राजनीति

कब बनेगा अयोध्या का भव्य राम मदिर ?

रावण जैसे आततायियों का वध करने वाले हिंदुओं के आराध्य भगवान श्रीराम कलयुग में न्याय के लिए न्यायपालिका में तारीख पर तारीख के चलते न्याय के लिए धैर्य रख रहे हैं। 29 अक्टूबर को सुबह देशवासियों को बहुत बड़ी आशा बंधी थी कि अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज पर भगवान श्रीराम को न्याय मिलने का समय मिल जायेगा। लेकिन सृष्टि के रचयिता और न्याय के देवता को कुछ और ही मंजूर था। जब अदालत में भगवान श्रीराम का समय आया तब न्याय के देवता ने जिस प्रकार से बेहद उदासीन भाव से भगवान श्रीराम को न्याय देने में विलंब कर दिया अर्थात सुनवाई लम्बे समय तक के लिए टाल दी उससे मामले के सभी पक्षकार हतप्रभ रह गये।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के शब्दों से 100 करोड़ हिंदुओं के मन में अभूतपूर्व निराशा और घोर उदासी का वातावरण छा गया है। अदालत की ओर से अयोध्या विवाद की सुनवाई टलने से जहां हिंदू पक्षकार घोर निराशा में डूब गये, वहीं मुस्लिम पक्षकार व उनके समर्थक वकीलों में खुशी की लहर दौड़ गयी, क्योंकि एक प्रकार से न्याय के देवता ने मुस्लिम पक्षकारों का ही परोक्ष रूप से काम कर दिया है। अदालत में अयोध्या विवाद की सुनवाई टल जाने के बाद हिंदू संगठनों में आक्रोश व जनभावना का ज्वार पैदा होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया रही। सभी हिंदू संगठन एक स्वर से मांग उठाने लगे हैं कि अब समय आ गया है कि कानून बनाकर सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण करने के लिए रास्ता साफ कर दिया जाये।
सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या विवाद की सुनवाई टलने से हिंदू विरोधी व समर्थकों के कई चेहरे बेनकाब हो चुके हैं। अब पूरा देश चाहता है कि अयोध्या विवाद का समाधान जल्द निकले लेकिन यह बहुत दुर्भाग्य की बात है कि पूरी तरह साफ यह मामला विकृत मानसिकता तथा मुस्लिम तुष्टीकरण की गंदी राजनीति व कानूनी दावंपेच में उलझाया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई टलने के बाद टीवी चैनलों व सोशल मीडिया में बयानबाजी व बहसों का बाजार गर्म है। सभी पक्षकार इसे अपनी-अपनी जीत मान रहे हैं।
पूरे प्रकरण में कांग्रेस का दोहरा व विचित्र रवैया बेनकाब हो चुका है। कांग्रेस व अन्य सभी विरोधी दल पूरी तरह से हिंदू विरोधी हैं। कांग्रेसी वकील कपिल सिब्बल और राजीव धवन जैसे लोग इस बात के लिए पूरा जोर दे रहे थे कि अयोध्या विवाद की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद तक के लिए टाल दी जाये। अब यही लोग सरकार को चुनौती दे रहे हैं कि यदि सरकार में साहस है तो वह अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे। विरोधी दलों के नेता बार-बार टीवी चनलों की बहसों में श्रीराम का मंदिर बनवाने की चुनौती दे रहे हैं और हिंदुओं की आस्था और भावनाओं के साथ जमकर खिलवाड कर रहे हैं। वे यह अच्छी तरह जानते हैं कि हम सबने मिलकर भाजपा का खेल बिगाड़ दिया है। अब भाजपा अयोध्या विवाद के फैसले का जो राजनैतिक लाभ लेना चाहती थी, वह नहीं ले पायेगी। यह इन दलों के लिए आने वाले समय में भारी राजनैतिक भूल भी हो सकती है। यह हो सकता है कि शुरूआती क्षणों में निराशा के दौर में बीजेपी को आने वाले विधानसभा चुनावों में जोर का झटका लग जाये। ये दल इसी फिराक में हैं कि बीजेपी विधानसभा चुनावों में पराजित हो जाये, तो वे 2019 के लिए पर्याप्त हवा बना ही लेंगे।
भाजपा विरोधी दलों का अयोध्या में भव्य श्रीराम का मंदिर निर्माण करवाने में बाधा डालना एक विक्षिप्त राक्षसी मनोवृत्ति का ही परिणााम है। यह दल नहीं चाहते कि हिंदू समाज एकजुट हो। यही कारण है कि बार-बार हिंदुओं की आस्था व भावना को बुरी तरह से कुचला जा रहा है। सभी राजनैतिक दल बीजेपी पर यही आरोप लगाते हैं कि चुनावों के समय भाजपा, संघ व विहिप मतों का ध्रुवीकरण करने की साजिशें रचते हैं। जबकि वास्तविकता यह है कि मतों का धु्रवीकरण कांग्रेस व मुस्लिम तुष्टीकरण पर जीवित रहने वाले दल ही कर रहे हैं। न्यायपालिका का अगर यही रवैया बना रहा तो एक न एक दिन हिंदू समाज का आक्रोश बहुत भयावह रूप भी धारण कर सकता है और फिर उस आक्रोश को न्यायपालिका तो क्या दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक पायेगी।
सुनवाई टलने के तुरंत बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ और विश्व हिंदू परिषद तथा संत समाज की ओर से आक्रामक टिप्पणियां आ चुकी हैं। मुंबई में संघ की बैठक में राम मंदिर सहित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा चल रही है। श्रीराम मंदिर को लेकर विश्व हिंदू परिषद व संत समाज नयी रणनीति बना रहा है। सरकार पर कुछ न कुछ करने के लिए गहरा दबाव बन रहा है। लेकिन क्या सब कुछ इतना आसान होने जा रहा है संभवतः नहीं। सरकार पर अध्यादेश लाने का जो लोग दबाव बना रहे हैं अगर सरकार अध्यादेश लाती है तब यही लोग उक्त अध्यादेश के खिलाफ तुरंत सुप्रीम कोर्ट चले जायेंगे। सरकार यदि कानून लाने का प्रयास शीतकालीन सत्र में करती है तो वहां भी फिलहाल पास होना बहुत ही मुश्किल होगा। कारण यह है कि संसद का शीतकालीन सत्र बहुत छोटा है। जिसें पहला दिन तो दिवंगत आत्माओं की शांति के कारण स्थगित हो जाता है। फिर जिन लोगों को यदि कोई बिल लटकाना व भटकाना है तो उनके पास कई मुद्दे हैं।
अबकी बार संसद का शीतकालीन सत्र सरकार व विपक्ष के लिए बहुत ही अधिक हंगामेदार होने जा रहा है। विपक्षी दल सरकार को राफेल विवाद से लेकर सीबीआई विवाद और फिर आरबीआई विवादों तक में बुरी तरह घसीटना चाहेंगे। शीतकालीन सत्र में पांच प्रांतों के चुनाव परिणाम भी आ जायेंगे। अगर चुनाव परिणाम सरकार व बीजेपी के खिलाफ चले जाते है तो फिर बीजेपी पर दबाव और संकट काफी गहरा जायेगा। विगत सत्र के आखिरी दिन सरकार ने तीन तलाक बिल राज्यसभा से पास कराने की बहुत कोशिश की उसका क्या परिणाम निकला यह पूरा देश जानता है। लोकसभा में बहुमत है लेकिन राज्यसभा में बहुमन न होने के कारण सरकार को कितनी कठिनाईयां उठानी पड़ रही हैं।
यह सभी लोग जानते व समझते हैं कि राज्यसभा में अपना बहुमत न होने के कारण सरकार अपने मन का कोई कम नहीं कर पा रही हैं। वैसे भी वर्तमान संसद में बीजेपी व शिवसेना को छोड़कर सभी दल व सांसद हिंदू विरोध की भावना से भरे पड़े हैं। संसद में जब तक शशि थरूर और राहुल गांधी से लेकर रामदास अठावले जैसे लोग रहेंगे तब तक संसद से भी राम मंदिर के लिए कानून नहीं पारित हो पायेगा। ऐसे सांसद राम मंदिर कानून का पुरजोर विरोध करेंगे और हर कानून की तरह इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेजने की वकालत करने लग जायेंगे। एक प्रकार से संसद से कानून पास होना भी आसान नहीं है। कम से कम बेहद नियमों के अंतर्गत तो श्रीराम का मंदिर नहीं ही बन पायेगा। अभी भी संसद से लेकर सड़क तक व अदालतों तक हिंदू विरोधी से लोग भरे पड़े हैं।
आज जो लोग श्रीराम का भव्य मंदिर निर्माण करने के लिए अध्यादेश व कानून बनाने की चुनौती दे रहे हैं तथा टीवी चैनलों पर तंज कस रहे है। उसमें वे सभी लोग शामिल हैं जिन्होंने कभी अयोध्या में निहत्थे हिंदू कारसेवकों पर भयंकर गोली वर्षा करवाकर हिंदुओं का नरसंहार कराया था। उसके बाद मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले इन दलों ने उसका समर्थन भी किया था। सपा मुखिया के पूर्व मुखिया मुलायम सिंह यादव ने निहत्थे हिंदुओं का खून पिया है तथा काग्रेसियों ने उसकी पीठ थपथपायी है। अब यही अपराधी मानसिक प्रवृति के तथा मुस्लिम तुष्टीकरण करने वाले अंधे नेता न्यायपालिका को गुमराह करने में लग गये हैं।
यहां पर यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि न्यायपालिका भी विरोधी दलों के वकीलों के दबाव में ही बार-बार क्यों आ रही है? वर्ष 2010 मे यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बित चल रहा है। हर तारीख में किसी न किसी बहाने यह मामला लटकाया जा रहा है। जिसकी सूत्रधार व जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी है। ये सभी दल पूर्णतः हिंदू विरोधी हैं। न्यायपालिका की गलतियों से ही आज देश में सबरीमाला विवाद पैदा हुआ है। आज केरल में जो तनावपूर्ण हालात हैं उसकें लिये वास्तव में न्याय के देवता ही जिम्मेदार हैं। समलैंगिकता, पटाखे, विवाहेत्तर संबंधों पर सुनाये गये फैसले पूरी तरह से गलत व हिंदू समाज की पृष्ठभूमि को ध्वस्त करने वाले है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व महंत धर्मदास का कहना उचित है कि न्याय में देरी अन्याय के समान है। आज जिस प्रकार से कोर्ट ने लोगों का भरोसा तोड़ा है तथा उनके मन में निराशा का भाव पैदा किया है क्या वह उसकी जिम्मेदारी लेने में सक्षम है? अपने काम करने के तरीकों के कारण न्यायपालिका भी कठघरे में खड़ी है।
आज न्यायपालिका के कारण ही हजारों दुराचार व एसिड अटैक पीड़ितायें दर-दर की ठोकरें खाने का मजबूर हैं। न्यायपालिका को भी अपना घर ठीक करने का समय आ गया है। तीन करोड़ मुकदमे लम्बित हैं। किसी भी घोटालेबाज व अपराधी को सजा या फाँसंी नहीं मिल पा रही है। सुप्रीम कोर्ट में बड़ा से बड़ा अपराधी बच निकलता है। निर्भया कांड के दोषियों को अभी तक सजा नहीं मिल पायी है। जवाब तो कोर्ट को भी देना ही होगा?
लोकतंत्र में सभी खंभों की संवैधानिक, सामाजिक तथा लोकतांत्रिक जिम्मेदारी होती है, जिसका निर्वाहन अब कोर्ट को भी करना होगा। जब लोकतंत्र का कोई खंभा दबाव में आ जाता है तब समाज में विस्फोट होता है और फिर उसे संभालना कठिन हो जाता है। यह कोर्ट याकूब मेनन के लिए, कर्नाटक में बीजेपी की सरकार को गिराने के लिए रात में दो बजे खुल जाती है, अरबन नक्सली सुप्रीम कोर्ट को बड़े सीधे लगते हैं, तो फिर उनकी सुनवाई बड़ी जल्दी होती है। रोहिंग्या मुसलमानों पर सुनवाई का समय है लेकिन सीधे-सादे अयोध्या विवाद की सुनवाई व जल्द निस्तारण का समय उसके पास नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के जजों को अपना वेतनमान बढ़वाने और समय पर पाने की याद तो आ जाती है लेकिन अन्य चीजों को वे आगे बढ़ाते रहते हैं। लोकतंत्र में सवाल तो कोर्ट से भी पूछा जाना चाहिए और पूछा जायेगा।
सुप्रीम कोर्ट के कारण ही आज पूरा हिंदू समाज बैचेन हो रहा है उसका धैर्य वास्तव में जबाव दे रहा है। यदि कुछ नहीं किया तब हिंदू समाज अपनी ताकत दिखाने के लिए मजबूर हो सकता है, जिसका परिणाम कुछ भी हो सकता है। न्यायपालिका को 6 दिसंबर 1992 का इतिहास भी अच्छी तरह से याद रखना चाहिए। हिंदू समाज बहुत सम्मान कोर्ट को दे रहा है, अब उसके धैर्य की और परीक्षा नहीं लेनी चाहिए।
मृत्युंजय दीक्षित