गीतिका/ग़ज़ल

राम बन लड़ लीजिये

भीतर के रावण से खुद ही राम बन लड़ लीजिये।
ये करारी ज़िद्द हो तो फिर बेधड़क अड़ लीजिये।।

वेद पढ़ने से कभी फुर्सत अगर मिल पाए तो,
भूखे चेहरे पर लिखी कोई वेदना पढ़ लीजिए।

भर चले जो मन कभी छूने से आसमान को,
दिल में किसी के एक दो सीढ़ियां चढ़ लीजिए।

जिनके रूठने से रूठा सा ये सारा जग लगे,
उनको मनाने को बहाना कोई गढ़ लीजिए।

उनको चाहत है मगर कदमों को इजाज़त नहीं,
दो कदम उनकी तरफ को आप ही बढ़ लीजिए।

हर चीज़ मयस्सर नहीं होती है जान लीजिए,
न चाँद दामन को हो तो तारा कोई जड़ लीजिये।

बात वक्त की है गुज़र जायेगा ये भी ‘लहर’,
महकें बहारों में तो पतझड़ में भी झड़ लीजिये।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा