गीत/नवगीत

कांग्रेसी से : आया समय लड़ाई का

घोटालों पर घोटाले कर अर्जित की जो धनराशि विपुल
क्या भोग नहीं करना उसका जो पड़ा हुआ है यूँ ढुलमुल?
कर याद स्वर्णयुग दल का जब था राज देश पर एकछत्र
जब नोटों के बण्डल घर में बिखरे रहते थे यत्र-तत्र।।

जब कोटा-परमिट-लाइसेंस का तन्त्र देश में चलता था
चीनी लेने के लिए आम आदमी जब नाक रगड़ता था।
अफसर से लेकर बाबू तक तेरी थी धाक जमी रहती
अपनी कुर्सी पर रहते वह जब तक तेरी मर्जी रहती।।

जब पत्रकार से लेकर जज तक तुझसे सहमे रहते थे
तुझको प्रसन्न रखने में ही वह अपना भला समझते थे।
जब दौरे खूब विदेशों के मनमाने लगते रहते थे
हर रात दिवाली होती थी जामों पर जाम छलकते थे।।

कर याद इमरजेंसी के दिन जनता करती थी त्राहि-त्राहि
पर तेरी चाँदी थी जज तक तुझसे कहते थे माम् पाहि।
युग रहा देवगौड़ा का हो या समय वाजपेयी का हो
क्या ऐसा कभी हुआ जब तेरा कोई काम हुआ ना हो?

सत्तर सालों तक खूब चला सिक्का गाँधी-नेहरू-घर का
तर गये चरणचुम्बी सारे भर गया खजाना घर भर का।
सब कुछ चल रहा ठीक ही था पर जाने किसकी हाय लगी
बन धूमकेतु मोदी आया मानो इस घर को आग लगी।।

कुछ दिन तो सदमे में बीते फिर धीरे-धीरे ज्ञान हुआ
कितना नुक्सान किया इसने इसका अब जाकर भान हुआ।
साधारण दुश्मन मान इसे काटे रो-रो कर चार साल
पर यह तो जम कर बैठ गया अब और चाहता पाँच साल।।

अब इसे हटाना ही होगा चाहे इसकी जो कीमत हो
सत्ता से दूर भले रह लें पर बचे रहें यह नीयत हो।
इस बार अगर चूके तो समझो गयी भैंस अब पानी में
जब कांग्रेस ही नहीं रहेगी फिर क्या रहा कहानी में?
माना दुश्मन है जबर मगर कुछ तो अब करना ही होगा
अपने नेता के एहसानों का कर्जा भरना ही होगा।।

उठ जा कांग्रेसी धूल झाड़ अब आया समय लड़ाई का
जी भर मोदी को दे गाली यह अवसर नहीं भलाई का।
चाचा नेहरु के चरण चूम, कर राहुलजी का मूत्रपान
बढ़ चल अब महासमर में लेकर अपनी सारी आन-बान।।

अपने नेता की बातों को तू मन्त्र मान सुन ध्यान लगा
उनको ही तू दुहराता चल उनसे जनगण में अलख जगा।
मत देख चुनाव कहाँ का है तू गाये जा राफ़ेल राग
श्रद्धा रख अपने नेता पर भड़काये जा हर जगह आग।।

अनिल कुमार सिंह