कहानी

कामवाली

फितरत

सूरज सिर पर चढ़ आया था. सुबह पाँच बजे उठने वाली शांति दाई का दरवाजा नौ बजे तक खुला नहीं था. हाँ, दरवाजा कह सकते है उन लकड़ी के पलड़ो को जिनमें फूस से भी कम ताकत बची थी. उम्मीदों के अनगिनत झरोखे हो रखे थे. जब से ये दरवाजे लगे थे इस दहलीज पर सिर्फ चार आँखे ही टिक पाई थी.पहले शांतिदाई और उसके पति ईश्वर फिर शांतिदाई और उसका बेटा हरी. क्योंकि हरी के जन्म के दूसरे दिन ही ईश्वर की मजदूरी के समय मकान गिरने से मौत हो गई थी.शांतिदाई पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा था.ईश्वरगाँव से अपनी चार बिसुआ खेती बेचकर शहर कमाने आया था. उसी पैसे से ये खोली खरीदी थी.ग्रहस्ती बस भी नहीं पाई थी कि नींव हिल गई थी.
ईश्वर के मरने के बाद उसके परिजनों ने बहुत चाहा कि वह गाँव वापस चले पर शाँतिदाई ने द्रढ निश्चय कर लिया कि वह उस गाँव के परिवेश में अपने बच्चे को नहीं ले जाएगी.जहाँमात्र आठ साल की उम्र में किताबों के बजाय भीख के लिए कटोरा या कचरा उठाने के लिए थैला पकड़ाया जाता था.
उसने सोच लिया था वह मेहनत मजदूरी करेगी पर अपने बच्चे को बहुत पढाएगी.जब अकेले पति की कमाई से घर नहीं चल पाया था तब वह लोगों के घर में बरतन सफाई का काम करने लगी थी. ईमानदार और काम में लापरवाह न होने के कारण वह सबकी चहेती शांतिदाई बन गई थी. अपनी खोली के आसपास भी उसका व्यवहार बहुत अच्छा था.होताभी क्यो न सबके सुख दुख में सबसे आगे जो खड़ी रहती थी.
मुहल्ले की रमा ताई शांतिदाई की पक्की सहेली थी.रमा ताई के पति हवलदार थे.कोई बराबरी ऩहीं थी दोनो की पर रमा ताई और उसके पति घमन्ड से कोसो दूर थे. उनका एक बेटा था प्रकाश जो हरी के साथ ही पढ़ता था. रमा ताई के कहने पर ही शांतिदाई ने प्रकाश के स्कूल में हरी का दाखिला करवाया था. ईश्वर की हादसे में हुई मौत का उसे 2 लाख रुपये मुआवजा मिला था जिसे वह रमा ताई के पास हरी की पढाई के लिए जमा कर दिया था. रमा ताई भी ईमानदारी की मिसाल थी.शांतिदाई का हर सम्भव साथ दिया उन्होने. हरी और प्रकाश में भी गहरी दोस्ती थी.गरीबी अमीरी जाति पात कभी उनकी दोस्ती के आंड़े नहीं आई थी.
बहुत उतार चढाव के बाद बीते थे 20 साल.जिनके घरों में काम करती थी वो सहायता करते रहते थे.
उन दिनों बहुत टूट गई थी शांतिदाई जब एम बी बी एस के लिए उसे फीस के बारे मे पता चला था. क्या करेगी वो.. अब नहीं पढा पाएगी वह अपने बच्चे को.वह बहुत पछताई थी कि क्यों नहीं गाँव वापस चली गई थी. पढाई लिखाई के सपने सिर्फ अमीरों की धरोहर है पर हरी पढने में अच्छा था.प्रकाश के कहने पर उसने स्कालरशिप का फार्म भर दिया था. उसका नाम स्कालरशिप में आ गया.शांतिदेवी भगवान का प्रसाद ही समझी थी अब सिर्फ एम बी बी एस के रिजल्ट का इंतज़ार था
शांतिदाई झाड़ू लगा रही थी जब हरी चींखते हुए बारह से आया और माँ की झाड़ू छीन कर फेक दी थी.वह पास हो गया था. शांतिदाई रो पड़ी थी.
माँ अब तू कोई काम नहीं करेगी..
तू अपने हाथ के जो छाले मुझसे छुपाती थी. मै उन्हें रात में देख लेता था. जब तू दूध गरम करके ठंडा करने रखती थी और सो जाती थी. जब मै दूध उठाने जाता था तब तू नहीं तेरे छाले रात के संन्नाटे में कराहते थे…..कहते कहते हरी भी रो पड़ा था.दोनों बहुत देर भावविभोर होते रहे.
बेटा चला जाएगा.खुशी तो थी ही पर दुखी भी थी.दुनियाँ में शांतिदाई का ले देकर हरी ही तो था. माँ को परेशान देखकर उसने कहा था..
माँ तू परेशान मत हो मै पढाई खत्म होते ही तुझे भी साथ ले जाऊँगा.तेरे बिना मै भी तो नहीं रह पाऊँगा.
और आज छ:साल हो गए थे. पैसे लेने ही आता था.पढाईपूरी होने के बाद आया था बताया था माँ को उसने कि बेंगलूर के ही एक बहुत बड़े अस्पताल में प्रैक्टिस कर रहा है.
1 साल से नहीं आया था. न ही कोई खबर थी. शांतिदाई टूट सी गई थी.बीमार रहने लगी थी.
प्रकाश भी मैसूर में इंजीनियरिंग कर रहा था तो कभी कधार हरी से मिलने चला जाता था. और शांतिदाई के पूछने पर सिर्फ इतना ही कहता था कि वह चिन्ता न करे वो ठीक है. हमेशा नपा तुला एक ही जवाब…बस थोड़ा व्यस्त है.
जब शांतिदाई नहीं निकली तब रमाताई उसकी खोली में गई और जैसे ही कदम अंदर बढाया चीख पड़ी
शांतिदाई दरवाजे से 4-5 कदम दूर जमीन पर फैली पड़ी थी
रमाताई की आवाज सुनकर मुहल्ले के और लोग भी पहुँच गए जल्दी पास के अस्पताल ले गए.
जहाँ डाक्टर ने बताया जाँच के बाद बताया कि उन्हें ब्रेन ट्यूमर है.जिसका इलाज बहुत महंगा है.
और किसी अच्छे अस्पताल में ले जाने की राय दी थी.
रमाताई ने इलाज का खर्च खुद उठाया था.
दो घंटे बाद शांतिदाई को होश आया था.अर्धचेतना में उसके मुँह से हरी हरी ही निकल रहा था.
रमाताई और पड़ोसी शांतीदाई की हालत देख कर बहुत परेशान हो रहे थे.
रमाताई को कुछ नहीं सूझा तब उसने प्रकाश को फोन करवाया.हरी को तत्काल उसकी माँ की हालत की खबर करने को कहा.
और दो घंटे बाद जब वापस प्रकाश को रमाताई के पास फोन आया तो जो प्रकाश ने रमाताई को हरी के बारे में बताया उसको सुनकर रमाताई व उसके पति ही नहीं मुहल्ले के सारे लोगों के पैर से जमीन खिसक गई.प्रकाश को ये सब पहले ही पता था पर हरी ने कसम दी थी जिस कारण उसने आज तक किसी को बताया नहीं था.
इतना त्याग वलिदान करने के बाद भी क्या किसी को ऐसा फल मिल सकता है. भगवान की बनाई इस दुनियाँ पर से यकीन उठने लगता है जब इतना अन्याय होता है किसी पर. शांतिदाई के पालन पोषण में क्या कमी रह गई थी जो ये फल मिला उसको.सबके मुँह से यही निकल रहा था. हरी की सूरत एक पल में घूमिल हो चुकी थी.
प्रकाश ने रमाताई को बताया कि हरी एक बहुत अमीर खानदान की पूजा नाम की लड़की से शादी कर चुका है. और उस लड़की के प्रेम में इस कदर पागल हुआ है कि उसने पूजा को खोने के डर से ये तक नहीं बताया था कि उसकी माँ काम वाली बाई है.पूजा की ककाचौध जिन्दगी और उसकी माँ की झोपड़ी की तुलना कहीं उसके प्यार को छीन न ले.इसलिए पूजा और उसके घर वालों के पूछने पर उसने बताया कि उसके मातापिता किसी हादसे का शिकार हो गए थे.वह अकेला ही है.
जीती जागती माँ की कोख को हरी ने गाली दी थी.
कैसे एक लड़की की खातिर एक बेटा अपनी माँ को जिन्दा मार सकता है.हरी ने प्रकाश से कहा था कि वह माँ को उसके अस्पताल तक पहुँचा दे और विनती की थी कि वह माँ को कुछ न बताएं.
इधर हरी के मुँह से निवाला नहीं उतर रहा था.
हरी आज तुम बहुत उदास लग रहे हो.. क्या बात है— पूजा ने हरी को परेशान देखकर पूछा था
नहीं…. कोई बात नहीं— सब ठीक है.. हकलाते हुए जवाब दिया था हरी ने..
ये काम वाली बाई भी न.. पता नहीं कितनी कमीनी होती है—हर दिन वाली तेज आवाज सुनाई दी थी पूजा की.
ये शब्द हरी के कलेजे को चीर जाते थे . कैसे बताता कि वह भी एक काम वाली बाई का ही बेटा है.
आज फिर छोड़ गई करमजली कपड़े.. रोज इसका बेटा ही बीमार रहता है.. मर क्यों नहीं जाता—-पूजा चीखे जा रही थी
ओह ये शब्द हजारों वार कर गए थे हरी के कलेजे पर..धार बह रही थी आँसुओ की. कैसे उसने कह दिया था कि माँ पिता उसके हादसे में नहीं रहे. एक माँ अपनी रोजी रोटी पर ठोकर मार गई एक बेटे के लिए.और ये कैसा अभागा बेटा था. उस दिन को कोसने लगा जिस दिन पूजा से शादी की थी.पूजा की चकाचौंध की दुनियाँ उसकी झोपड़ी को कभी पूजा की नहीं होने देती.इसी डर से उसने अपनी असलियत छुपाई. पूजा के पापा को घरजमाई चाहिए था. उन्हें हरी में कोई बुराई नज़र नहीं आई थी.
पूजा उसी डा. की इकलौती लड़की थी हरी जिस अस्पताल में एक साल पहले प्रैक्टिस करने आया था.हरी की काबिलियत से वो बहुत खुश रहते थे.प्रकाश ने बहुत समझाया था पर हरी ने एक भी नहीं मानी थी. शादी में प्रकाश अकेली बाराती था.शादी के बाद जब पूजा के बंगले में ही रहने लगा तब देखा कि नौकरों के साथ पूजा का बर्ताव बिलकुल अच्छा नहीं था.घर में पूजा का व्यवहार उसकी सोच से बिलकुल परे था
हरी गहरी सोच में डूबा था कि तभी मोबाइल घनघना उठा.
प्रकाश का फोन था कुछ देर में अस्पताल पहुँच रहा था. हरी जल्दी तैयार हुआ और पूजा को बिना कुछ कहे ही आज निकल गया.
पाँच साल में बहुत बूढी हो गई थी शांतिदाई.नज़र कमजोर थी पर अपने बेटे को पहचानने में तनिक भी देर न हुई.
तू तो बाबू लग रहा है….अपने मैले हाथ देखे तो बेटे को छूने की भी हिम्मत न कर सकी
हाँ माँ तू कैसी है.. बस इतना ही पूछ पाया था हरी.आँखो में बादल तैरकर पल में ही वापस चले गए थे.शांतिदाई रो पड़ी थी.
दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया था हरी ने अपनी माँ को
प्रकाश छोड़कर चला गया था.पन्द्रह दिन में शांतिदाई बिलकुल ठीक हो गई. हरी सुबह शाम आता था और प्रैक्टिस का बहाना करके चला जाता था.देखरेख के लिए एक नर्स लगा दी थी.
असलियत से अंजान शांतिदाई बहुत खुश थी.
सर्दी के मौसम में हरी के माँथे पर पसीने की बूँदे दिख रही थी
आज माँ की छुट्टी होनी थी. क्या करे कहाँ ले जाए.अब माँ से नहीं छुपा सकता था. तभी माँ की आवाज कानों में पड़ी.
“अब तू बहू और ले आ बेटा पोते का मुँह देख लूँ तो मेरा जीवन सफल हो जाए. “थकी आवाज में शांतिदाई बोली
माँ मैने शादी कर ली है…
अचानक बता गया हरी
शांतिदाई को आसमान घूमता दिखाई दिया.बेटे की तरफ अवाक देखे जा रही थी. बेबसी के आँसू ही कहेंगे उन्हें जो निकले तो पर भीगा कोई नहीं.
क्या.. तूने शादी कर ली. और अपनी माँ को बताया तक नहीं… मेरी परवरिश में ही कमी रही होगी.. तू तो पढा लिखा है बेटा… कमजोर शांतिदाई खून के आँसू रो रही थी.
अब चल माँ… हरी जबरदस्ती शांतिदाई का हाथ पकड़ के ले गया था.
माँ को हॉल में खड़ा करके हरी पूजा के कमरे की तरफ चला गया.
पूजा एक गरीब औरत अस्पताल में भर्ती हुई थी बहुत ईमानदार लगती है.उसका दुनियाँ में कोई नहीं है.क्यों न उसको काम पर रख लूँ. सहज लहजे में पूछा था हरी ने
ये तुम कैसे कह सकते हो कि वह ईमानदार है. ये खोली वाले कभी ईमानदार नहीं होते है.मौका मिलते ही हाथ साफ करते है.. —तुनक कर बोली थी पूजा
चोर भी नहीं होते है सब—हरी चींख ही पड़ा था.
अपने बेटे की तेज आवाज सुनकर शांतिदाई आवाज की दिशा में बढ गई.
शांतिदाई बिना कहे सबकुछ समझ गई थी. बेटे की विवशता पर तरस आ रहा था उसे.कैसे पाला था उसने. उससे नहीं रहा गया. सामने जाकर बोल पड़ी
साहब चलती हूँ…. कहीं और काम कर लूँगी….कोख मैली है पर पेट मैला नहीं करूँगी… हरी तड़प उठा था
नाली के कीड़े दरवाजे पर ले आओगे तो ये मंदिर में घुसने में देर नहीं लगाएंगे.. देखो कैसे अन्दर तक चली आई. -तमतमा पड़ी पूजा और पैर पटकती हुई चली गई.
शांतिदाई ने अपने कपड़ो की पोटली उठाई और जाने लगी..
“माँ तेरे इलाज में मैने जो रकम खर्च की है उसका हिसाब तो किए जा”—कुछ ही कदम चल पाई थी कि पीछे से हरी की आवाज आई
कदम ठिठक गए.आँखों के सामने घोर अंधेरा छा गया. पत्थर की मूर्ति हो गई थी शांतिदाई.
आह्ह्ह बेटे की मनोदशा जैसे माँ के अलावा कोई समझ ही नहीं सकता था.
शांतिदाई भांप गई थी कि हरी ने अपनी माँ की सच्चाई छुपाई है.अब क्या करें बेटे का साथ दे या चली जाए.
अगर साथ दिया तो दुनियाँ का हर अगला बेटा ऐसी गलती करेगा.
वो मुड़ी और बेटे की आँखो में झांक कर बोली
जो कामवाली बाई नौ महीने एक बेटे को किराए पर रख सकती है उसकी परवरिश में सुख चैन बेच सकती है. वो कामवाली बाई अपना इलाज भी करा सकती है..
तू पैदा होने से लेकर परवरिश तक का मेरा हिसाब रखना..मै बहुत जल्दी तेरा हिसाब करने आऊँगी… कहकर शांतिदाई दरवाजे से बाहर निकल गई.
हरी पत्थर की बुत सा खड़ा रह जाता है.
पूजा ने कुछ सुना नहीं था.माँ भी चली गई थी. हरी के सर से जैसे बोझ उतर गया था
दूसरे दिन कामवाली बाई जब आई तो पूजा और हरी नास्ता कर रहे थे. रोज से आज जल्दी आई थी. उसको देख कर पूजा ने बुरा सा मुँह बनाया.
“मेमसाब, –कुछ एडवांस दे दीजिए —बहुत धीरे विनम्र आवाज में बोली कामवाली बाई
अरे, एक तो ठीक से काम नहीं करती है, ऊपर से हर दूसरे दिन एडवांस –पूजा आँखे निकालती हुई बोली
वो नुक्कड़ पे एक बूढ़ी दाई माँ कल रात मर गई है–कोई है नहीं उसका अंतिम संस्कार के लिए हम खोली वालों ने चन्दा किया है–पूजा की बात अनसुनी करके वो हरी की तरफ देख कर बोली
हरी को लगे में निवाला अटक गया, माँ का चेहरा आँखों के सामने छा गया–पूजा तब तक टेबल से जा चुकी थी
“कहाँ है वो लाश”–हरी एक झटके से उठा और कामवाली बाई के कन्धे पकड़ के बोला
सड़क के नुक्कड़ पर”–इतना ही बोल पाई
भागते कदमों से नुक्कड़ पर पहुँचा जहाँ एक गरीब लाश पे फूल के बजाय पैसे चढा रहे थे लोग कि उसका अंतिम संस्कार हो सके. कुछ दूरी पर शांतिदाई के कपड़ों की पोटली पड़ी थी.

नीरू “निराली”
7985892780
कानपुर

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005

One thought on “कामवाली

  • विजय कुमार सिंघल

    मार्मिक कहानी !

Comments are closed.