गीतिका/ग़ज़ल

निष्ठावान शराबें

सुर्ख रंग में ढलकर मुस्कुराती हैं, कभी ये खफ़ा नहीं होतीं।
मद भरी मुहब्बत ही लुटाती हैं, शराबें बेवफ़ा नहीं होती।।

उभरती जिस्म से इनके, मदहोश रवानी है।
पुरानी होकर भी, अमर इनकी जवानी है।।

मजहबों में जो बाटते, न ये मंदिर, न ही मस्जिद, न काशी, न काबे हैं ।
ख़ुद से ख़ुद की पहचान करातीं, कितनी निष्ठावान
शराबें है ।।

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email -neerajsachan@bhel.in