कहानी

कहानी : जिद्दी यात्री

”कौन हो तुम भाई! जो अंधेरे में इस उजाड़ रास्ते में भटक कर यहां आ गए हो”यात्री बोला, ”मैं एक परदेसी हूं, पर अपनी पहचान नहीं बता सकता क्योंकि मैं घर छोड़ कर इसलिए आया हूं कि मैं अपना सफर बिना किसी के पहचाने पूरा कर सकूं।’ ”क्यों आए हो यहां, यहां आगे रात के अंधेरे के राजा भालू या फिर खुंखार जानवर तुमें चीर कर रख देंगे, उन्हें तुम्हारी पहचान से कोई मतलब नहीं।’ यात्री बोला,”आगे कोई बस्ती तो होगी, मैं वहां पनाह पा लूंगा। ”ये अंधेरे में मस्त पहाड़ आसानी से किसी को अपना आसरा नहीं देते। वे भी अंधेरे में अपनी पहचान खो चुके होते हैं, तुम बस यहां से वापिस चल पडो़, मेरे साथ। मैं इनसानियत के नाते तुम्हारे लिए दो चार रोटियां बनाकर खिला दूंगा। वैसे मैं भी अकेला हूं।’
बूढ़े व्यक्ति ने अपनी एहसानगी की लौ जलाई पर यह अड़ियल यात्री किसी और ही स्वाभीमान में खोया था। ”चलो जल्दी करो! वापिसी में भी खतरा है।’ प्रौढ़ ने कहा। प्रौढ ने बड़ा सा बौरा उठाया और चलने लगा, ”चलो, मेरे साथ सुबह फिर निकल जाना, आगे दो तीन बार नाले को पार करना है, उसके ऊपर पेड़ों के बने पुल अंधेंरे में ठीक से दिखाई न देंगे और कहीं पैर फिसला तो यह यात्रा फिर पानी के सहारे ही पूरी करनी होगी।’ यात्री ने अंधेंरे के साम्राज्य की और देखा, उसके हठ ने उसे आगे बढ़ने को कहा, और मन में दुबके किसी छोटे डर ने उसे वापिस उस बूढे़ व्यक्ति पर भरोसा करके चलने को कहा। वह बिना सोचे बोल पड़ा, ”नहीं, मैंने नहीं रूकने का वादा किया है, मैं खुद को मिटाने चला हूं। भूख प्यास से दुख दर्द से, कठिन यात्रा से, मैं बस मिटने चला हूं बस यही मेरी यात्रा का प्रयोजन है कि जब तक मैं मर न जाउं तब तक मैं चलता रहूं, मुझे इंसानी मदद से परहेज करना होगा वर्ना मेरा उद्धेश्य पूर्ण न होगा।’ बूढ़े ने फिर से अपना भारी भरकम बोझा ज़मीन पर रख दिया।
वह बोला, ”तुम बड़े अजीब से इंसान हो! क्या तुम नशे में तो नहीं हो? मुझे तो तुम पागल से भी लगते हो पर तुम्हारा पहनावा तुम्हें किसी अमीर घर का दर्शा रहा है, मुझे मत उलझाओ क्या तुम वहां मरने जा रहे हो? क्या तुम आगे झरने के ऊपर से छंलाग लगा कर अपनी लीला समाप्त करना चाहते हो? हद हो गई! तुम तो सचमुच ही अजीब प्राणी हो। अच्छा चलो! यहां बैठो, मुझे सच बताओ, आओ इस बड़े और साफ पत्थर पर थोड़ा सुस्ताते हैं अब रात हो गई है तो फिर होने दो। अच्छा कोई बीड़ी बगैरा जेब में है तो मुझे पिलाओ। मैं सुबह से नाले के किनारे – किनारे ठंडे पानी में जड़ी बूटियां तलाशता रहा हूं, अब तो शरीर अकड़ चुका है।’ यात्री ने अपनी जेब से मंहगी सिगरेट की डिबिया निकाली और एक सिगरेट बूढ़े सहचर की और बढ़ाई। ”वाह मजा आ गया मित्र! ऐसी सिगरेट की तमन्ना मुझे सपने में भी न थी, अच्छा अब खुल कर बताओ, मुझसे पहचान छुपाने की जरूरत नहीं, मैं वैसे भी इस जंगल की कई मायावी शक्तियों को पहचान कर बैठा हूं, इन देवदारों ने मुझे कई राज अब तक बता दिए है, ये पहाड़ के अंदर छुपे झरने, नाले अपने कई रहस्य मुझे बता चुके हैं।’
यात्री बोला, ”नहीं मैं कुछ नहीं बता सकता, बस आप मुझे यह बता दो, कि आगे कितना ऊपर चढ़ कर मैं इंसानो से दूर जा सकता हूं।’ ”अरे भोले यात्री, तुम यह कौन सी जिद्द पकड़ बैठे हो, जिस रास्ते की तुम बात कर रहे हो वह तुम्हारे लिए नहीं है, तुम कुछ ही पल के बाद अपनी जिद्द के आगे हार जाओगे, मेरा भी वर्षों का अनुभव है मेरे भाई, ये पहाड़ सिर्फ तब तक अच्छे लगते हैं जब तक तुम इनसे उचित दूरी पर हो। जब तुम इनको रहस्यों को जानने की कोशिश करोगे तो ये तुम्हें पल में दूर छिटक देगें।’ ”चाहे कुछ भी हो, मैं आगे बढूंगा, तुम मुझे किसी भी डर से रोक नहीं सकते,’ यात्री ने कहा।
”अच्छा, मुझे अब तुम पर दया आने लगी है, चलो मैं भी चलता हूं तुम्हारे साथ बस तुम इतना बता दो, कि तुम्हें जाना कहां है? मैं तुम्हारी जान के बारे में सोचने लग पड़ा हूं भालू तुम्हें पल में ही नोच खाएंगें। मैंने तुम सा कोई अजीब यात्री आज तक नहीं देखा। वैसे अब यहां इक्का दुक्का यात्री खबरू झरने को देखने जरूर आते हैं, वहां छोटी सी सराय भी है, शायद अब वहां यात्रियों द्वारा छोड़ा कुछ अनाज तो होगा चलो हम वहीं कुछ देखते हैं, मैं तुम्हारे साथ कोई बंधन महसूस कर रहा हूं, चलो उठो! बूढ़े ने लगभग उठते हुए कहा। ”नहीं! नहीं! तुम मेरे साथ नहीं चल सकते, मैं तुम्हारे अहसान को और किसी इंसानी मदद को नहीं पा सकता। तुम अपने घर निकलो। मैं इस यात्रा में अकेला चलूंगा।’यात्री बोला। बूढ़े व्यक्ति ने सिर पर हाथ रख लिए । ”चलो इतना बता दो तुम कौन हो? कहां से आए हो, अगर शायद तुम बच गए तो कभी तुमसे मुलाकात तो हो सकती है। मैं तो ख्याली राम हूं, मेरे दादा ने रखा था यह नाम, मेरा दादा ऊपर पहाड़ों के बीच में बने अपने छप्पर में कई महीने रहता था। उसे तो उन पहाड़ों की भाषा का भी ज्ञान था। अगर तुम चाहो तो मैं इन पहाड़ों की कुछ बातें जो मेरे दादा ने बर्ताइं थीं तुम्हे सुना सकता हूं। बस मुझे एक और सिगरेट थमा दो बड़ी मज़ेदार चीज है तुम्हारे पास दिमाग को चलायमान कर रही है। अच्छा रूको मैं कुछ लकड़िया जलाता हूं, तुम तब तम एक और सिगरेट सुलगा लो, बस चंद ही मिनट लगेगें।’
बूढ़ा ख्याली एक दम से उठा और अंधेंरे में खो गया। दूर कुछ ही पल पत्तों के चरमराने की, लकड़ियों के टूटने की आवाजें आने लगीं। दूर झरने का शोर हवा के साथ नाचता हुआ इस यात्री के कानों तक पहुंचा, झिंगुरों की आवाजें कानों के रास्ते आत्मा तक पहुंचने लगीं।जंगल के भीतर से किसी जंगली पक्षी के किर्राने की आवाजें आने लगीं। वह अंधेंरे के साए में अंतस की ओर जाने लगा। क्या मुझे इस बूढ़े ख्याली की बात मान लेनी चाहिए, आखिर कौन है बूढ़ा, क्यों मेरे रास्ते में दीवार बन कर अड़ गया है, इसे मुझसे क्यों हमदर्दी हो रही है, क्या कोई ईश्वर का दूत तो नहीं, पर अहा! मेरा दुर्भाग्य, मैं इसकी वजह से अपनी मन की नहीं कर पाऊंगा, मुझे यह तो इससे पीछा छुड़ाना होगा, या फिर उसे यहीं छोड़कर आगे निकल जाना होगा। सिगरेट का धुंआ स्वच्छ हवा के आलिंगन में मस्त होकर अंधेंरे में खोता जा रहा था।
वह पल में ही भागने को हुआ, पर सामने एकदम से ख्याली आ धमका, उसने लकड़ियों का पूरा भारा उठाया था। उन्हें ज़मीन पर पटकते वह बोला, ”क्या हुआ भाई, क्या भागने वाले थे! तुम तो अजीब और सनकी भी हो। यात्री को गुस्सा आ गया, ”अरे यार तुम मेरे पीछे क्यों पड़ गए हो, मुझे मेरी मंजिल तक जाने दो, मैं तुम्हारी वजह से पथ भ्रष्ट हो रहा हूं। मेरे मन का बनाया जाल तुम्हारी मौजूदगी में टूट फूट रहा है, मुझे लगता है तुम कोई शैतान के दूत हो या फिर किसी पहाड़ों के देवता के दूत। पर कृप्या मुझे अब छोड़ दो ख्याली।’ ख्याली जोर से हंस दिया, हंसने की आवाज अंधेंरे को चीरती हुई तंग घाटी में दूर तक फैलती गई और दूर से खामोशी को चुग कर फिर से यात्री के शरीर के लिए ले आई। बूढ़ा ख्याली बोला,”हद हो गई है भोले यात्री, तुम जरा अंधेंरे में यात्रा का आंनद तो लो, थोड़ा सुस्ता लो, गप्प लगा लो, और शरीर को तपस से भर लो, फिर तुम निकल जाना, इस बार मैं तुम्हें नहीं रोकंूगा। फिर दोनो आग जलाने लगे ।लकड़ियों के अलाव से निकली उष्मा इर्द – गिर्द के अंधेरों को भगाने में व्यस्त हो गई। उष्मा में उस ख्याली का चेहरा दमकने लगा जो इस निराश यात्री की आंखों को खटक रहा था।
यात्री थोड़ा रूककर बोला, ”मुझे यह बताओ कि तुम्हारे चेहरे पर एक खुशी का प्रकाश नजर आ रहा है एक मस्त जोगी से लग रहे हो तुम, तुम्हारे चेहरे की झुर्रियों में भी जीवन का सार झड़ रहा है, ये सब कैसे है तुम देखने में भी गरीब हो, देहाती हो , जंगल फांकते रहते हो, भूखे भी हो, पर चेहरे पर यह आभा कौन सी दुनिया की है मेरे भाई! मुझे बता दो, मैं अब तुम्हारे आगे हारने लगा हूं, पर जब मैंने पहले तुम्हें देखा था तो तुम बस नीरस, काम के बोझ के मारे, छोटी सी जिंदगी के मालिक नज़र आए थे और मेरे लिए बस नकारा हाड मांस की आकृति लगे थे। पर तुम्हारे अंदर चुंबकीय शक्ति है जिसने मुझे रोकने का साहस किया है जरा अब बात कर ही लेते हैं तो फिर अब मेरे राज से पहले अपने राज ही खोल दो। अब तो मेरी जिद्द भी पिगल कर नाले के गुपचुप बहते पानी में मिलने के लिए उतावली हो चुकी है। बूढ़े ख्याली ने अपने शरीर के अंदर से अपनी प्रसन्नता को खींच कर चेहरे पर और गहनता से फैला दिया। उधर आग भी अधिक भड़क उठी।
ख्याली बोला, ”सह यात्री, तुम जिस यात्रा की बात कर रहे हो उस अनदेखे रास्तों की बेखौफ यात्रा तो मैं रोज करता हूं तो फिर तुम कौन सी नई यात्रा पर निकल आए हो, जितनी भी पंगडंडियों को तुम निकालो, वो मैंने सारी अपनी उम्र के इस पड़ाव तक नाप डाली हैं, अब तुम इन्हें अगर देखना चाहते हो तो फिर थोड़ा सब्र करो, हम सुबह चल पडे़गें, मैं तुम्हारे साथ निकलूंगा और कुछ बूटियां भी खोज लूंगा। वैसे जब तक तुम मुझे अपनी यात्रा का उदेश्य नही ंबताओगे मैं तब तक परेशान रहूंगा। अच्छा तो बता दो कि तुम आखिर क्या खोजने निकले हो। बूढ़े के चेहरे पर एक उम्मीद की रोशनी उभरने लगी। दूसरी तरफ यात्री अभी भी अंधेरे को इक्ट्ठा कर रहा था और उसे अपने चेहरे पर मलता जा रहा था ताकि वह अदृश्य हो जाए। ओर इस अनचाहे मेहमान से छुटकारा पा सके।
उसने अपना मुंह खोला, ”हे रब के बंदे! तुम्हारी बातें और ये आग की तपस मेरे अंदंर की ज्वरशील शक्ति को पिघला रहे हैं, मुझे लगता है कि अगर तुम और मेरे साथ रहे तो मैं अपना पथ भूल जाऊंगा। मैं अभी आराम से नहीं बैठ सकता, मुझे बस अंधेरा चाहिए, जो चुपचाप मेरे अस्तित्व को सोखता रहा, दिन में मुझे निर्जल पहाड़, दुर्गम घाटियां चाहिए, मैं बस यात्रा पर हूं मुझे रोचक व रोमांचक यात्राओं की विशाल श्रंखला से कुछ लेना देना नहीं है, मैं बस खुद को ….।’ ”क्या ! क्या चाहते हो तुम, खुदको क्या , खुद को दफनाने आए हो यहां मरने आए हो यहां इन उजाड़ बियाबान घाटियों में, जंगलों में जहां हर वक्त जीवन और मौत का द्वंद चलता रहता है। ये दुर्गम मायवी संसार है मेरे प्यारे, ये तब तक ही तुम्हारा सखा है, जब तक तुम में उर्जा हैं वर्ना ये तुम्हें मार कर तेरी उर्जा को पचा लेंगे। इसलिए उठो और अपनी बुद्वि को शांत करो, चलो मेरे साथ, वक्त जाया न करो, मौसम भी बिगड सकता है यहां ये जंगल है इनकी माया अपरमपार हैं तुम तो भोले हो, नादान हो तुम तो यात्रा से पहले ही भटक गए लगते हो।
”यही तो मैं चाहता हूं मेरे बूढ़े वक्ता, मैं भटकने के लिए ही तो आया हूं इस दुर्गम जगह मैं। अभी मैं और भटकूंगा तब तक भटकूंगा, जब तक मेरे साथ कुछ अजीब न हो जाए, मेरे पाप की सजा न मिल जाएं। ”अच्छा तो तुम किसी पाप का प्रायश्चित करने आए हो, तभी मैं कहूं, तुम इनता व्यथित क्यों हो, तब ठीक है, ऊपर पहाड़ के देवता का मंदिर है, सुबह तड़के उठकर नंगे पांव जाना और अपने किसी पाप की माफी मांग लेना, शिव का अंश है ये पहाड़ और देवता तो साक्षात शिवजी है। भोले भाले, तुम भी भोले ही हो, जो एक पाप के लिए यहां मरने खपने आ गए। भई हम तो यांत्रिक जीवन जीते है, हमसे भी तो कई पाप होते हैं, बस साल में भादों में जाकर देवता से माफी मांग कर फिर से काम में जुट जाते हैं। कई पापों की सजा मिल चुकी है और कईयो को अब मिलेगी।
नीचे गांव से रास्ता पूछ कर जब तुम इस ओर चले थे, वहीं मेरा बेटा रहता है, अपनी पत्नी व बच्चों संग और मैं नीचे कोह दूर डोर में रहता हूं, मेरी पत्नी मेरी जिद्दद्व की वजह से मरी थी इसका मुझे आजतक अफसोस है पर ये पाप मैंने नहीं किया था। जव बरसात में हम अपनी भैंसो व बकरियों को लेकर ऊपर पहाड़ के मध्य के अपने बाप के डारे में रहते थे, तो मैं बकरियों संग बहुत ऊपर निकल गया था और तेज बारिश ने उस दिन कहर ढाया था, मैं इतनी ऊंचाई पर था कि मौसम ने फिर बादल ही फाड़ डाला और मेरे डारे को बहा कर ले गई थी बाढ़, मेरी पत्नी कई दिनों के बाद मिली थी दफन माट्टी मे। तब से कभी उस डारे वाली जगह को नहीं छोड़ा। अब डारे में रहता हूं। अपने बेटे से दूर, अपनी पत्नी की यादों के संग, हर मौसम मे और फिर बादल फटने का इंतजार करता हूं ताकि मैं भी वैसे ही दफन हो जाऊं, मैं भी एक प्रायश्चित करना चाहता हूं, क्या तुम्हारा भी प्रायश्चित कुछ ऐसा ही है। यात्री के मन में परिवर्तन आने के संकेत उमड़ चुके थे। वह बोला, तुम क्यों बादल के फटने का इंतजार कर रहे चाचू। तुमने थोड़ा बादल फाड़ा था, तुम क्यों प्रायश्चित करोगे, हां अगर तुम्हें वहां सुकून मिलता है तो फिर ठीक है पर वहां रह कैसे लेते हो, ये अचम्बे की बात है, वहां कोई और भी है क्या। हां वहां वही ईश्वर रहता है जिसके लिए मैं प्रायश्चित कर रहा हूं और शायद तुम भी शायद उसी के पास जा रहे हो, वह तुम्हें बुला रहा होगा, बूढ़े ने हंसते हुए कहा, वह तुम्हारा इंतजार कर रहा बंधू और तुम उसकी बातों में आ गए हो, वह तुम्हारी कई परीक्षाएं लेगा। इसलिए थोड़ा सोच लो, प्रायश्चित या किसी पाप को छोड़ो, वह तुम्हें घेर लेगा, बुद्वि से काम लो और यहां से खिसक लो भाई।इस बात पर दोनों ने ठहाका लगाया।
यात्री के चेहरे पर पहली बार भाव बदले थे जो पता नहीं कब से उसने शरीर के अंदर जकड़े हुए थे। ”अच्छा चाचू एक बात बताओ तुम हो तो बड़े ज्ञानी पर तुम बदलना क्यों नहीं चाहते, नए जमाने को देखो, वो कितना बदल चुका है, तुम तो मुझे अभी भी पुरानी किसी सभ्यता के लगते हो, जंगलों की खाक छानते फिरते हो।’ बूढ़े ने हल्की सी मुस्कराहट के बाद बोलना शुरू किया, किसके लिए बदलूं हजूर, मेरे पास तो बस अब कोई ख्वाब भी नहीं बचा है, मेरे ख्वाबों में बस जड़ी बूटियां ही आती हैं जिनकी तलाश में मैंने अपना जीवन यांत्रिक बनाया है, मेरा डारा ;छप्परद्ध भी बदलना नहीं चाहता, मुझे तो सपने भी जंगलों में भटकने दुर्लभ जड़ी बूटियों को हाथों में लिए किसी देवता के अचानक घने जंगल में मिलने के आते हैं। अब मैं किसके लिए बदलूं। अच्छा तब से भटक रहे हो इस उम्र में, इससे तो अच्छा था ईश्वर की भक्ति में समय गुजारते, एक संत सा बनकर अपनी डारे वाली गुुफा में बाबा जी बनकर। अरे भाई! ईश्वर की तलाश तुम जैसों का प्रपंच है मेरे प्यारे! मुझे तो ईश्वर की खोज भी नहीं करनी पड़ती है वह इन्हीं पहाड़ो, घाटियों में अपने नए तिलिस्मों संग मिल जाता है मुझे दिन रात, कभी झरनों से बहता कभी ग्लेशियर सा जमता, कभी अंकुरों सा फूटता। कभी वह बादल बनकर अपने रूप बदलता है, और कभी बूंदों में बदल कर इन पहाड़ों पर फैल जाता है। वह कभी गरजता है, कड़कड़ाता है, कभी शांत धुंध से चहुं ओर दुबक जाता हैं कभी बडे़ पत्थरों में नज़र आता है कभी उंची उड़ान वाले पक्षियों में उड़ता फिरता है और कभी फिर से पहाड़ वाले मंदिर में अकेला बर्फ बारी में आराम करता है और हम भक्तों का भादों पर्व तक इंतजार करता है जब हमसब इक्ट्ठे होकर उसकी स्तुती में कुछ गान करेगें, उसकी सृष्टि की इंद्रधनुषी कहानियों का पाठ करेंगे।तब वह बड़ा खुश होता है। तुम क्या ईश्वर को कहीं और जगह ढूंढते हो, अरे वह तो यहीं कहीं रहता है हम इंसानो के साथ, कई रूप हैं उसके कभी बादलों में, तो कभी नालूओं में कभी हवा में अदृश्य होकर विचरता है।
”मुझे तुम्हारी इस मौज़ से ईष्या हो रही है बूंढे व्यक्ति, तुम जैसे लोग ही इस धरा पर होने चाहिए थे, जिन्हें न कुछ पाने की इच्छा है और न ही कुछ खोने की । पर तुम जैसे हाड मांस वाले सिर्फ इन्ही अनजानी, विचित्र रहस्यमयी जगहों में रह पाएंगे। हमें तो अब सुविधाओं की लत लग चुकी है हम ठीक से जी न पाएंगे इन बीयाबानों में”बूढ़ा हंसते हुए बोला, ”तो फिर तुम किस लिए आए हो यहां, अपने आसमान को छोड़कर, वहीं लौट जाओ, कुछ पल आनंद ले लो और कुछ यादें लेकर निकल जाओ अपने महल में। वैसे भी तुम्हारे जैसे लोग हमारी परपरावादी सोच में दखल देते हैं,हमारी जिंदगी पर तरस खाते हैं,हमें उपदेस देते हो, तुम अन्जाने में ही हमारा जीवन तहस नहस करने आते हो।’ यात्री के चेहरे पर उदासी के बादल फिर घिर आए।
”ये कैसी बातें कर रहे साथी, हम क्यों तुम्हारी दुनिया में दखल देंगे, मैं तो अकेला ही आगे निकल जाना चाहता था, तुमने ही तो मुझे जबरदस्ती रोक दिया। वर्ना मैं अभी तक तुम्हारी दुनिया से बहुत दूर चला गया होता।’ यात्री ने कहा – बूढे़ ने कहा, ”तुम समझे नहीं मेरी बात का मतलब, कोई पक्षी भी अपने घोंसले व अपने हिस्से के आसमान की परिधि में किसी ओर नस्ल के पक्षी को आने नहीं देते, उन्हें अपने अस्तित्व व अपनी सजाई परम्परा के तहस नहस होने का खतरा मंडरा जाता है। वे लड़ते हैं, झपटते है और ताकतवर घुसपैठिए से भी अपनी तुच्छ शक्ति के बावजूद मुकावला करते हैं। यहां तक कि कई बार मुकाबले में अपनी जान भी गंवा देते हैं। हमारा भी यही हाल हो जाएगा अब जिस दुनिया को हमने सदियों से , सभ्यताओं से आगे बढ़ाया, वे तुम्हारे जैसे आधुनिक ताकतवर परिंदो की नज़र में आते ही तहस नहस हो जाएगी। तुम हमारी सभ्यता संस्कृति की कमियां ढूंढोगे और फिर हमें सपने देना शुरू कर दोगे, हमें दीन दृष्टि से देखोगे। तुम लोग हमारी धरती और हमारी सभ्यता में सैंकड़ों कमियां ढूंढकर हमारे धर्म व हमारे रहन-सहन से कई शिकायतें करेंगे। तुम हमें भी अपने जैसे जीने के लिए उकसाएंगे और फिर तुम हमारे भोले भाले लोगों को नए और अपनी तरह जीने के गुर सिखाने लगोगे। कोई हमारी दुर्दशा पर लिखेगा कोई सरकारी महकमे हमें जागरूक करने जाएंगे। फिर हमारी सभ्यता हमारी न रहकर करूणामई सम्यता में बदल जाएगी और फिर हम हताश, परेशान विनित लोग अपनी परम्पराओं को, पुश्तैनी सोच को तुच्छ समझ कर, आदिकालीन समझकर तुम्हारे पीछे दौड़ना शुरू कर देेंगे तब ये प्रकृति, परम्परा हमारी नज़रों में फिर अभिशाप बन जाएगी। हम तुम जैसे चिंतित लोगों के सामने अपनी सदियों की सहनशीलता का आत्मसमर्पण कर देंगे।
यात्री बोला, ”बात तो तुम ठीक कह रहे हो मेरे बाबा, तुम तो सचमुच के ही बाबा व्यक्ति हो। तुम्हारी बातों में कड़वी सच्चाई है। अच्छा बाबा, अब मैं तुमसे हार गया हूं तो फिर अपनी कहानी बता ही देता हूं। मेरा मन व शरीर कष्ट भोगने आए हैं यहां, भटकने आया हूं मैं यहां, यही मेरी जिद्द है बूढे़ साथी। मेरे जीवन को घर बार से विरक्ति हो गई, वहां मैं हमेशा डरा-डरा रहता हूं मुझे हर चीज़ के खोने का डर रहता है मैं हमेशा से जिंदगी को अपने हठ से तहस नहस करता आया हूं। इस बार भी मैं सब कुछ खत्म कर आया हूं, मैं बस डर से जीत जाना चाहता हूं न मौत का डर न कुछ खोने का डर। बस ये पहाड़ मुझे मेरे डर के साथ दफन कर दें ऐसी कुछ इच्छा लेकर यात्रा पर निकला हूं। बैसे तुमें बता दू अपने हमसफर साथी! मैं इससे पहले कई असंख्य यात्राएं कर चुका हूं। मैं कभी न थकने वाली यात्री की तरह अपने मन को जगा ही लेता था और चल पड़ता था। अदृश्य स्थानों ने मुझे हमेशा आकर्षित किया और मैंने असंख्य यादों का जमावड़ा अपने दिल में इन्ही यात्राओं से समा लिया। मैं हमेशा रोमांच, कल्पना, उड़ानों का पुजारी रहा। मैंनें कभी कुछ इकट्ठा नहीं किया, जैसे तुम जड़ी-बूटियों को इक्ट्ठी करके, उन्हें सूखा कर फिर बेच देते हो और फिर खाली के खाली हो जाते हो मैं भी सिर्फ स्मृतियों और यात्राओं के पन्नों को अपने मस्तिष्क रूपी पुस्तक में जमा करता हूं। पर यह यांत्रिक सफर मेरी प्यास नहीं बुझा पाता है। मैं प्रकृति का दीवाना हूं। मुझे न किसी चीज का प्रदर्शन करना है और न ही अपने अनुभवों को किसी दूसरे को बताना है इससे अहंकार का जन्म होता है। दूसरे के साथ मुकाबले की होड़ लगती है अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने का विचार उत्पन्न होते हैं। मैं तुमसे ज्यादा प्रभावित हूं प्यारे बूढे़, तुम तो मेरे भी गुरू हो जो एक ही जगह में रह कर इन्ही पहाड़ों, जगह-जगह बहती सरिताओं तथा चश्मों के रचना संसार में ही अपनी दुनिया के रस पा चुके हो।मेरे घरेलू जीवन में मेरे क्रोध से कुछ दोष पैदा हुए। मैं अपने प्रेम, सम्मान और आभार को एक पिता, पति होने के नाते प्राप्त नहीं कर पा रहा था। मेरी पत्नी ने मेरे साथ भद्दे ढंग से व्यवहार किया। उसने मेेरे अतीत के कुछ कार्यों पर मेरा अपमान और मुझे आहत किया। वे मेरी बेटी को भी मुझे नकारने और मेरी उपेक्षा करने का आदेश देती है। इसके इलावा मेरे जीवन में मेरे परिवार खासकर मेरी पत्नी ने मेरे यात्राओं के जूनून को जरा भी नहीं समझा। वो मुझे हमेशा हर यात्रा के बाद कोसते रहे। मेरे अस्तित्व पर बोझ बढ़ता गया और अब मैं सब छोड़छाड़ कर बहुत आगे निकल आया हूं। मैं दुव्र्यवहार और कृतघ्नता का पात्र नहीं हूं। मेरे विचारों में ऐसा व्यवहार मुझे तीव्र दुःख और कष्ट एक दुःखद आकृति बनाते हैं। निःसन्देह वह मासूम हैं लेकिन मेरे छोटे दोषों और कृत्यों के लिए वह मुझे इतने भयानक कष्ट का पात्र नहीं बना सकती है। इस प्रकार मेरे पापों से अधिक पाप वह कर बैठती है। अब मुझे उसके पाप की सजा देनी है और बस यह कार्य मैंने खुद को मिटाने से शुरू करना है। जिन यात्राओं को वह अपना दुश्मन मानती है, उसी यात्रा पर मैं फिर से निकल आया हूं। मेरे दिमाग में अब ऐसी सनक पैदा हो गई है कि मैं बस इसी यात्रा पर अपने आप को खो दूं।मैंने इसी को एक जिद्द मान लिया है।’
”पर एक बात है दुःखी यात्री , तुम इन पहाड़ों को ही अपना जिद्द के साथी क्यों समझने की भूल कर रहे हैं। ये तो बहुत जल्दी तुम्हें ठुकरा देंगे। तुम्हारे चिंतन से इन्हें कुछ लेना नहीं, ये सिर्फ तुमें कष्ट दे सकते हैं और तुम्हें निरिह समझकर कुचल भी सकते हैं।’”यही तो मैं चाहता हूं कि मुझ पर कोई आसमानी बिजली गिरे, कोई पहाड़ सैकड़ों टन पानी बरसा कर मुझे बहा कर मार डाले कहीं पहाड़ से गिर कर मैं गहरीखाईयों में खो जाउं।वाह जिद्दी यात्री, बडे़ हिम्मती हो तुम पर मौत अपनी मर्जी से नहीं आती, अगर तुम्हें मरना ही था तो फिर किसी गाड़ी के नीचे आ जाते, कहीं नदी में छलांग लगा देते, यहां क्यों आ गए। ये सब तुम्हारे चेतन और अपनी पुरानी यात्राओं के समावेश की जिदृद है तुम सिर्फ विचारों व चिंतन की यात्रा पर हो, जब तुम्हारे चेतन में कई और बातें आएंगी, तुम मृत्यु का रोना बंद कर दोगे। वैसे कभी मौत के करीब भी पहंुचे हो या फिर यूं ही जिद्द पाल बैठे हो। ये सिर्फ तुम्हारे विचारों में यात्राओ का जुनून तुम्हें खींच लाया है यहां इसके अलावा और कुछ नहीं, मौत वौत की हकीकत तो बड़े दूर की बात है। तुम ठीक कहते हो बाबा, तुमने ठीक पहचाना मैं मरना भी चाहता हूं पर यात्रा में मरना चाहता हूं क्योंकि मेरा मन हमेशा चलायमान रहता है इसलिए मुझे यही रास्ता सूझा।अच्छा चला छप्पर की ओर चलते हैं खाना बनाकर खाते हैं सुबह सोचेंगे क्या करना है।’

पूरी रात यात्री की बूढ़े बाबा की गंभीर बातों के साथ कई बार आंखे खुली। सुबह बूढ़े ने तड़के ही गांव से दूध मांगकर चाय बना दी । ”उठो यात्री, गर्म चाय का मज़ा लो, हम चाय पीकर तुम्हारे संग यात्रा पर निकल पड़ेंगे। जब तुमने पहाड़ को नापने का इरादा पक्का कर ही लिया है तो फिर तड़के चलने में भलाई है मैं तुम्हारे, संग जाने की जिद्द इसलिए करूंगा, क्योंकि इन पहाड़ों के कई रंगों, कई रूपों को जानता हूं, मुझे खुशी होगी अगर तुम मेरे साथ चलने की हामी भरो अगर नहीं तो मुझे ताऊमर दुःख रहेगा। अब बस न ना करना।’
यात्री ने गर्म चाय की कुछ चुस्कियां ली और बूढ़े की ओर एकटक देखता रहा जो अपनी गठड़ी को बाहर सूखने को डालने के लिए अंदर बाहर जा रहा था। चाय तो उसने पल में ही निपटा दी थी। ”मेरी तपस्या और चिंता सिर्फ मेरी है मैं पहले भी तुम्हें कह चुका हूं भोले बाबा पर फिर भी तुमसे अथाह संवेदनशीलता है और तुम्हारी मौजूदगी में एक जादुई सहायता है, मैं भाग्यशाली होता अगर मैं तुम्हारा साथ पाता, तुम पहाड़ के आदमी हो, पहाड़ जैसा हृदय वाले हो, पर फिर भी मैं सिर्फ दुःख इक्ट्ठा करने आया हूं। तुम्हारा साथ मुझे शान्ति देगा, जो मैं कभी न चाहूंगा। मैं अकेले भटकने का प्रण कर बैठा हूं। मैं सिर्फ उन लोगों की नज़रों से दूर हो जाना हूं जो मेरे अस्तित्व को कई दिनों से नकार रहे हैं मैं उनके लिए एक सबक सिखाना चाहता हूं।’ बूढ़ा ख्याली दुःख भरे शब्दों में बोला, ”पर एक बात है निराश यात्री, तुम्हारे बच्चों का क्या होगा, तुम उनसे उनके हिस्से की खुशियां क्यों छीनना चाहते हैं।’
”मेरी एक ही बेटी है पर मैं अपने दिल पर पत्थर रखकर ये दुःख सहन कर लंूगा, मैंनें उसके लिए बहुत कुछ कमा कर छोड़ा है, बैसे भी मैं हमेशा लंबी यात्राओं पर निकलता रहा हूं, वह मेरे बिना जीना, सीख चुकी है और अपनी आगे की जिंदगी भी सीख जाएगी। मैंनें उसकी भावनाओं की रूकावट से अब रूक नहीं सकता, मुझे पत्थर बनना ही होगा। मुझे अब तब तक भटकना है जब तक मेरे पैरों में जान है और मेरे इरादों में दृढ़ता है, देखता हूं ये पहाड़ मुझे स्वीकारते हैं या फिर मरूस्थलों या मैदानों की राह लेनी पडे़गी, पर मैं रूकूंगा नहीं अभी तो मेरी यही जिद्द है।तुम्हारी मुलाकात मुझे यह संकेत दे रही है कि तुम मेरी इस जिद्द के संदेशवाहक बनो, ये लो मेरे घर का फोन नंबर और उसने अपने बैग से छोटी सी डायरी पर फोन नम्बर लिखा और बूढ़े को पकड़ाते हुए कहा, ”कभी दुकानों में जाकर मेरे घर फोन कर देना, ये कुछ पैसे भी रखो, मैं अब नई यात्रा पर निकलने वाला हूं। मुझे अब तुम रोक न पाओगे ।यात्री ने अपना छोटा बैग उठाया और दूर धुंध में खोए पहाड़ की चोटी की ओर निकल गया। बूढ़ा बड़ी देर तक उसे धुंध में खोया हुआ देखता रहा फिर अपने छप्पर में घुसते ही वह अपने आप से बोला, ”तुम सचमुच ही जिद्दी आदमी हो यात्री, पर जिंदगी से जिद्द अच्छी नहीं होती, शायद तुम्हें ये पहाड़ यह समझा पाएंगे या फिर नहीं।’ और फिर अपनी जड़ी-बूटियों की खोज की तैयारी करने लगा।
जिद्दी यात्री कई दिन भटका ताकि वे अपने दुःखों के प्रभाव को पहाड़ों की गहरी कंधराओं, ऊंची चोटियों में नष्ट कर सके। धौलाधार व पीरपंजाल के पिघलते ग्लेशियर ने उसकी जिद्द को भी पिघलाया। धीरे-धीरे पहाड़ की ऊंची चोटी से लाखों मेहराबों से जुड़ा सेतु उसे नज़र आने लगा जो कई गहरी घाटियों के ऊपर लटकता हुआ असके घर तक गहरी धुंध में उभरता नज़र आने लगा। कभी धंुध जब गहरा जाती तो हजारों टन पानी की बौछारें उसके शरीर के अंदर जमीं मिट्टी को पिघलाने का प्रयत्न करती, राक्षसों की तरह उभरते झरने उसे भयानक शोर के साथ चेतना में ले आते आसमान की गर्जनाएं उसे सदा के लिए नींद में सुलाने की चेतावनी देतीं। ज्वारभाटा जो उसके मन में पलता रहा था, वह शांत होने लगा और पहाड़ों के बीच सुंदर मनमोहक झीलें उभरने लगीं।
उधर बूढे़ ने उसके घर पर फोन कर दिया था, ”वह लौट आएगा मैंने उसके मन के ताप को निचोड़ कर बाहर फैंकने की कोशिश की थी, यकीन मानिए, आप बस इंतजार करें, अगर मुझ पर भरोसा नहीं तो आप अपनी ओर से कोशिश कर सकते हैं पर अब तक पता नहीं कहां निकल चुका होगा”। दूसरी ओर से दुःख भरे कुछ शब्द थे। उधर जिद्दी यात्री अब थक चुका था। वह उन साधुओं को याद करता जो ऐसे बीहड़ों में तपस्या करने निकलते हैं और भूखे प्यासे अपनी तपस्या में लीन रहते हैं, जिंदगी कठिन है बिना सहारे के, उसे बस यही आभास हुआ था। वह लौट आया, कुछ दिनों के बाद वह फिर से उसी बूढे़ के छप्पर के बाहर खड़ा था जिसने उसे रोकने की कोशिश की थी। उसकी दाड़ी पूरे चेहरे पर भर चुकी थी, वह इतना दुबला हो चुका था कि पहचाना न जा सके। बूढ़ा बरसात के मौसम के आखिरी दिनों में अपने छप्पर के इर्द-गिर्द उग आए जंगली घास को काट रहा था। ”तुम आ गए यात्री, कैसी रही तुम्हारी यात्रा, मुझे मालूम है कि तुमने एक नया जीवन जरूर देखा होगा, ये पहाड़ का जीवन व यात्रा दोनों ही कठिन मार्ग है पर तुम बहुत दूर तक जा आए हो। आओ मैं तुम्हारे लिए चाय बनाता हूं।’
यात्री ने गहरी ठंडी आह भरी – ”काश ! मैंनें तुम्हारा कहा माना होता तो भयंकर यातना न पाता। क्या तुम्हें पता था कि मैं वापिस लौट आउंगा मुझे तो तुम रहस्यमय बाबा पहले से ही लगते थे, अब तो पूरा यकीन हो गया है।मैंनें तो मृत्यु को कई बार अपने करीब आते देखा। अब मैं समझ गया हूं कि मृत्यु का सामान्य सांनध स्वीकार करना बड़ा मुश्किल है, यह तो यह पागलों की जिद्द हो सकती है यह फिर कहीं हिम्मती लोगों की। पर जो भी हो मैं अब पिघल चुका हूं। पहाड़ के गिद्धों, भूखे कौओं, जल प्रपातों के भयंकर शोर से मैं निकल आया हूं। अलौकिक शिव ने मुझे बहुत कुछ सिखा दिया है। अब कुछ दिन तुम्हारे पास रूकने का मेरा मन है ताकि मेरी आत्मा में उभरी झील तुम्हारी संगति से फिर बर्फ में तबदील हो जाए। पर यकीन मानना, मैं किसी ओर को तुम्हारे पास आने को नहीं कहूंगा। तुम्हारी जमीन, तुम्हारी वादियों कोई चुराने न आए। क्या तुम्हें ये मंजूर है।”
बूढ़ा ख्याली हंसते हुए बोला, ”मुझे सब मंजूर है तुम मेरे आज से मेहमान नहीं यात्रा के साथी हो, जीवन यात्रा के लिए चलो हम कल से जड़ी-बूटियां तलासने चलेंगे, एक नई पगडंडी पर, अभी तुम्हें पहाड़ के अन्य रूपों को भी देखना है, मुझे लगता है पहाड़ तुम्हारी जिज्ञासा को कभी शांत नहीं कर पाएंगे, कहो ठीक कहता हूं ना।’ यात्री ने फट से हां कहा, ”हां ! हां! मुझे अब फिर से इन्ही पहाड़ों से संगीत के साज सुनने लग पड़े हैं और तुम भी किसी पहाड़ पर खड़े होकर बांसुरी की मीठी धुन बजाते लग रहे हो।

संदीप शर्मा

*डॉ. संदीप शर्मा

शिक्षा: पी. एच. डी., बिजनिस मैनेजमैंट व्यवसायः शिक्षक, डी. ए. वी. पब्लिक स्कूल, हमीरपुर (हि.प्र.) में कार्यरत। प्रकाशन: कहानी संग्रह ‘अपने हिस्से का आसमान’ ‘अस्तित्व की तलाश’ व ‘माटी तुझे पुकारेगी’ प्रकाशित। देश, प्रदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविताएँ व कहानियाँ प्रकाशित। निवासः हाउस न. 618, वार्ड न. 1, कृष्णा नगर, हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश 177001 फोन 094181-78176, 8219417857