गीत/नवगीत

विदा न दूंगा !

रूठ कर सदा के लिए,
चले गए हो तुम कहाँ ।
ये जिंदगी होगी भी तो,
मगर पहले जैसी कहाँ ।।

खुदगर्ज़ी दुनिया मे तुम थे,
एक निहंग साधू के जैसे।
अब तुम्हारे बिना अनन्य ,
हर पल हर छिन उद्वेग रहूंगा।।

तुमको जाना था, चले गये तुम,
पर मैं तुमको विदा न दूंगा।।

दर्पण के प्रतिबिम्ब क्षणिक हैं,
वृत्त जल-सतह की, छलनायें।
भला मिटा कब, कौन सका है,
मन में बसी हुई छायाएँ??

तुम थे तो सीने में दिल था ,
अब है सिर्फ धड़कन की गूँजे ।
क्या है मेरे रोने का मतलब,
कैसे दिल की व्यथा कहूंगा ।।

तुमको जाना था, चले गए तुम,
पर मैं तुमको विदा न दूंगा ।।

जीवन विधा कौन समझ पाया ,
माटी में ढलती हर एक काया।
उलझन,दर्द,पीड़ाओं के सिवाय,
किसने क्या , यहाँ है पाया ।।

काश वो पल फिर मिल जाये,
संग तुम्हारे दीवाली के दीप जलाये ।
सब कुछ हो पहले के जैसा ,
टूटें इस जीवन की सीमाएं।

मेरे हयात की बगिया में
तुम थे एक बागबाँ के जैसे ।
भूत काल के ‘थे’ संबोधन
से न तुम्हे उल्लिखित करूँगा।।

तुमको जाना था, चले गये तुम,
पर मैं तुमको विदा न दूंगा।।

राजू भाई ! आप सही कहते थे ये जिंदगी एक ‘सजा’ है ।
कैदी हैं सब यहां ।
आज ये मियाद पूरी हुई , सौ दर्द हमें देकर ,
खुद आजाद हो गए !

नीरज सचान

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