गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मेरे दिल से मोहब्बत का जनाजा आज निकलेगा
मुझे मालूम है मुझसे संभाले दिल ना संभलेगा

किया है ये फैसला मैंने मोहब्बत छोड़ देंगे हम
बना लेंगे यू पत्थर दिल न फरियादों से पिघलेगा

मुझे जिसने कहा अपना खुद में ही कैद कर डाला
मुझे मालूम है के मुझको यहां हर कोई बदलेगा

एक खुशी की चाह में हम दर्द का सैलाब ले आए
कि कतरा कतरा उम्र भर इन आंखों से छलकेगा

चले जाएंगे तेरे शहर से अपनी हस्ती मिटाके हम
मैं तो पत्थर की मूरत हूं तुम्हारा दिल ही तड़पेगा

खुशी या गम मिले जानिब मुझे क्या फर्क पड़ता है
तेरा कहना भी वाजिब है कहां दम मेरा निकलेगा

पावनी जानिब 

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत सुन्दर ग़ज़ल !

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