हास्य व्यंग्य

व्यंग्य : हादसे

भारत हादसों का देश है । यहां सबके अपने -अपने हादसे और अपने -अपने मनोरंजन हैं। यहां किसी एक का हादसा किसी दूसरे का मनोरंजन भी हो सकता है।दशहरे से पहले इलाहबाद प्रयागराज हो गया ,ये बात कुछ लोगों के लिए हादसा है और कुछ दूसरे लोगों के लिए आत्मसुख।जो लोग इलाहबाद की ट्रेन में चढ़े थे वे रातोंरात स्वर्ग की पहली सीढ़ी प्रयाग पहुंच चुके थे ये हादसा था या आत्मसुख ये तो नहीं कहा जा सकता मगर ये दुख और सुख की मिलीभगत ज़रूर थी।

शेक्सपीयर ने कहा भी है नाम में क्या रखा है। जी कुछ नहीं ,कुछ भी नहीं रखा है नाम में ।अगर नाम में ही कुछ रखा होता तो क्या विधायक खुद को मुख्यमंत्री समझता और विपक्ष का मुखिया खुद को प्रधानमंत्री! और प्रधानमंत्री खुद को चौकीदार,चायवाला,पकोड़े वाला !क्या ऐसा समझा जा सकता है! क्या प्रधानमंत्री को चायवाला नहीं कहा जा सकता । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता फिर किस लिए! लोकतंत्र में अभिव्यक्ति कोई गाली तो है नहीं तो फिर प्रधानमंत्री चायवाला क्यों नहीं हुआ !
हमारे देश की ये बिडम्बना है या भाग्य कि हर मामूली आदमी खुद का नाम टाटा या बिरला के नाम पर रख सारी जिंदगी खुद को राजा समझ कर सुख से गुजार देता है और लोग कहते हैं कि नाम में आखिर रखा ही क्या है।

देश के पास सैनिकों की तनख्वाह बढ़ाने को पैसा नहीं है,देश की सुरक्षा को दुरुस्त रखने को हेलीकाप्टर और दूसरी चीजे खरीदने को पैसा नहीं है मगर फिर भी इलाहाबाद प्रयागराज हो जाता है तो उसमें कोई बड़ी बात नहीं है दीवाली की सफाई समझ कर हर जगह से इलाहबाद शब्द हटा प्रयागराज कर दिया जाएगा।इसमें मुश्किल ही क्या है!
जिस देश में हादसों और आदमी का चोली दामन का साथ हो वहां सब कुछ संभव है। आदमी घर से निकलता ही है ये सोचकर कि रात तक अगर किसी हादसे की चपेट में नहीं आया तो खुद को भाग्यशाली मानूंगा।
कभी आदमी सीवर की सफाई में मारा जाता है तो कभी ट्रेन ट्रेक पर भारतीय आदमी हादसों को अपने साहस का परिचय देता ही रहता है। हादसों में मारा गया आदमी का नाम नहीं होता है बस आदमियों की संख्या होती है ,जिसे सौ तरीके से टीवी पर बताया जाता है । घरों में बैठा आदमी चश्मा ऊपर नीचे करते हुए बड़ी-बड़ी आंखे कर के सुंदर सुंदर एंकरों के मुखमंडल से मरने वालों की गिनती सुनता है,खाना खाता है और सो जाता है,अगले दिन चर्चा में खुद को तैयार रखने के लिए आदमी देश के समाचारों पर पैनी नज़र रखता है वो इस पर नज़र नहीं रखना चाहता कि मरने वाले का नाम क्या था या उसके सगे संबंधियों का नाम क्या है।
इसीलिए हादसों और नाम के बीच गहरा संबंध है। यहाँ भारत में सिर्फ उन लोगों के साथ हादसे होते हैं जिनके नाम किसी दुर्घटना में होते हैं और जिनके नाम के साथ दुर्घटना नहीं जुड़ी होती वे एंकर होते हैं।
संवेदनहीन !