गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल 2

छोटा सा एक आशियाना चाहता हूं
अपनी दुनिया मैं बसाना चाहता हूं

मुझसे पूछे कोई गर क्या चाहता हूं
प्यार का गुज़रा ज़माना चाहता हूं

जालिम ने काट डाले मेरे बाजू
फिर भी जोखिम मैं उठाना चाहता हूं

साकी तूने है पिलाया खूब मुझको
आज तुमको मैं पिलाना चाहता हूं

अपने दिल की मैं लगी को आज सुन लो
आंसुओं से फिर बुझाना चाहता हूं

तेरी उल्फत से मिले जो दर्द दिल को
सारी दुनिया से छुपाना चाहता हूं

देख मैंने जो बनाया था घरौंदा
अपने हाथों से गिराना चाहता हूं

कोई बोले नाम उनका इससे पहले
नाम उनका मैं बताना चाहता हूं

टूटी चूड़ी हाथ लेकर नाम तेरा
अपने हाथों से मिटाना चाहता हूं।

विनोद आसुदानी

डॉ. विनोद आसुदानी

अंग्रेजी में पीएचडी, मानद डीलिट, शिक्षाशास्त्री, प्रशिक्षक संपर्क - 45/D हेमू कालानी स्क्वायर, जरीपटका, नागपुर-440014 मो. 9503143439 ईमेल- asudanivinod@yahoo.com

2 thoughts on “ग़ज़ल 2

  • ज्योत्स्ना पाॅल

    बहुत खूब लिखा आपने 👌

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल !

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