लघुकथा

चोट

आज अनुपमा के भाई का संदेश आया था- ”दीदी, अपने राजकुमार सर नहीं रहे.” अनुपमा का मन अंदर तक भीग गया.

”राजकुमार सर यानी काले रूल वाले काले खां, जो उसे छठी कक्षा में पढ़ाते थे. छात्रों को सर्वगुणसंपन्न बनाने की चाहत वाले ऐसे आदर्श अध्यापक विरले ही मिलते हैं.” आज भी अनुपमा का यही मानना है. एक दिन राजकुमार सर ने ही बताया था-

”आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है,
अगर आपका खुद पर विश्वास नहीं है,
तो और कोई नहीं करेगा.”

इसी पर अमल करके अनुपमा ने अपने नाम के अनुरुप अनेक उपलब्धियां हासिल की थीं.

उस मंज़र को भी वह कैसे भूल सकती है! उस दिन सिर्फ वह और हरपाल सिंह ही होम वर्क करके आए थे. एक-एक कर दस छात्र क्या खड़े हो गए, पूरी क्लास को खड़ा होने का आदेश जारी हो गया. इस आदेश का सीधा अर्थ था, हथेली पर काले खां का भयानक प्रहार. सबने काले खां के प्रहार के लिए दाहिना हाथ ही आगे बढ़ाया था, ताकि अगर चोटिल हो जाएं, तो कुछ दिन और होमवर्क से छुट्टी! अनुपमा और हरपाल सिंह ने बांयां हाथ आगे किया, ताकि होमवर्क करने में कोई बाधा न आए.

अगले दिन अनुपमा और हरपाल सिंह के बांएं हाथ में पट्टी बंधी थी, बाकी किसी को कोई चोट नहीं आई. पर यह चोट क्या सिर्फ़ छात्र-छात्रा को आई, राजकुमार सर को नहीं! जब उन्होंने उनके हाथ में बंधी पट्टी देखी, तो समझ गए, कि इनके दिल पर भी चोट लगी है.

छठी कक्षा के बाद अनुपमा के पापा का तबादला दूसरे शहर में हो गया था, फिर अनुपमा की शादी हो गई थी. 22 साल के अंतराल के बाद भाई की शादी में राजकुमार सर आए थे. अनुपमा से मिलते ही उन्होंने उसके बांएं हाथ को देखते हुए पूछा- ”वह चोट ठीक हो गई?”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “चोट

  • लीला तिवानी

    कुछ शिक्षक जीवन भर के लिये एक मधुर स्मृति बन जाते हैं. ऐसे शिक्षकों की वजह से ही हम आज दो शब्द लिखने के काबिल बने हैं. हमारे हिंदी के राजकुमार सर भी ऐसे ही थे. एक त्रुटि भी उनको गंवारा नहीं थी.

    किसी को पलकों में न बसाओ,
    पलकों में सिर्फ़ सपने बसते हैं,
    अगर बसाना है तो दिल में बसाओ,
    क्योंकि दिल में सिर्फ़ अपने बसते हैं.

    राजकुमार सर को बहुत-बहुत नमन. आज भी हिंदी संबंधी हर उपलब्धि के समय राजकुमार सर और मैडम ललिता द्रविड़ की मूर्त्ति मेरे सामने आ जाती है. गणित संबंधी हर उपलब्धि के समय मैडम ललिता द्रविड़ की बहिन मैडम शांता द्रविड़ की याद बरबस आ जाती है.

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