लघुकथा

पिंक शूज़

उफ़ जूही… कितने पसन्द हैं तुम्हे जूते? बड़ी हो जाओ तुम्हारे लिए जूतों की दूकान ही खोल देंगे…’ दिव्या ने हँसते हुए जूही के गाल पर हल्की सी चपत लगायी

‘मम्मा सिर्फ एक और ये पिंक वाले शूज़ … इसके बाद पक्का कुछ और नहीं। आपने प्रॉमिस किया था मम्मा कि मेरी रिपोर्ट्स और ऑपरेशन की डेट मिलने पर आप मुझे पिंक शूज़ दिलवाओगी …’ जूही अभी भी जिद्द पर अड़ी थी।

‘बेटा इतने सारे फुटवेयर्स तुम्हारी अलमारी में ऐसे ही रखे है … और अभी पापा को रिपोर्ट्स लाने तो दो….’ बात अधूरी ही रह गयी दिव्या की सामने से विवेक को आता देख कर।

‘पापा आ गए … मेरी रिपोर्ट्स आ गईं अब बोलो न मम्मा
जल्दी से … दोनों में से कौन से वाले पिंक …?’

जूही की आवाज़ को अनसुना कर चुकी दिव्या की प्रश्नसूचक नज़रों का उत्तर विवेक ने गर्दन को दाएं बाएं हिला कर दिया।

‘बोलो न मम्मा कौन से पिंक?’

‘दोनों ले लो…’ दिव्या ने मुस्कुराते हुए कहा

‘अरे जब डॉक्टर ने ऑपरेशन के लिए मना कर दिया तो बेकार में क्यों…’ विवेक को बीच में ही इशारे से रोक दिया दिव्या ने

‘जूही हमारी इकलौती बेटी है विवेक… सब बच्चों की तरह वो भी दौड़े भागे यही हमारा सपना है न? मानती हूँ हर बार की तरह इस बार भी डॉक्टर्स ने उसके पैर के ऑपरेशन को लेकर नेगेटिव रिस्पांस दिया। डॉक्टर्स हमारी उम्मीद तोड़ सकते हैं विवेक … पर हम उसके माता पिता हैं, ऐसे कैसे अपनी बेटी की उम्मीद तोड़ दें। हम जूही को उसके हिस्से की दौड़ न सही पर शूज़ तो दिला ही सकते हैं न। कुछ दिन और सही कुछ भागदौड़ और सही पर… मुझे अब भी विश्वास है कि जूही एक दिन ज़रूर चलेगी और दौड़ेगी। इसलिए उसे ले लेने दो जितने पिंक शूज़ लेने हैं।’ दिव्या ने शूज़ के दो डिब्बे लेकर नकली पैर के सहारे धीरे धीरे करीब आती हुई जूही को प्यार से देखते हुए कहा।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा