्द अहसास,
धन्यवाद का एक शब्द ही,
दिखलाता प्रभाव कुछ खास.
’दोस्त’ शब्द का मतलब समझो,
अस्त करे जो दोषों को,
मधुर-सत्य शब्द कल्याण हैं करते,
सुखी बनाते हैं सबको.
अगर चाहते भला सभी का,
शब्दों की खिड़कियां खुलने दो,
ठंडी-ताजी-स्वच्छ हवा से
मन की कलुष को धुलने दो.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “शब्दों की खिड़कियां

  • लीला तिवानी

    शब्द कमाल के होते हैं
    शब्द बेमिसाल होते हैं
    शब्दों का हार भी बनता है
    और
    शब्दो से घाव भी लगते हैं
    मीठे शब्द सुकून दिला देते है
    और
    नफ़रत के शब्द नींद उड़ा देते है
    तलवार से गहरे होते है शब्दों के घाव
    और
    गहरे-से-गहरा जख्म भी भर देते है ये शब्द
    प्यार के दो शब्द उम्मीद जगाते है
    और
    ताने के दो शब्द तिरस्कार कर जाते है
    तीर भी चलाते है शब्द
    दिल को छलनी कर जाते है शब्द
    और
    मरहम लगा जाते है शब्द
    दिल में प्यार जगा जाते हैं शब्द.

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