मुक्तक/दोहा

जीवन के दोहे

जीवन मुरझाने लगा, ऐसी चली बयार !
स्वारथ मुस्काने लगा, हुआ मोथरा प्यार !!

बिकता है अब प्यार नित, बनकर के सामान !
भावों की अब खुल गई, सुंदर बड़ी दुकान !!

सब ही अपने में घिरे, त्याग दिये सब त्याग !
कैसे होगा फायदा, ख़ूब गुणा औ’ भाग !!

अंधकार से दोस्ती, सूरज को धिक्कार !
सच्चे का मुंह स्याह कर, करें झूठ जयकार !!

चहरों पर परतें चढ़ीं, असलीपन सब लुप्त !
परसेवा के नाम पर, है हर इक अब सुप्त !!

शेष नहीं संवेदना, निष्ठुर आज समाज !
नेह,प्रेम,करुणा नहीं, करे कपट अब राज !!

प्रो. शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com