बाल कविता

अच्छे बच्चे

 

रेल चली भई छुक छुक छुक।
हमने बोला रुक रुक रुक।
ड्राइवर था वो बड़ा सयाना।
उसने पूछा कहाँ है जाना।
हम बोले नानी जी के घर।
ड्राइवर बोला ज़ोर से हँस कर।
पहले मुझको पता बताओ।
और मुझे इतना समझाओ।
मम्मी पापा हैं कहाँ तुम्हारे?
अकेले कैसे निकले प्यारे?
हमने बोला हाथ नचा के।
और ज़रा मुंह को बिचका के।
सब हैं हम पर हुकुम चलाते।
सारे घर का काम कराते।
कोई प्यार हमें नहीं करता।
ज़रा दुलार हमें नहीं मिलता।
पढो पढो रट सभी लगाएं।
जबकि पढ़ना हमें न भाये।
तभी चले नानी जी के घर।
वहाँ प्यार मिलेगा जम कर।
ड्राइवर बोला सुन लो बच्चे।
अभी अक्ल से हो तुम कच्चे।
मम्मी पापा समझदार हैं।
तुमसे करते बहुत प्यार हैं।
पढ़ना लिखना बहुत ज़रूरी।
बिन उसके ज़िन्दगी अधूरी।
जब छोटे छोटे काम करोगे।
तभी तो आत्मनिर्भर बनोगे।
अच्छे बच्चे ज़िद्द नहीं करते।
चलो तुम्हारे घर हैं चलते।
ड्राइवर ने फिर रेल को मोड़ा।
रेल में हमको घर तक छोड़ा।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा