कहानी

फिर एक बेटी

“फिर एक बेटी को जन्म दिया, मुंह जली, करम जली ने। मैं तो लुट गई, बर्बाद हो गई। मेरे जीतू का अब क्या होगा? इस खानदान का क्या होगा? मिट जाएगा खानदान का नाम। पता नहीं… कौन सी घड़ी में इस कलमुंही को लेकर आई थी मैं इस घर में। बेटी के बाद बेटी पैदा करती जा रही है। यह नहीं होता कि एक बेटे को जन्म दे दे। कब से आस लगाए बैठी थी एक पोते के लिए। हाय अब क्या होगा मेरा?” छाती पीट-पीट के बसंती देवी अर्थात जीतू की मां रोए जा रही थी। और अपनी बहू को न जाने क्या क्या उपाधियां दे दी। सुवर्णा ने फिर एक बेटी को जन्म दिया था, इस बात पर पूरे अस्पताल में जैसे कोहराम मचा हुआ था।

सुवर्णा की पहले ही दो बेटी है रेणू और मीनू। तीसरी बेटी का आज ही जन्म हुआ है। वह अस्पताल में पड़ी थी, पर बसंती देवी को बहू की चिंता नहीं थी। वह तो एक बार भी बहू और छोटी पोती को देखने तक नहीं गई। बाहर बैठकर ही छाती पीट-पीटकर अस्पताल को सर पर उठा रखा था। उसे तो यह चिंता खाए जा रही थी कि मेरे खानदान का नाम कौन रोशन करेगा? बेटियां तो पराई धन है कल को चली जाएगी अपने ससुराल, फिर क्या होगा?

घर आने पर भी सुवर्णा को रात दिन उठते बैठते यही बातें सुनने को मिल रही थी कि…” कहा था, एक बार जांच करवा ले बेटा है कि बेटी है! पर नहीं, इतनी जिद्दी निकली कि मेरी बात सुनी ही नहीं। और ना ही जीतू की बातों का उस पर कोई असर हुआ। अगर पता चल जाता बेटी है तो गर्भपात करवा देती। फिर कोशिश कर लेती बेटे के लिए! पर.. एक ही रट लगाए बैठी थी कि…” मैं नहीं जाऊंगी जांच करवाने। जो भी हो… वह ईश्वर का दान है, मैं हंसकर स्वीकार करूंगी!”… बसंती देवी अपने आप बड़बड़ा रही थी।

तीनों बेटियां बहुत होनहार निकली। सुवर्णा ने रात दिन उनके साथ मेहनत की। बड़ी दोनों बेटियां रेणू और मीनू इंजीनियर बन गई और छोटी बेटी शशी आंखों की डॉक्टर बन गई थी। बड़ी दोनों लड़कियां मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छे पदों पर पदस्थ थी। दोनों बड़ी बहनों की मदद से शशि ने अपने शहर में एक आंखों का अस्पताल खोल लिया था। शहर में जाने माने आंखों के डॉक्टरों में गिनी जाती थी वह।

शशि अपने कार्य से दो महीने के लिए शहर से बाहर थी। इसी बीच पता चला कि बसंती देवी की आंखों में मोतियाबिंद आ गया है। अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया तो उसने बताया कि…” जल्दी से ऑपरेशन कराना पड़ेगा।” आंखों से पानी बहता था तथा दर्द भी होने लगा था।
“अम्मा..आपको अस्पताल में भर्ती करवा देते हैं और ऑपरेशन करवा लेते हैं, तो रोज की परेशानी दूर हो जाएगी आपकी।”… बेटा जीतू ने कहा।
“ना.. बाबा ना.. अभी शशि घर में नहीं है। मैं अभी ऑपरेशन नहीं कराऊंगी”… बसंती देवी ने डरते हुए कहा।
“कुछ नहीं होगा अम्मा..छोटा सा ऑपरेशन है! फेको सर्जरी बोलते हैं उसको, मशीन से करते हैं और एक घंटे में छुट्टी दे देते हैं।”… बेटे,जीतू ने समझाया।
“मशीन से कैसे होता है ऑपरेशन? मैंने तो कभी नहीं सुना। शशि से पूछे बिना मैं कुछ नहीं करूंगी। वह बहुत काबिल डॉक्टर है! शहर भर में उसका बहुत नाम है! उसको आ जाने दो।”… बसंती देवी अपनी जिद पर अड़ी थी।
“शहर में और भी अच्छे अच्छे डॉक्टर है अम्मा! तुम इतनी डरती क्यों हो? हम लोग हैं ना और तुम्हारी यह रोज-रोज की तकलीफ!”… जीतू ने समझाते हुए कहा!
“मुझे किसी पर भरोसा नहीं है अपनी शशि के अलावा। चाहे कोई कितना ही अच्छा डॉक्टर हो ऑपरेशन तो उसी के हाथों कराना है मुझे। शहर भर में कितना नाम है उसका। और.. आजकल तो तुझे सब डाॅक्टर शशि के पापा के नाम से ही जानते हैं।”… बसंती देवी के चेहरे पर खुशी की चमक थी!
“मैं कितनी गलत थी कि बेटी होने पर मैंने बहु को कितना सताया! कितना बुरा भला कहा और हमेशा बेटियों को बेटों से कम समझा! पर ऐसा कुछ भी नहीं है! मुझे अपने पोतियों पर बहुत गर्व है!”… कहते कहते बसंती देवी की आंखों से आंसू निकल पड़े।

“शशि का फोन है अम्मा… आप से बात करना चाहती है!”… बहू ने सासु मां को मोबाइल देते हुए कहा।
” हेलो.. शशि बेटा, कैसी हो तुम? वहां सब ठीक है ना?”… बसंती देवी ने चिल्ला चिल्ला कर कहा ताकि शशि को सुनाई दे।
“मैं ठीक हूं दादी.. आप सुनाओ आपकी तबीयत कैसी है? मम्मी ने कहा है आपकी आंखों में मोतियाबिंद हो गया है। ऑपरेशन करा लो शहर में बड़े बड़े डॉक्टर हैं। डॉक्टरों को मैं फोन कर दूंगी, सब कुछ अच्छे से हो जाएगा। चिंता वाली कोई बात नहीं है?”… शशि ने दादी को समझाते हुए कहा।
“ना.. बाबा ना.. मैं ना कराऊंगी किसी के हाथ ऑपरेशन! तू कब आ रही है बेटा? तेरे आने के बाद ही कराऊंगी। तू जल्दी से आजा।”… बसंती देवी ने जिद पकड़ ली।
“ठीक है दादी… मैं एक हफ्ते के बाद आ रही हूं। तब तक आप आंखों में दवा ठीक से डालते रहना। चिंता मत करो, मैं ही करूंगी आपका ऑपरेशन।”… शशि ने दादी को सांत्वना दी।
बसंती देवी के चेहरे पर एक शांति भरी मुस्कान बिखेर गई….!

— ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com