कहानी

मन का मैल

एक गांव में नदी के किनारे बहुत ही भव्य काली माँ का मंदिर बना था । पास ही भोलेनाथ जी और हनुमान जी का भी मंदिर बना हुआ था । .इन तीनों मंदिर  के लिए सोमनाथ पंडित जी को मंदिर का नियमित पुजारी  चुना गया । सब गांव वाले मंदिर के पूजा की सारी सामग्री सभी लोग मिलकर पुजारी को दे देते थे, । शुरुआत में सब ठीक ही चल रहा था लेकिन  कुछ दिनों बाद सोमनाथ पुजारी जी  के मन में ये भावना जागृत हुई कि भगवान सिर्फ उनके हैं,और इन्हें हमारे और जो ब्राम्हण हैं उनके आलावा कोई नही छू सकता..नही तो भगवान और उनके कपड़े अशुद्ध हो जायेंगे…।

भोर में ही चार बजे से मंदिर में लाउडस्पीकर बजाने लगते,मंदिर में अपनी उपस्थिति जताने को…और जल्दी से पूजा कर छह बजे तक मंदिर का पट बन्द कर देते,कुछ दिन तक तो कोई कुछ न बोला ।  जालीदार दरवाजा लगे होने से लोग बाहर से ही दर्शन कर वापस हो जाते । …पर जब नवरात्री आयी तो सबका मन हुआ कि मंदिर के अंदर जाकर पास से उनका दर्शन कर उन्हें अपने हाथ से चुनरी चढ़ाएं…पर पंडित जी ब्राम्हण के अलावा किसी भी जाति को अंदर घुसने न देते थे, । छुआ-छूत जो मानते थे,।

फिर नवमी के दिन गांव के सरपंच के द्वारा भंडारे औ कन्याभोज का आयोजन रखा गया ।  कन्याओं को बुलाने का काम पंडित जी को दिया गया । अब भंडारा बनकर तैयार था,कि पहले कन्याभोज फिर प्रसाद वितरण होगा । ….पर ये क्या ? ”  कन्याभोज का समय हो चलाऔर मंदिर में एक भी कन्या नही…? ” सरपंच ने पंडित जी को सवालिया नजरों से देखते हुए कहा, ।

कुछ देर में कन्याएं तोआयीं पर सिर्फ ब्राम्हण परिवार की.। ..सरपंच ने कहा कि और कहां हैं कन्याएं ?  किनारे बैठे हुए भैरो से पूछे ,”  तुम्हारी तीनो बेटियां और तुम्हारे पड़ोस की सब कहाँ हैं..? ”

भैरो..,” हुजूर,पुजारी जी तो हमारी जाति की बेटियों को मंदिर का पट भी नही छूने देते तो ये हमारी बेटियों को क्यूँ बुलाएँगे..?आपका सारा प्रसाद भी छू जायेगा हुजूर..! ” सरपंच को ये सब सुनकर बहुत दुःख हुआऔर शर्मिंदगी भी.. ,” घृणा आती है हमे अपने से,हम सब आपको पूज्यमानकर मंदिर के नियमित पुजारी चुने और आपके अंदर इतना भेद-भाव,इतना मैल…? ” कहकर सरपंच साहब पंडित जी पर बहुत नाराज हुए ।   गांव वाले भी सब पंडित पर अपनी नाराजगी जताये और हाथ जोड़ सब माता से क्षमा मांगे.। .फिर स्नेहपूर्वक विनती कर गांव के हर जाति वर्ग की कन्याओं को बुलाकर उनके चरण धोकर टीका,चन्दन लगाकर चुनरी ओढ़ाए विधि पूर्वक  कन्याभोज शुरू हुआ..। .ये सब देखकर जाति धरम पर भेद-भाव रखने वाले पंडित जी के मन का मैल भी धुल गया,और सभी से हाथजोड़कर क्षमा याचना करते हुए कहा कि ,सच्चे पुजारी तो आप सब हैं…..🙏

(मौलिक व अप्रकाशित)

✍सरला तिवारी

सरला तिवारी

मूल स्थान रीवा (म.प्र.) निवासी- जिला अनूपपुर (म.प्र.) शिक्षा - स्नातक गृहिणी अध्ययन और लेखन में रूचि है. ईमेल पता Sarlatiwari522@gmail.com