क्षणिका

क्षणिकायें

सब के सब देख रहे थे
लगी हुई थी आग
जलता हुआ रावण
दर्शनार्थी अस्त ब्यस्त
ट्रेन की डरावनी चिंघाड़
दौड़ती हुई उतावली रफ्तार
धुँआँ उड़ा आँखों के सामने
शायद ही कोई देख रहा था।।-1

जमीन से जुड़े है हम
माटी दीया, अनेक प्रकार
अंधकार से लड़ती दीवाली
लोग खरीद रहे हैं बेंच रहे है
चहल-पहल, मंहगाई व व्यवस्था
प्रकाश पटाखा और त्यौहार
दीप अवली जमीन से जुड़ी है।।-2

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ