कविता

प्रथम प्रणय

” प्रथम प्रणय ”

प्रथम प्रणय की वो अनुभूति
वो निश्छल दो नैनों की भाषा ,
ह्रदय की वो आतुरता और
मन की निशब्द अभिलाषा ।

प्रयास तुम्हारी आंखों का
पढ़ना मेरी आंखों की भाषा ,
अंतस तक पहुँचकर मेरे
ह्रदय की बात जानने की जिज्ञासा ।

पढ़ ली थी मैंने भी
तुम्हारे दो नैनों की भाषा,
पलकें मेरी स्वतः ही झुक गई
करते रह गये तुम प्रतीक्षा ।

निशब्द तुमने कह दिया था
बह रही ह्रदय में प्रेमामृत-धारा,
मैं समझकर भी अनजान बनी रही
तुम्हारी व्याकुलता कह गई सच सारा ।

आंखें मेरी ढूंढ़ती, तुम्हें इधर-उधर
ह्रदय की बात छुपाने की करती चेष्टा,
पर कहाँ छिप पाया ह्रदय-ज्वार
छलक उठी नैनों में मेरी प्रेम-निष्ठा ।

प्रथम प्रणय का प्रथम स्पर्श
तीव्र वो ह्रदय का धड़कना
रोमांचित कर गया था मुझे
प्रथम बार तुमसे, मेरा गले लगना ।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com