सामाजिक

इस दीपावली जलाएं आत्मज्योति

कुछ ही दिनों में हम एक ऐसा त्यौहार मनाने वाले है जो हमारे जीवन और समाज में एक विशेष महत्व रखता है।अनेक पौराणिक कथाएं इस त्यौहार से जुड़ी हुई है। यह त्यौहार समस्त विश्व को संदेश देता है कि हमारे जीवन से बुराई का सर्वनाश हो और अच्छाई का आगमन हो!आने वाला यह त्यौहार है “दीपावली”।
दीपावली;अनगिनत दीयों के प्रकाश का पर्व। प्रकाशपर्व अर्थात अंधकार की कठोर छाती को चीरकर उजाले की उमंग बिखेरना,अविश्वास एवं भ्रम रूपी अंधकार को नष्ट कर प्रेम,विश्वास और त्याग रूपी दिए की ज्योति को प्रकाशित करना ही दीपावली है।दीपावली जड़ व चेतन के मिलन का प्रतीक और दिए के ज्योतिर्मय त्याग का पर्व है। लेकिन आज जीवन,समाज एवं राष्ट्र के बहुत सारे अंग अंधेरे में घिरे हुए हैं और वहां अंधेरे की भांति अशुभ और अनीति छाई हुई है।कुछ लोग इस अशुभ के इतने आदि हो चुके हैं कि तमस की स्वीकार कर लेते है।ऐसी दशा में उनकी प्रकाश पाने एवं उस तक पहुँचने की आकांक्षा क्षीण हो जाती है।अंधकार की यह स्वीकृति ही मनुष्य का सबसे बड़ा पाप है।यही उसका स्वम् के प्रति किया गया सबसे बड़ा व भीषण अपराध है। इस अनकहे अपराध में समाज का लगभग प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से लिप्त होता जा रहा है।चारो तरफ बस नकारात्मकता का अंधकार छा रहा है। नीति,संस्कार,धर्म,मर्यादा,सेवा सहकार सब इसी अंधकार में कमजोर हो गए है इसी लिए आतंकवाद,अलगाववाद, जातिवाद सब अपने चरम पर पहुँच चुके हैं,हिंसा ,बलात्कार,भ्र्ष्टाचार से कोई अछूता नही है। कतिपय लोग अंधकार की इस स्वीकृति से बचने के लिए उसके अस्वीकार में लग जातें है। उनका जीवन अंधकार के निषेध का ही सतत उपक्रम बन जाता है,पर यह भी एक भूल है।अंधकार को मान लेने वाला भी भूल में है,उससे लड़ने वाले भी भूल में है। अंधकार को न तो मानना है और न ही उससे लड़ना है ये दोनों ही हमारी अज्ञानता है।जो समझदार है ज्ञानी है और समाज का चिंतक है वो प्रकाश को प्रदीप्त यानी सकारात्मकता के लौ को जलाने का आयोजन करता है।
वास्तविकता तो बस इतनी सी है कि अंधकार का अपना कोई औचित्य ही नही है,यह तो बस प्रकाश के अभाव व रिक्तता का परिणाम है। प्रकाश का आगमन होते ही यह अपने आप ही हट जाता है।इसी तरह हमारे चारों ओर अंधकार रूपी अधर्म, अनीति, अशुभ बातों का बोलबाला है लेकिन इससे परेशान होने की जरूरत नही,जरूरत है तो बस दीपावली रूपी उस दिए को जलाने की जिसमे इतना प्रकाश हो कि ये नकारात्मक अंधकार स्वतः ही नष्ट हो जाय।
दीपावली में जलने वाले अनगिनत दीप छोटे छोटे लग सकतें है लेकिन इन छोटे छोटे दीपों में बहुत कुछ समाया हुआ है।इनमे मानवीय चेतना समाई हुई है यह अग्निशिखा ही इसका प्राण है।इसके निरन्तर ऊपर उठने की उत्सुकता ही इसकी आत्मा है। इस दीये का इतना महत्व इसकी सकारात्मकता है यानी खुद जलकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित कर अंधकार और बुराई को नष्ट करना ताकि समस्त जीवात्मा खुलकर अपना जीवन जी सके।
दीपावली पर हम अपने चारों तरफ दीये तो जलाते है लेकिन क्या खुद को दीपक जैसे बनाने की कोशिश करते है?
शायद नही!
लेकिन अब वक्त आ गया है कि इस दीपावली हम बाहर फैले अंधकार को मिटाने के साथ अपने अंदर मौजूद अंधकार को मिटाने के लिए ऐसी लौ जलाये जिससे हम खुद तो प्रकाशित हों ही साथ ही सम्पूर्ण विश्व भी सकारात्मक अनुशासन की ज्योति से प्रकाशित हो उठे।
गौरव मौर्या

गौरव कुमार मौर्या

लेखक & विचारक पूर्व बीएचयू छात्र जौनपुर, उत्तर प्रदेश मो. 8317036927