कहानी

बदलते रिश्ते

रोज वही रोना-धोना, वही शिकायत रहती है विनीता को। बाई ने यह बर्तन अच्छे से नहीं धोया, चाय के कप में गंदा लगा हुआ है। चम्मच कितने गंदे तरीके से धोया है। झाड़ू लगाया है तो घर के कोने में मैल जमा है। कहीं बाल गिरे हुए हैं, और ना जाने क्या-क्या। पर, इससे कोई मतलब नहीं उसे। उसे तो फोन पर बात करने से फुर्सत मिले तब तो कहीं नजर डाले। न जाने किस से रोज-रोज बातें करती है और क्या बातें करती रहती है? विनीता बोल बोल कर थक गई कि ..”जरा बर्तन अच्छे से धोया कर। घर में झाड़ू, पोछा ढंग से लगाया कर!”.. पर उसके कानों में जूं तक नहीं रेंगती। पता नहीं किस मिट्टी की बनी है वह। कुछ बोलो तो बस बत्तीसी निकाल कर हंस देना, किसी बात का बुरा ना मानना। यह तो है उसकी खासियत और विनीता को उसका यह स्वभाव बहुत पसंद आता है।
“देखो.. मेम साहब, मेरी यह साड़ी कितनी अच्छी है ना? मैं बहुत अच्छी लग रही हूं ना पहनकर। अबकी बार दिवाली में इन्होंने ले कर दी है मुझे। मुझसे कहा..” चल कमली तुझे तेरी मनपसंद साड़ी दिला देता हूं।”.. कमली ने बत्तीसी निकाल कर हंसते हुए कहा।
“हां बहुत अच्छी लग रही है, बिल्कुल हीरोइन लग रही है। पर, अच्छी लगने से काम तो नहीं चलेगा, घर का काम भी तो करना है। बहुत बातें कर ली, अब जाकर काम भी कर ले। हां.. जरा ध्यान से काम करना।”.. विनीता ने चिढ़कर कर कहा
“देखो, मेम साहब अपुन को एक दिन गुस्सा आ जाएगा। इतना ध्यान लगा कर तो काम करती हूं आपके यहां। कितना हंस-हंसकर बातें करती हूं, फिर भी जब तब आप गुस्सा होते रहते हो और मुझे डांटते रहते हो। किसी दिन मैं नहीं आऊंगी, तब पता चलेगा आपको कमली कितनी काम की है।”.. कमली फिर वही बत्तीसी निकाल कर हंस पड़ी।
“पर, कमली तू यह तो बता, तू इतनी बातें किससे करती है। जब देखो तब मोबाइल में लगी रहती है, और बहुत हंस हंस के बातें करती हैं। कौन है रे, किसी को बॉयफ्रेंड तो नहीं बना लिया?”.. विनीता, कमली की ओर देखकर मंद- मंद मुस्काते हुए कहा।
“नहीं.. मैम साहब, अपुन का तो एक ही बॉयफ्रेंड है अपना पति। वह मुझसे बहुत प्यार करता है। मुझे देखे बिना उसे बिल्कुल चैन नहीं पड़ता। काम पर आ जाती हूं तो फोन पर लगा रहता है, जैसे उसके पास कोई काम धाम नहीं है।”.. कमली खिल खिलाकर हंस पड़ती है।
“इतनी बातें करने का समय कैसे मिल जाता है उसको? क्या करता है वह?”.. विनीता ने पूछा।
“अपनी छोटी सी दुकान है, साइकिल ठीक करने की। अपना मालिक खुद ही है, तो कौन उसे रोकेगा बात करने से।”.. कमली ने जवाब दिया।

दो दिन कमली काम पर नहीं आई तो विनीता बिल्कुल परेशान हो गई। कमली के बिना विनीता का गुजारा करना मुश्किल ही नहीं एक तरह से नामुमकिन था। कमली नहीं आती तो विनीता बिल्कुल बेचैन सी हो जाती। ऐसा लगता जैसे कोई कमी रह गई है। वह चिड़चिड़ी सी हो जाती है। विनीता को कमली से बहुत लगाव सा हो गया था। उसकी वो उजली हंसी उसका मन मोह लेती थी। विनीता के पास उसका मोबाइल नंबर था। विनीता कॉल पर कॉल किए जा रही थी पर कोई जवाब नहीं कर रहा था। तो विनीता को चिंता हुई, ना जाने क्या हो गया उसको?

कमली ने विनीता को एक दिन उसके घर का पता बताया था। विनीता को एकदम से याद आया और वह गाड़ी उठा कर कमली के घर पहुंच गई। दरवाजे के पास जाकर उसने आवाज लगाई..”कमली.. कमली.. कहां है तू, क्या हो गया तुझे, जो काम पर नहीं आ रही है। मुझसे नाराज है क्या? किसी बात का बुरा मान गई क्या? अरे.. मैं तो तुझे प्यार से डाटती हूं, कोई सचमुच का थोड़ी डांट लगाती हूं।”

किसी नई नवेली दुल्हन ने दरवाजा खोला देख कर समझने में देर ना लगी कि, हो ना हो वह कमला की सौत है। उसका पति दूसरा विवाह कर लाया था। कमली एक दिन बता रही थी कि कोई बच्चा ना होने के कारण उसकी सास उसके पति पर दूसरी शादी के लिए दबाव डाल रही है। बहुत दिनों से पीछे पड़ी हुई है कि मुझे पोते का मुंह देखना है,दूसरी शादी कर ले। पर, कमला का पति कमला से बहुत प्यार करता था। उसने साफ-साफ अपनी मां से कह दिया कि..” मैं दूसरी शादी नहीं करूंगा, चाहे बच्चा हो या ना हो।” “पर.. अचानक यह बदल कैसे गया? कमली को छोड़कर दूसरी शादी कर ले आया!”.. विनीता के मन में सवाल उठ रहा था।

“कमली का पति कहां है? कमली मेरे घर में काम करती थी, कुछ दिनों से काम पर नहीं आई है, कहां है वह?”.. विनीता ने पूछा तो अंदर से कमली का पति बाहर आया और कहने लगा..” कमली चली गई मायके, अब वह कभी नहीं आएगी।”
“तुमने दूसरी शादी कर ली, तो क्या करती वह बेचारी। मायके के अलावा और कहां जाती। वह बेचारी क्या करेगी जीवन भर?बच्चा नहीं हो रहा था तो एक बच्चा गोद ले लेते, दूसरी शादी करने की क्या जरूरत थी। उस बेचारी के जिंदगी को बर्बाद कर दिया न।..” विनीता को बहुत गुस्सा आ रहा था।
कमली का पति सिर झुकाए खड़ा था! कुछ बोलते नहीं बना उससे। उसे चुप देखकर विनीता भी गुस्से तथा दुखी मन से अपनी गाड़ी की ओर चल पड़ी। उसे लग रहा था उसने जीवन में एक बहुत ही प्यारी तथा कीमती चीज खो दी। उसकी आंखें नम सी हो गई थीं..!!

पूर्णतः मौलिक – ज्योत्सना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com