कविता

बदल जाते हैं

 

मौसम का क्या बदलना
इधर लोग बदल जाते हैं

बना कर तमाशा गली में
लोग यूं ही निकल जाते हैं

बुरा वक्त है या इरादें कुछ और
पैसा देखकर लोग फिसल जाते हैं

काट काट कर क्या खाना साहेब!
यहाँ लोग जिंदा ही निगल जाते हैं

क्या हूँ कि कुत्ता हूं इस गली का
एक टूक में हम लोग बहल जाते हैं

मौसम का क्या बदलना
इधर तो लोग बदल जाते हैं

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733